लद्दाख क्षेत्र को हर मौसम में देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले जोजिला सुरंग का रणनीतिक काम कश्मीर के सैकड़ों स्थानीय लोगों द्वारा किया जा रहा है. परियोजना को क्रियान्वित करने वाली हैदराबाद की कंपनी मेगा इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (एमईआईएल) का कहना है कि स्थानीय मजदूरों और इंजीनियरों द्वारा सुरंग खोदने में विशेषज्ञता उन्हें निर्धारित समय से पहले अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद कर रही है. 13 किलोमीटर लंबी सुरंग पर काम करने वाले 1000 लोगों में से 900 लोग जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं.
बांदीपोरा के बाबा लतीफ ने कहा, "मैंने कड़ी मेहनत और लगन से सीखा है. हाइड्रोलिक रिग जैसी ऑपरेटिंग मशीन मेरे लिए बहुत आसान है, मुश्किल काम नहीं है. जब मैं सुरंग के बीच में ड्रिल करता हूं तो कोई डर नहीं होता."
श्रमिकों का कहना है कि पिछले 20 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में रेलवे, सड़क और बिजली की प्रमुख परियोजनाओं में काम करने के बाद उनके पास अनुभव है.
सुरंग में पाइपिंग सिस्टम लगाने वाले अनंतनाग के सरताज अहमद ने कहा, "हमारे पास टनलिंग परियोजनाओं में विशेषज्ञता है. मैं पाइपिंग, मोटर उपयोग आदि को संभाल सकता हूं. यह चौथी ऐसी परियोजना है, जिसमें मैं काम कर रहा हूं." 200 इंजीनियरों में से आधे से ज्यादा स्थानीय भी हैं. वहीं भूवैज्ञानिक विशेषज्ञ मेराजुदीन ने कहा, "हम तीन भूगर्भीय संरचनाओं का सामना करते हैं. अभी हम जोजिला गठन में हैं जो सबसे चुनौतीपूर्ण है."
परियोजना प्रबंधक ने वर्करों के तेजी से काम करने को लेकर इसमें स्थानीय लोगों की भूमिका की प्रशंसा की है.
प्रोजेक्ट मैनेजर हरपाल सिंह ने कहा, "मैं पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रहा हूं. वे मेरे लिए इतना उत्पादन कर रहे हैं. कभी-कभी वे मेरी अपेक्षाओं को भी पार कर जाते हैं. अगर मुझे लगता है कि आज छह मीटर सुरंग बनाना ही संभव है, तो अगली सुबह वे कहते हैं कि हमने कुछ सात मीटर सुरंग बना दी है."
ये स्थानीय कार्यकर्ता ही हैं जिन्होंने कश्मीर की कठोर सर्दियों के दौरान भी गति को कम नहीं होने दिया, जो भारत की रणनीतिक और प्रतिष्ठित परियोजना को समय से पहले पूरा करना सुनिश्चित कर सकते हैं.
बता दें कि श्रीनगर और लेह के बीच वर्तमान में कारगिल जिले से होकर जाना पड़ता है, जहां भारत ने 1999 में युद्ध लड़ा था. 11,500 हजार फीट की ऊंचाई पर जोजिला दर्रे को पार करना एक चुनौती है. बर्फबारी के कारण साल में 5 महीने बंद रहने वाला दर्रा भी संकरा है और धूल भरे, ऊंचाई वाले दर्रे में हर रोज ट्रैफिक जाम में फंसना पड़ता है.
इस परियोजना से पाकिस्तान और चीन सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों को भी सामान आदि पहुंचाने में मदद मिल सकेगी.
गौरतलब है कि सर्दियों में जोजिला दर्रा बंद होने के कारण केवल वायु सेना के विमान ही लद्दाख में उड़ान भर सकते हैं. 2024 तक रक्षा उपयोग के लिए सुरंग के खुलने की उम्मीद है. इसके बाद दर्रे को पार करने में केवल 30 मिनट का समय लगेगा, जिसमें अभी तीन घंटे लगते हैं. इतना ही नहीं, पूरा होने के बाद 4,500 करोड़ रुपये की परियोजना भारत में सबसे लंबी सड़क सुरंग बन जाएगी.
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