महाराष्ट्र में अजित पवार को अपने खेमे में लाकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. इससे उसका दो-दो बदला पूरा तो हुआ ही है साथ ही साथ देवेंद्र फडणवीस ने भी महाराष्ट्र की राजनीति में अपना दबदबा नए सिरे से साबित कर दिया है.
बीजेपी के ताजा कदम के पीछे कुछ बड़े कारण हैं. पार्टी का सबसे बड़ा लक्ष्य 2024 लोक सभा चुनाव में राज्य की 48 में से अधिकतम सीटें जीतना है. अब पवार जूनियर और एकनाथ शिंदे के साथ आने से बीजेपी को उन क्षेत्रों में भी मदद मिलेगी जहां परंपरागत रूप से वह ताकतवर नहीं रही है.
शिंदे पर लगाम कसना भी है मकसद !
दूसरा बड़ा कारण एकनाथ शिंदे पर लगाम कसना भी है. हाल ही में जिस तरह शिंदे की पार्टी की ओर से विज्ञापन देकर उन्हें लोकप्रियता में फडणवीस से आगे दिखाया गया था, इससे बीजेपी के कान खड़े हो गए थे. सरकार का एक साल पूरा हुआ लेकिन दोनों दलों के बीच कई मुद्दों पर खटपट सामने आई है. अब अजित पवार के साथ आने से बीजेपी की शिंदे पर निर्भरता कम हो गई है.
तीसरा बड़ा कारण कस्बापेठ विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार रही. अपने गढ़ में बीजेपी 28 साल बाद हारी. इसके अलावा भी बीजेपी विधानपरिषद के कुछ चुनाव हारी. बीजेपी की इस हार ने महाविकास अघाड़ी में नई जान फूंक दी. उसके बाद कर्नाटक में बीजेपी की हार ने एमवीए का उत्साह दोगुना कर दिया. ऐसे में बीजेपी को समझ में आ गया कि एमवीए मजबूत रहा तो महाराष्ट्र में उसके मिशन 2024 को झटका लगेगा.
बदला नंबर 1
2019 विधानसभा चुनाव बीजेपी और शिवसेना ने मिल कर लड़ा था. चुनाव के दौरान पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार कहा कि फडणवीस की अगुवाई में सरकार बनेगी. नतीजे आने पर गठबंधन को स्पष्ट बहुमत भी मिला. 105 सीटें जीत कर बीजेपी सबसे बड़ा और 56 सीटें जीत कर शिवसेना दूसरा सबसे बड़ा दल बना. लेकिन इसके बाद शिवसेना सीएम की कुर्सी के लिए अड़ गई. नतीजा ये हुआ कि सरकार नहीं बन सकी और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.बाद में उद्धव ठाकरे सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के पास चले गए.तब शरद पवार ने चतुराई से बीजेपी को सत्ता का भूखा दिखाने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत की. खुद पवार ने हाल में इसका खुलासा किया. तब सुबह-सुबह राष्ट्रपति शासन हटाया गया और राज्यपाल ने फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. लेकिन तब अजित पवार को छोड़ सारे एनसीपी विधायक पवार के साथ हो गए और कुछ ही घंटों में सरकार गिर गई. इससे बीजेपी और फड़णवीस की खूब फजीहत हुई. हालांकि बाद में बीजेपी ने शिवसेना को तोड़ कर इसका बदला लिया. तब शिंदे 40 विधायकों को लेकर अलग हुए. उधर बीजेपी ने सबको चौंकाते हुए फडणवीस को डिप्टी सीएम और शिंदे को सीएम बनाया. राज्य सभा चुनाव में भी बीजेपी ने शिवसेना को झटका दिया और शिवसेना के उम्मीदवार संजय पवार को हरा दिया. इसके लिए छोटे दलों और निर्दलियों का समर्थन लिया. इससे भी उद्धव ठाकरे की पोजिशन खराब हुई.
बदला नंबर 2
हाल ही में शरद पवार ने खुलासा किया कि 2019 में उन्होंने गुगली डाली थी ताकि बीजेपी को सत्ता का भूखा बताया जा सके. पवार 2024 चुनाव के लिए विपक्षी दलों को एक करने में भी बढ़-चढ़ कर जुटे हुए हैं. हालांकि उन्हें इस बात का एहसास था कि अजित पवार कभी भी हाथ से निकल सकते हैं. इसीलिए उन्होंने मई में अपने इस्तीफे का दांव भी चला था लेकिन इस्तीफा वापस लेकर अजित पवार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था. उधर बीजेपी 2019 के अपमान को भूली नहीं थी. पर्दे के पीछे अजित पवार से लगातार बातचीत चलती रही. कल केवल अजित पवार ही नहीं, बल्कि प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे पवार के बेहद करीबियों को साथ लाकर बीजेपी ने शरद पवार से भी अपने अपमान का बदला ले लिया.
बीजेपी को क्या मिला
बीजेपी ने महाराष्ट्र की राजनीति के दो कद्दावर नेताओं शरद पवार और उद्धव ठाकरे को उन्हीं के मैदान पर शिकस्त दे दी है. दोनों की पार्टियों को तोड़ कर 2019 के अपने अपमान का बदला तो लिया ही, साथ ही आने वाले लोक सभा चुनाव के लिए अपना गढ़ भी मजबूत कर लिया है. पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने 25 और शिवसेना ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटें जीतीं थीं. जबकि एनसीपी को चार सीटों पर जीत मिली थी. इस बार बीजेपी एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ तालमेल करेगी. जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के हिसाब से यह गठबंधन एमवीए पर भारी दिख रहा है. कुल मिलाकर एनसीपी और शिवसेना तोड़ कर बीजेपी ने न केवल 2019 का बदला लिया, बल्कि महाराष्ट्र में सरकार को मजबूती भी दी है और आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी अपने समीकरण भी साध लिए.