हिमाचल प्रदेश में बीते कुछ समय से भूस्खलन की कई घटनाएं सामने आई है. राज्य में हो रही ऐसी घटनाओं को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग ने रविवार को एक आंकड़ा जारी किया. इन आंकड़ों की मदद से बताया गया है कि बीते दो साल में राज्य में भूस्खलन के कुल मामलों में छह गुना की बढ़ोतरी हुई है. राज्य में वर्ष 2020 में भूस्खलन के महज 16 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि 2022 में यह मामले छह गुना बढ़कर 117 हो गए.
विभाग के मुताबिक, राज्य में 17,120 भूस्खलन संभावित स्थल चिन्हित किए गए हैं. जिनमें से 675 स्थल महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों और बस्तियों के पास हैं. चिन्हित किए गए स्थानों में से चंबा में (133), मंडी में (110), कांगड़ा में (102), लाहौल और स्पीति में (91), ऊना में (63), कुल्लू में (55), शिमला में (50), सोलन में (44), बिलासपुर में (37), सिरमौर में (21) और किन्नौर (15) में स्थित है.
विशेषज्ञों का मानना है कि पहाड़ी ढलानों या तलहटी में चट्टानों के कटाव के साथ तेज बारिश भूस्खलन के कारणों की प्रमुख वजह है. भूवैज्ञानिक विशेषज्ञ प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह धर ने सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण के लिए पहाड़ी ढलानों की व्यापक कटाई, सुरंगों , जलविद्युत परियोजनाओं और खनन के लिए विस्फोट को भूस्खलन में वृद्धि का कारण बताया है.
बता दें कि पिछले साल राज्य में भूस्खलन के 117 मामलों में कुल्लू सबसे अधिक प्रभावित रहा. यहां, भूस्खलन के 21 मामले सामने आए. जबिक, मंडी (20), लाहौल और स्पीति (18), शिमला (15), सिरमौर (9), बिलासपुर (8), कांगड़ा (5), किन्नौर (3), सोलन (3) और ऊना (1) मामले दर्ज किए गए. वहीं, हमीरपुर में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया.
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही में कहा कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) राज्य में सड़कों के विस्तार के कारण होने वाले भूस्खलन को कम करने और रोकने के उपायों पर सुझाव के लिए अवधारणा पत्र पेश करेगा और जरूरी उपायों पर 300 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे.