मेनका गांधी : 23 की उम्र में पति को खोया, फिर चुनाव में जेठ से मिली हार, कुछ ऐसा रहा सियासी सफ़र

BJP की वरिष्ठ नेता मेनका गांधी (Maneka Gandhi) भूतपूर्व PM इंदिरा गांधी की पुत्रवधू और दिवंगत कांग्रेस (Congress) नेता संजय गांधी की पत्नी हैं. उन्हें जानवरों से काफी लगाव है और वह उनके अधिकारों के लिए लड़ती हैं. उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
मेनका गांधी (फ़ाइल फ़ोटो)
नई दिल्ली:

मेनका गांधी (Maneka Gandhi) की सबसे खास बात ये है कि उन्होंने बीते 2 दशक से कोई चुनाव नहीं हारा है. वह पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की बहू और दिवंगत कांग्रेस (Congress) नेता संजय गांधी की पत्नी हैं. उन्हें जानवरों से काफी लगाव है और वह उनके अधिकारों के लिए लड़ती हैं. उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं. मेनका गांधी को बीजेपी (BJP) के सीनियर नेताओं में से एक माना जाता है. पति संजय गांधी के निधन के बाद उनके अपनी सास इंदिरा गांधी से बहुत मधुर संबंध नहीं रहे इसलिए वह कांग्रेस से अलग हो गईं. बाद में उन्होंने राष्ट्रीय संजय मंच बनाया, इस मंच ने शुरुआत में युवाओं की जागरुकता और रोजगार के मुद्दे को उठाया. आंध्र प्रदेश में हुए चुनावों में इस मंच ने 5 में से 4 सीटें जीती थीं. मेनका गांधी ने एक किताब 'द कम्पलीट बुक ऑफ मुस्लिम एण्ड पारसी नेम्स' को भी पब्लिश किया क्योंकि उनके पति संजय गांधी का पारसी धर्म में बहुत विश्वास था. बाद में उन्होंने 'द बुक ऑफ हिंदू नेम्स' पब्लिश की. 

ये भी पढ़ें: Video: वरुण गांधी का विपक्षी उम्मीदवार पर हमला, 'संजय गांधी का लड़का हूं, इन जैसों से जूते खुलवाता हूं'

कहां से शुरू हुआ मेनका गांधी का सफर

मेनका आनंद का जन्म 26 अगस्त 1956 को नई दिल्ली में एक सिख परिवार में हुआ. उनके पिता सेना में अधिकारी थे. उनकी पढ़ाई सेंट लॉरेन्स स्कूल और लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वूमेन से हुई. उन्होंने जेएनयू दिल्ली से जर्मन भाषा की भी पढ़ाई की. एक कॉकटेल पार्टी के दौरान उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई और फिर दोनों ने शादी करने का फैसला किया. मेनका, संजय के साथ चुनाव कैंपेनिंग में जाया करती थीं और उनकी खूब मदद करती थीं. उस दौर में संजय गांधी बहुत प्रभावशाली थे और उनका अपनी मां और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के फैसलों में सीधा दखल रहता था.

Advertisement

इसी बीच मेनका गांधी ने सूर्या नाम से एक मैगजीन की शुरुआत की थी जिसने 1977 के चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद इसके प्रमोशन का जिम्मा उठाया था. 1980 में उनके और संजय गांधी के एक बेटा हुआ, जिसका नाम दादा फिरोज के नाम पर रखा गया. बाद में इंदिरा ने इस नाम के आगे वरुण जोड़ दिया. मेनका जब 23 साल की थीं और वरुण केवल 3 महीने के थे, तभी संजय गांधी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हो गया.

Advertisement

1984 के लोकसभा चुनावों में मेनका ने मजबूत दावेदारी पेश की लेकिन राजीव गांधी के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में वह निर्दलीय खड़ी हुई थीं. 1988 में उन्होंने वीपी सिंह का जनता दल ज्वाइन किया और इसकी महासचिव बनीं. 1989 में मेनका ने पहली बार पीलीभीत से चुनाव जीता और पर्यावरण राज्यमंत्री बनीं. 1996 में वह दोबारा पीलीभीत से सांसद चुनी गईं. तब से लेकर अब तक वह कोई चुनाव नहीं हारी हैं. 1998-99 में वह राज्यमंत्री (सोशल जस्टिस और इमपावरमेंट-स्वतंत्र प्रभार) रहीं. 2001 में भी उन्हें राज्यमंत्री(स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया.

Advertisement

ये भी पढ़ें: वरुण गांधी: 3 महीने की उम्र में पिता को खोया, 4 साल की उम्र में दादी को खोया, कुछ ऐसा है ये सफर...

Advertisement

2001 से 2014 तक उन्होंने कई कमेटियों की जिम्मेदारी संभाली. 2014 में उन्हें केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया. 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उनकी सीट बदली है. इस बार वह पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर से चुनाव लड़ रही हैं. मेनका जानवरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता हैं. इसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय तौर पर कई पुरस्कार मिले हैं. 1992 में उन्होंने पीपल फॉर एनीमल नाम से एक संगठन भी शुरू किया जो भारत में जानवरों के हितों के लिए काम करने वाला सबसे बड़ा संगठन है. 

वीडियो- यह संविधान बचाने वाला चुनाव है : अयोध्‍या में बोलीं प्रियंका गांधी 

Featured Video Of The Day
Kamala Harris को Politics में हुए हैं 7 साल! फिर कैसे बन गईं President Election में Candidate?