केंद्र सरकार के लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के जरिए सीधी भर्ती करने का निर्णय विवादों में है. इसे लेकर के विपक्ष हमलावर है और लगातार सवाल उठा रहा है. विपक्ष का मानना है कि इससे एससी-एसटी और ओबीसी के आरक्षण पर असर पड़ेगा. राहुल गांधी (Rahul Gandhi), अखिलेश यादव और मायावती सहित कई विपक्षी नेताओं ने इसे लेकर अपना विरोध जताया है. हालांकि अब इसे लेकर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) ने विपक्ष पर पलटवार किया है और कहा है कि कांग्रेस का विरोध पाखंड के अलावा कुछ नहीं है क्योंकि इसकी अवधारणा यूपीए सरकार के समय ही तैयार हुई थी.
सरकार ने पारदर्शी तरीका बनाया है : वैष्णव
वैष्णव ने कहा, "एनडीए सरकार ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी तरीका बनाया है. यूपीएससी के माध्यम से पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से भर्ती की जाएगी. इस सुधार से शासन में सुधार होगा."
दूसरे एआरसी को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिक-अनुकूल बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. आयोग ने सिविल सेवाओं के भीतर कार्मिक प्रबंधन में सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया. इसकी एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि ऐसे उच्च सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री शुरू की जाए, जिसके लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है.
एआरसी ने पेशेवरों के एक प्रतिभा पूल के निर्माण का भी प्रस्ताव दिया था जिन्हें अल्पकालिक या संविदा के आधार पर सरकार में शामिल किया जा सके. उसने सुझाव दिया था कि मौजूदा सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री से प्रवेश पाने वाले अधिकारियों को इस तरह से एकीकृत किया जाना चाहिए कि सिविल सेवा की अखंडता और लोकाचार को बनाए रखा जा सके और साथ ही उनके विशेष कौशल का लाभ उठाया जा सके.
प्रथम एआरसी ने भी ऐसी ही बात कही थी
इससे पहले मोरारजी देसाई (और उनके बाद के. हनुमंतैया) की अध्यक्षता में 1966 में गठित प्रथम एआरसी ने भी सिविल सेवाओं के भीतर विशेष कौशल की आवश्यकता पर बल देते हुए भविष्य की में इस पर चर्चा के लिए आधार तैयार किया था. हालांकि उसने सीधे-सीधे लेटरल एंट्री की वकालत नहीं की थी.
सरकार का मुख्य आर्थिक सलाहकार पारंपरिक रूप से एक लेटरल एंट्री से शामिल अधिकारी होता है, जो नियमों के अनुसार, 45 वर्ष से कम आयु का होता है और हमेशा एक प्रख्यात अर्थशास्त्री होता है.
मोदी सरकार ने 2018 में संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए लेटरल एंट्री के जरिये पहली बार भर्ती की थी अब दूसरी बार इस तरह की पहल की जा रही है.
सरकार के कदम को राहुल गांधी ने बताया राष्ट्र विरोधी
इस मामले में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री के जरिये लोक सेवकों की भर्ती के सरकार के कदम को राष्ट्र विरोधी करार दिया और आरोप लगाया कि इस तरह की कार्रवाई से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण ‘‘खुलेआम छीना जा रहा है.''
उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा कहा है कि शीर्ष नौकरशाहों समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय लेटरल एंट्री द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है. यह यूपीएसएसी की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है.
देशव्यापी आंदोलन का समय आ गया : अखिलेश यादव
वहीं अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर लिखा कि भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाजे से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साजिश कर रही है, उसके खिलाफ एक देशव्यापी आंदोलन करने का समय आ गया है.
उन्होंने कहा, ‘‘आम लोग बाबू व चपरासी तक ही सीमित हो जाएंगे. दरअसल यह सारी चाल पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों) से आरक्षण और उनके अधिकार छीनने की है.''
यह संविधान का सीधा उल्लंघन होगा : मायावती
वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने भी सरकार के इस फैसले को गलत बताया और एक्स पर लिखा, ‘‘केन्द्र में संयुक्त सचिव, निदेशक एवं उपसचिव के 45 उच्च पदों पर सीधी भर्ती का निर्णय सही नहीं है, क्योंकि सीधी भर्ती के माध्यम से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित रहना पड़ेगा.''
उन्होंने कहा, ‘‘इसके साथ ही, इन सरकारी नियुक्तियों में एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति) व ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदायों के लोगों को उनके कोटे के अनुपात में अगर नियुक्ति नहीं दी जाती है तो यह संविधान का सीधा उल्लंघन होगा.''
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने शनिवार को 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया, जिनमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव के पद शामिल हैं. ये पद अनुबंध के आधार पर 'लेटरल एंट्री' के जरिए भरे जाने हैं.