हिंदी विवाद: देवेंद्र फडणवीस का मास्टरस्ट्रोक या सरेंडर?

विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र की नई शिक्षा नीति के तहत तीन-भाषा सूत्र को लागू करने के लिए एक प्रस्ताव जारी किया.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • महाराष्ट्र सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव वापस लिया.
  • राज ठाकरे ने इस प्रस्ताव को हिंदी थोपने का प्रयास बताया था.
  • फडणवीस ने कहा कि एक नई भाषा नीति की समिति का गठन किया जाएगा.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही? हमें बताएं।
मुंबई:

महाराष्‍ट्र के प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी पढ़ाने को लेकर सरकार द्वारा जारी किए गए प्रस्ताव को वापस लेने  के फैसले को राज्य के राजनीतिक फलक पर अलग-अलग नजरियों से देखा जा रहा है. पिछले दो हफ्तों से इस प्रस्ताव का राजनीतिक विरोध जोर पकड़ रहा था और दक्षिण मुंबई में एक मोर्चे की शक्ल में ये अपने चरम पर पहुंचने वाला था. लेकिन देवेंद्र फडणवीस सरकार ने प्रस्तावित मोर्चे से एक सप्ताह पहले ही यह प्रस्ताव वापस लेकर विपक्ष के विरोध की हवा निकाल दी. 

क्‍या है सारा मामला 

जो लोग इस मुद्दे से परिचित नहीं हैं, उनके लिए बता दें कि विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र की नई शिक्षा नीति के तहत तीन-भाषा सूत्र (Three-Language Formula) को लागू करने के लिए एक प्रस्ताव जारी किया. इस प्रस्ताव के अनुसार, पहली से चौथी कक्षा तक के विद्यार्थियों को यदि अन्य भाषाएं पढ़ने वाले पर्याप्त छात्र न हों, तो हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य रूप से पढ़ाना होता. 

मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने सबसे पहले इस पर आपत्ति जताई और आरोप लगाया कि यह महाराष्ट्र पर हिंदी थोपने की एक छिपी हुई कोशिश है. इसके बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) ने भी इसका विरोध करने की घोषणा की. पिछले सप्ताह, राज और उद्धव ठाकरे ने अलग-अलग विरोध कार्यक्रमों की घोषणा की थी, लेकिन बाद में दोनों ने संयुक्त रूप से गिरगांव से आजाद मैदान तक एक विरोध मार्च निकालने का निर्णय लिया.

Advertisement

सीएम ने वापस ली घोषणा 

रविवार को फडणवीस ने घोषणा की कि प्रस्ताव को वापस ले लिया गया है और एक नई भाषा नीति तय करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फडणवीस का मास्टरस्ट्रोक है, क्योंकि इससे उन्होंने बीएमसी चुनावों से पहले विपक्ष के एक बड़े मुद्दे को खत्म कर दिया. यदि सरकार अपने रुख पर अड़ी रहती, तो मनसे और शिवसेना (यूबीटी) इस मुद्दे को भुनाने में सफल हो सकते थे. 

Advertisement

हालांकि, राज और उद्धव ठाकरे इस फैसले को अपनी जीत बता रहे हैं. उनके समर्थकों का दावा है कि फडणवीस सरकार के अड़ियल रवैये से मराठी मतदाता भाजपा से नाराज हो सकते थे, इसलिए प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा. 

Advertisement

तो क्‍या फिक्‍स था मैच? 

महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में यह भी कानाफूसी है कि पूरा विरोध कार्यक्रम भाजपा और मनसे के बीच का 'फिक्स मैच' था. यह संदेह तब और गहराया जब मनसे द्वारा विरोध की घोषणा से पहले फडणवीस और राज ठाकरे के बीच मुंबई के होटल ताज लैंड्स एंड में एक बंद कमरे की बैठक हुई. कुछ लोगों का मानना है कि यह प्रस्ताव जानबूझकर जारी किया गया ताकि मनसे को इसका विरोध कर अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता फिर से स्थापित करने का मौका मिले. यदि ठाकरे बंधुओं के बीच समझौता नहीं हुआ, तो पुनर्जीवित मनसे शिवसेना (यूबीटी) के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है जो कि बीजेपी के लिए फायदे की बात होगी. 

Advertisement
Featured Video Of The Day
Mumbai: BMC के चुनाव में अकेले उतर सकती है Congress, MVA से अलग होकर मिलेगा फायदा ? | Do Dooni Char