लोकसभा चुनाव 2024: बिहार की पूर्णिया सीट कभी कांग्रेस का गढ थी, इस बार क्यों गर्म है माहौल?

पूर्णिया लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. उसका 1984 तक इस सीट पर एक तरह से एकक्षत्र राज रहा, लेकिन बाद में उसका यह गढ़ उसके हाथ से निकल गया. इस लोकसभा चुनाव में कैसी है पूर्णिया की लड़ाई.

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पूर्णिया से चौथी हार जीतने के लिए पप्पू यादव चुनाव मैदान में हैं.
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) के दूसरे चरण का मतदान (Second Phase Voting) 26 अप्रैल को कराया जाएगा. जिन सीटों पर मतदान होना है, उनमें बिहार का पांच सीटें भी शामिल हैं.ये सीटें हैं किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका. इस दौर में बिहार की जिस सीट की चर्चा है, वह है पूर्णिया(Purnia Lok Sabha Seat).इस सीट के मुकाबले को दिलचस्प बना रहे हैं बाहुबली छवि वाले नेता राजेश रंजन ऊर्फ पप्पू  यादव (Pappu Yadav).आइए जानते हैं कि पूर्णिया सीट कैसी है और कैसा रहा है इतिहास.

पूर्णिया लोकसभा सीट में विधानसभा क्षेत्र बनमनखी, धमदाहा, कस्बा, कोरहा, पूर्णिया , रूपौली विधानसभा क्षेत्र आते हैं. आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले आम चुनाव में इस सीट को पूर्णिया सेंट्रल, पूर्णिया-संथाल और पूर्णिया उत्तर-पूर्व के रूप में बंटा हुआ था. इसके बाद से हुए लोकसभा चुनाव में इसका नाम पूर्णिया कर दिया गया. 

पूर्णिया लोकसभा सीट का इतिहास

आजादी के बाद से लेकर 1984 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. बीच में आपातकाल के बाद कराए गए चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस को हार को सामना करना पड़ा था.उस चुनाव में यह सीट भारतीय लोक दल ने जीत ली थी. लेकिन 1984 के बाद से कांग्रेस इस सीट पर कभी नहीं जीत पाई. 

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बिहार में सरकार चला रहे एनडीए गठबंधन ने पांच बार इस सीट से जीत दर्ज की है. इनमें से तीन बार (1998, 2004 और 2009) में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. वहीं जयदू ने दो बार इस सीट पर जीत दर्ज की है. जदयू ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले के दम पर लड़ा था. उस दौर में चली बीजेपी की आंधी में भी जदयू ने इस सीट पर कब्जा जमाया था. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जदयू एक साथ आ गए थे. इस गठबंधन का प्रभाव लोकसभा चुनाव में भी नजर आया था. जदयू ने 2019 में भी इस सीट पर कब्जा जमा लिया था. 

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पूर्णिया सीट की लड़ाई

साल 2019 के चुनाव में जदयू के चुनाव में छह लाख 32 हजार से अधिक वोट लेकर जीत दर्ज की थी. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को  को करीब तीन लाख 80 हजार वोट मिले थे.अगर इस वोट फिसदी की बात करें तो जदयू ने 54.85 फीसदी और कांग्रेस ने 32.02 फीसद वोट हासिल किए थे. 

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पूर्णिया लोकसभा सीट पर करीब 18 लाख मतदाता हैं.पूर्णिया सीट के मतदाताओं में करीब 60 फीसदी हिंदू और करीब 40 फीसदी मुसलमान हैं. पूर्णिया में ओबीसी और दलित मतदाताओं की संख्या पांच लाख से ऊपर बताई जाती हैं.

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इस बार के चुनाव को यहां से तीन बार सांसद चुने गए राजेश रंजन उर्फू पप्पू यादव दिलचस्प बना रहे हैं.  दरअसल पप्पू यादव ने अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी का चुनाव से पहले ही कांग्रेस में विलय कर दिया था. उन्हें उम्मीद थी कि इंडिया गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में आ जाएगी. लेकिन जिद करके लालू प्रसाद यादव की राजद ने पूर्णिया सीट अपने पास रख ली. पार्टी ने वहां से रूपौली की विधायत बीमा भारती को अपना टिकट भी दे दिया है. वो जदयू छोड़कर राजद में आई हैं.

पूर्णिया की लड़ाई को दिलचस्प बना रहे हैं पप्पू यादव

इस वजह से पूर्णिया का मुकाबला दिलचस्प हो गया है. राजद ने इस सीट को अपनी नाक का सवाल बना लिया है.तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में प्रचार करते हुए पप्पू यादव को बीजेपी का एजेंट भी बता चुके हैं. वो यहां तक कह चुके हैं कि अगर आप राजद को वोट नहीं दे सकते हैं तो जदयू को वोट दे दीजिए.जदयू ने अपने सांसद संतोष कुमार को ही टिकट दिया है.

पप्पू यादव ने काफी पहले ही चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था. चुनाव प्रचार के दौरान वो लोगों से काफी घुलते मिलते नजर आए.वहीं सांसद होने की वजह से संतोष कुमार की भी पकड़ इलाके में अच्छी मानी जा रही है. पूर्णिया के लिए बीमा भारती भी बाहरी नहीं हैं, वो भी जिले की रूपौली विधानसभा क्षेत्र की विधायक हैं.इसलिए पूर्णिया का मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.इस मुकाबले में भारी कौन पड़ता है, इसका पता तो चार जून को ही चल पाएगा, जब नतीजे आएंगे.

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