रेडियो पर फरमाइशी फिल्मी गीत सुनने के शौकीन लोगों ने झुमरी तलैया का नाम जरूर सुना होगा. ऐसे रेडियो स्टेशन जहां हिंदी फिल्मी गाने सुनाए जाते थे वहां गानों की फरमाइश करने वालों में झुमरी तलैया के श्रोताओं के नाम जरूर शामिल होता था.इन्हीं फरमाइशों की वजह से झारखंड के इस छोटे से कस्बे ने देश में अपनी पहचान बनाई थी.यह कस्बा झारखंड के कोडरमा जिले का तहसील मुख्यालय है. झुमरी तलैया कोडरमा लोकसभी सीट के तहत आता है, जहां 20 मई को मतदान होना है.
'गेटवे ऑफ झारखंड'
कोडरमा को 'गेटवे ऑफ झारखंड' कहा जाता है.कोडरमा एक समय अभ्रक की खदानों के लिए मशहूर था.जिले में अभ्रक की 700 से अधिक खदाने थीं.कोडरमा की पहचान अभ्रक जिले के रूप में थी.ये खदानें समृद्धि का प्रतीक थीं. माइका की चमक ने इस जिले की पहचान पूरी दुनिया में बिखेरी.लेकिन 1980 के दशक में वन कानून के प्रभावी होने के बाद यह चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी.अभ्रक की खदानों में हजारों लोगों को रोजगार मिलता था.लेकिन खदानें बंद होने के साथ ही बेरोजगारी बढ़ी.रोजगार की तलाश में लोग दूसरे शहरों में पलायन करते चले गए.इसलिए रोजगार कोडरमा के चुनाव में एक बड़ा मुद्दा है.
कोडरमा लोकसभा सीट पिछले कई दशक से बीजेपी की परंपरागत सीट बनी हुई है.झारखंड बीजेपी अध्यक्ष और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी इस सीट से तीन बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.वे एक बार बीजेपी के टिकट पर जीते थे. इसके अलावा दो बार वह निर्दलीय और अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चुनाव जीते. 2019 के चुनाव में भाजपा की अन्नपूर्णा देवी यहां से सांसद हैं.पहली बार सांसद चुनी गईं अन्नपूर्णा देवी को नरेंद्र मोदी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री बनाया गया था.अन्नपूर्णा देवी राष्ट्रीय जनता दल छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थीं.
कोडरमा सीट का इतिहास
कोडरमा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी. कोडरमा में अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में से तीन कांग्रेस ने जीते हैं. वहीं भाजपा ने छह बार इस सीट पर कब्जा जमाया है. साल 2004 में बीजेपी के टिकट पर बाबूलाल मरांडी जीते थे. उस चुनाव में बीजेपी केवल कोडरमा सीट ही जीत पाई थी.वहीं 2006 में हुए उपचुनाव में मरांडी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर यहां से जीत दर्ज की थी.मरांडी 2009 में बीजेपी से इस्तीफा देकर झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर कोडरमा से जीते थे. वहीं 2014 के मोदी लहर में भाजपा उम्मीदवार रवींद्र राय कोडरमा से सांसद चुने गए. लेकिन 2019 में बीजेपी ने उनका टिकट काटकर अन्नपूर्णा देवी को दे दिया. मोदी लहर में अन्नपूर्णा ने 2019 के चुनाव में मरांडी को साढ़े चार लाख से अधिक के अंतर से हरा दिया था. अन्नपूर्णा को 62.3 फीसदी वोट मिले थे. महागठबंधन के उम्मीदवार रहे मरांडी केवल 24.6 फीसदी वोट ही हासिल कर पाए थे.
वहीं विपक्षी इंडिया गठबंधन ने कोडरमा सीट भाकपा (माले) को दी है. माले ने यहां से बगोदर से विधायक रहे विनोद सिंह को उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर वाम दलों का अच्छा-खासा वोट है. साल 2014 में कोडरमा में माले उम्मीदवार राजकुमार यादव दूसरे स्थान पर थे. उन्हें करीब एक लाख वोट मिले थे. वहीं 2019 के चुनाव में माले ने राजकुमार यादव पर ही भरोसा जताया. लेकिन वो तीसरे स्थान पर रहे. उन्होंने 68 हजार से अधिक मिले.
कैसी है इस बार की लड़ाई
कोडरमा लोकसभा सीट में छह विधानसभा सीटें हैं. इसमें से कोडरमा, जमुआ और धनवार पर भाजपा का कब्जा है. बगोदर सीट माले ने जीता था. वहीं बरकट्ठा पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता था. गांडेय में झामुमो के सरफराज अहमद जीते थे. लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इस वजह से गांडेय में उपचुनाव कराया जा रहा है. वहां से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन चुनाव झामुमो की उम्मीदवार हैं. इस वजह से भी 2024 में कोडरमा की लड़ाई महत्वपूर्ण हो गई है.
इस बार बीजेपी ने एक बार फिर अन्नपूर्णा देवी को कोडरमा से उम्मीदवार बनाया है. उनके मुकाबले इंडिया गठबंधन ने बगोदर के भाकपा माले के विधायक विनोद सिंह को उतारा है.यहां से जेएमएम नेता और पूर्व विधायक जयप्रकाश वर्मा भी चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने कोडरमा की लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है.
कोडरमा सीट पर ओबीसी और मुसलमान अधिक संख्या में हैं. सवर्ण जातियों की संख्या भी ठीक-ठाक है. ओबीसी और सवर्ण जातियों के समर्थन से बीजेपी कोडरमा में जीत का परचम लहराती रही है. लेकिन इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के बागी जेपी वर्मा के उतरने से कोडरमा की लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है.वर्मा कोडरमा से पांच बार सांसद रहे रीतलाल प्रसाद वर्मा के परिवार से आते हैं.कुशवाहा जाति के वर्मा का परिवार कोडरमा में प्रभावी है.कुशवाहा कोडरमा में एक बहुत बड़ा फैक्टर हैं.
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