Ground Report: महाराष्ट्र के स्कूल में जाने के लिए लगानी पड़ती है जान की बाजी, जानिए कारण

सड़क के रास्ते से जाने पर छात्र थक जाते हैं और स्कूल जाने में दिलचस्पी नहीं लेते, लेकिन जो रास्ता आसान लगता है. वहीं, सबसे खतरनाक साबित हो रहा है.

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'तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है...' मशहूर कवि अदम गोंडवी की ये लाइनें महाराष्ट्र के पालघर जिले के नाकारपाड़ा और जुगरे पाड़ा गांव पर सटीक बैठती हैं. सरकार की फाइलों में हर गांव भले तरक्की की इबारत लिख रहा हो, लेकिन विकास यहां अपनी बदहाली पर रो रहा है.

शासन-प्रशासन के लाख दावों के बावजूद ग्राउंड जीरो की तस्वीरें सच्चाई बयां कर रही हैं. हकीकत एकदम उलट और भयावह है. यहां छात्रों को स्कूल जाने के लिए हर रोज जानलेवा सफर तय करना पड़ रहा है. स्थानीय लोगों की मांग रही है कि यहां नदी पर पुल बने, लेकिन अभी तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है.

दूरी कम करने की मजबूरी

महाराष्ट्र के पालघर जिले के वाडा तालुका स्थित नाकारपाड़ा और जुगरे पाड़ा गांवों के छात्रों को स्कूल जाने के लिए हर रोज मौत का सफल तय करते हैं, ऐसा इसलिए कि क्योंकि यहां के बच्चे गरगांव स्थित स्कूल तक पहुंचने के लिए राखाडी नदी के बहते हुए बांध पर चलकर जाते हैं. अगर सड़क के रास्ते जाएं तो नदी का चक्कर लगाकर करीब 5 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है  और उतना ही वापसी का सफर भी, जबकि नदी पार करने पर सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है.

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सड़क के रास्ते से जाने पर छात्र थक जाते हैं और स्कूल जाने में दिलचस्पी नहीं लेते, लेकिन जो रास्ता आसान लगता है. वहीं, सबसे खतरनाक साबित हो रहा है. इस जानलेवा मार्ग से छात्रों की जान को खतरा हो सकता है. इसी वजह से नाकारपाड़ा और जुगरे पाड़ा के विद्यार्थियों और ग्रामवासियों ने सरकार से मांग की है कि इस नदी पर जल्द से जल्द पुल का निर्माण किया जाए.

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क्या सरकार मानेगी मांग

छात्रों और अभिभावकों का एक ही मांग है - या तो नदी पर अस्थायी बांध को मजबूत और ऊंचा किया जाए, या फिर एक स्थायी पुल का निर्माण कराया जाए. इससे न केवल छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि उनकी शिक्षा भी बाधित नहीं होगी. यह स्थिति न केवल शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता और सरकारी संवेदनहीनता पर भी गहरे सवाल खड़े करती है.

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