डीएमके प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि (फाइल फोटो).
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करुणानिधि को 'कलाईनार' यानि कि "कला का विद्वान" कहा जाता है
14 साल की उम्र में राजनीति की सीढ़ी चढ़ी, 20 साल में पटकथा लेखक बने
सन 1942 में शुरू किया अखबार 'मुरासोली' अब डीएमके का मुखपत्र
करुणानिधि लेखक, नाटककार और तमिल सिनेमा जगत के एक जानेमाने पटकथा लेखक के रूप में जाने जाते थे. उनके समर्थक उन्हें 'कलाईनार' यानि कि "कला का विद्वान" भी कहते हैं. करुणानिधि ने 20 वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म उद्योग की कंपनी 'ज्यूपिटर पिक्चर्स' में पटकथा लेखक के रूप में अपना करियर शुरू किया था. अपनी पहली फिल्म 'राजकुमारी' से ही वे लोकप्रिय हो गए. पटकथा लेखक के रूप में उनके हुनर में क्रमश: निखार आता गया. उनकी लिखीं 75 से अधिक पटकथाएं काफी लोकप्रिय हुईं. भाषा पर महारत रखने वाले करुणानिधि कुशल वक्ता भी थे और इसी खासियत ने उन्हें एक प्रभावी राजनेता बना दिया.
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करुणानिधि ने द्रविड़ आंदोलन के माध्यम से राजनीति की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया था. वे समाजवादी और बौद्धिक आदर्शों को प्रोत्साहित करने वाली ऐतिहासिक व सुधारवादी कथाएं लिखने वाले रचनाकार के रूप में मशहूर हुए. तमिल सिनेमा जगत की वे जानीमानी हस्ती रहे थे. उन्होंने अपनी फिल्म 'पराशक्ति' के जरिए अपने राजनीतिक विचारों का प्रसार किया था. यह फिल्म तमिल सिनेमा जगत में मील का पत्थर बनी. इसके जरिए द्रविड़ आंदोलन को समर्थन मिला और तमिल सिनेमा की दो बड़ी शख्सियतें अभिनेता शिवाजी गणेशन और एसएस राजेंद्रन लोकप्रिय हुए. पहले इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा लेकिन बाद में (1952) इसे आखिर रिलीज कर दिया गया. फिल्म सुपर हिट हुई लेकिन साथ में विवाद भी हुए. फिल्म में कथित रूप से ब्राह्मणवाद की आलोचना होने के कारण रूढ़िवादी हिंदुओं ने इसका विरोध किया था. समाज सुधार करुणानिधि के लेखन में होता था जो उनकी फिल्मों में भी प्रतिबिंबित होता था. उनकी दो अन्य फिल्में 'पनाम' और 'थंगारथनम' में विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का विरोध, जमींदारी प्रथा का विरोध और धार्मिक पाखंडों का विरोध दिखाई देता है. करुणानिधि के सामाजिक सरोकार से परिपूर्ण फिल्में जहां लोकप्रिय हुईं वहीं उनकी इन्हीं विषयों पर केंद्रिय नाटक भी मशहूर हुए. यही कारण था कि उन्हें जब-तब सेंसरशिप का सामना करना पड़ा. पचास के दशक में उनके दो नाटकों पर प्रतिबंध लगाया गया था.
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आजादी से पहले सन 1938 में जस्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के भाषण ने करुणानिधि को राजनीति की राह दिखा दी थी, जबकि उस समय उनकी उम्र सिर्फ 14 साल थी. वे हिंदी विरोधी आंदोलन से जुड़ गए थे. जल्द ही उन्होंने अपने क्षेत्र के युवाओं को साथ लेकर एक संगठन बना लिया. जुझारू युवाओं का यह संगठन 'मनावर नेसन' नाम का एक अखबार प्रकाशित करता था जो कि हाथ से लिखकर तैयार किया जाता था. इसके बाद करुणानिधि ने एक छात्र संगठन 'तमिलनाडु तमिल मनावर मंद्रम' की स्थापना की. यह संगठन द्रविड़ आंदोलन की पहली छात्र इकाई थी. करुणानिधि ने 10 अगस्त 1942को छात्र संगठन के सदस्यों के लिए एक अखबार 'मुरासोली' शुरू किया जो कालांतर में डीएमके का आधिकारिक अखबार बना. मुरासोली मासिक अखबार था जो कि बाद में साप्ताहिक हुआ और अब एक दैनिक है. करुणानिधि ने अपनी राजनीतिक विचारधाराओं और मुद्दों के प्रसार के लिए एक पत्रकार और कार्टूनिस्ट के रूप में भी अपनी प्रतिभा का उपयोग किया. वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को रोज चिट्ठी लिखते थे और यह सिलसिला 50 साल तक चलता रहा. करुणानिधि 'कुडियारसु', 'मुत्तारम', 'अरासु' सहित कई तमिल और अंग्रेजी के पत्र-पत्रिकाओं का संपादकीय दायित्व निभाते रहे हैं.
करुणानिधि राजनीतिज्ञ, फिल्म पटकथा लेखक, पत्रकार के साथ-साथ तमिल साहित्यकार के रूप भी प्रसिद्ध थे. उन्होंने कविताएं, उपन्यास, जीवनी, निबंध, गीत आदि भी रचे. उनकी लिखी हुई किताबों की संख्या सौ से अधिक है. करुणानिधि ने सन 1970 में पेरिस में आयोजित तीसरे विश्व तमिल सम्मलेन के उद्घाटन दिवस पर और सन 1987 में कुआलालम्पुर में छठे विश्व तमिल सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर विशेष भाषण दिए थे.
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