एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं? कुशवाहा, मांझी और चिराग की महत्वकांक्षा से बिगड़ा समीकरण

उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी बिहार की जातिगत राजनीति का आईना है, जहां छोटे नेता अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाने के लिए दबाव बनाते हैं. 2024 लोकसभा में NDA की जीत के बावजूद, ऐसे विवाद 2025 में सत्ता बरकरार रखने की चुनौती बढ़ा रहे हैं. सीटों का यह बंटवारा एनडीए को मजबूत दिखाने की कोशिश है, लेकिन विवाद छोटे दलों की महत्वाकांक्षा और आंतरिक असंतोष को उजागर करते हैं.

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  • बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एनडीए ने 243 सीटों का सीट बंटवारा अंतिम रूप दिया
  • RLM के उपेंद्र कुशवाहा को छह सीटें दी गईं, जबकि उन्होंने कम से कम दस से बारह सीटें मांगी थीं
  • कुशवाहा ने सीट बंटवारे को असंतोषजनक बताया और कहा कि उन्हें जीतने वाली सीटें नहीं मिलीं, जिससे नाराजगी बढ़ी
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पटना:

बीजेपी ने कल अपनी पहली उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी, लेकिन उम्मीदवारों के नाम उम्मीद से कम आए सिर्फ़ 71. जबकि अंदाज ये लगाया जा रहा था कि बीजेपी 100 के आसपास उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करेगी. उससे ये तो साफ़ हो जाता हैं कि सबकुछ ठीक नहीं है और यही बात कल उपेन्द्र कुशवाहा ने मीडिया से बात करते कही कि सब कुछ ठीक नहीं है एनडीए में. जाहिर सी बात है कि उन्होंने अपनी नाराजगी साफ़ तौर पर जाहिर कर दी.

एनडीए का सीट बंटवारा और विवाद

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एनडीए ने हाल ही में सीट बंटवारा अंतिम रूप दे दिया है, लेकिन इस प्रक्रिया में कई विवादों ने जोरदार तरीके से सुर्खियां बटोरीं. चुनाव दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होंगे, जबकि वोट गिनती 14 नवंबर को होगी. कुल 243 सीटों पर सियासत गरमाई हुई है, जहां एनडीए को मुख्य चुनौती छोटे सहयोगियों की महत्वाकांक्षाओं और अंदरूनी असंतोष से मिल रही है.

एनडीए ने 12 अक्टूबर 2025 को अपना सीट बंटवारा घोषित किया, जो पहले की तुलना में अधिक संतुलित दिखता है। पार्टियों को निम्नलिखित सीटें मिलीं-

भाजपा (BJP): 101 सीटें

  • जनता दल (यूनाइटेड) : 101 सीटें
  • लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) - : 29 सीटें
  • राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM): 6 सीटें
  • हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) : 6 सीटें

कुल: 243 सीटें

यह बंटवारा अमित शाह और जेपी नड्डा की अगुवाई में कई दौर की बैठकों के बाद तय हुआ. भाजपा के बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि 99% सीटों पर सहमति हो चुकी है, बाकी जल्द तय होंगी. यह पहली बार है जब JDU और BJP बराबर सीटें लड़ेंगी, जो गठबंधन में शक्ति संतुलन का संकेत देता है. कुल मिलाकर, एनडीए के पास 243 में से 243 सीटों का पूरा कवरेज है, लेकिन कुछ सीटों पर “गुणवत्ता” (जीतने की संभावना) को ध्यान में रखा गया.

विवादों का दौर

सीट बंटवारा तय करने से पहले और बाद में कई विवाद उभरे, जो एनडीए की एकजुटता पर सवाल उठाने लगे.

1. HAM(S) और जीतन राम मांझी का असंतोष:

मांझी ने शुरुआत में प्रस्तावित फॉर्मूले को ठुकरा दिया था. उन्होंने X पर रामधारी सिंह दिनकर की कविता का हवाला देकर नाराजगी जताई: “हो न्याय अगर तो आधा दो…” अंततः 6 सीटें मिलीं, लेकिन वे विधानसभा में मान्यता के लिए और सीटें चाहते थे. मांझी ने कहा, “हम किसी से विवाद में नहीं, बस पर्याप्त सीटें मांग रहे हैं.”

2. चिराग पासवान की मांग:

चिराग ने 40 सीटें मांगी थीं, लेकिन 29 पर सहमत हुए. 8 अक्टूबर को उन्होंने गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात की, जहां “सब कुछ सकारात्मक” बताया गया. फिर भी, LJP कार्यकर्ता अधिक सीटें चाहते थे. 2020 में चिराग ने स्वतंत्र रूप से 134 सीटें लड़ीं, जिससे JDU को नुकसान हुआ था.

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3. JDU के आंतरिक टिकट विवाद:

बंटवारे के बाद JDU में टिकट वितरण पर बगावत हुई. 14 अक्टूबर को भागलपुर के JDU सांसद अजय मंडल ने नीतीश को इस्तीफे की अनुमति मांगी. गोपाल मंडल जैसे कई विधायकों ने सीएम आवास के बाहर धरना दिया. 13 अक्टूबर को एक JDU नेता ने टिकट न मिलने पर इस्तीफा दे दिया, इससे JDU की एकजुटता पर सवाल उठे.

उपेंद्र कुशवाहा की सीट बंटवारे को लेकर नाराजगी

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के सीट बंटवारे में राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के नेता उपेंद्र कुशवाहा को 6 सीटें आवंटित की गईं, लेकिन इस प्रक्रिया में उनकी नाराजगी और असंतोष ने काफी सुर्खियां बटोरीं. कुशवाहा, जो कोइरी (कुशवाहा) समुदाय के प्रमुख चेहरे हैं और पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. उन्होंने शुरू में अधिक सीटों की मांग की थी.

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उपेंद्र कुशवाहा की भूमिका और अपेक्षाएं

  • उपेंद्र कुशवाहा ने 2022 में अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) को भंग कर JDU में विलय किया, लेकिन 2024 में नीतीश कुमार से मतभेद के बाद बाहर निकलकर RLM बनाई. मार्च 2024 में वे एनडीए में लौटे और लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से जीते.
  • कुशवाहा ने एनडीए से कम से कम 10-12 सीटें मांगी थीं, ताकि उनके समुदाय (OBC कोइरी, जो बिहार में 4-5% वोटर हैं) का प्रतिनिधित्व मजबूत हो. वे खुद को “एनडीए का मजबूत स्तंभ” बताते हुए कहते थे कि उनकी पार्टी 2020 में अकेले लड़ी थी और अब गठबंधन में योगदान दे रही है.
  • कुशवाहा का प्रभाव मुख्य रूप से मगध, शाहाबाद और कोसी क्षेत्र में है, जहां कुशवाहा वोट निर्णायक हैं। 2020 में उनकी RLSP ने 100+ सीटों पर लड़कर JDU-BJP को नुकसान पहुंचाया था.

 

सीट बंटवारे में क्या मिला और नाराजगी के कारण

एनडीए ने 12 अक्टूबर 2025 को बंटवारा घोषित किया, जिसमें RLM को 6 सीटें दी गईं. ये सीटें हैं:-

  • उजियारपुर
  • मधुबनी
  • घोसी
  • हायाघाट
  • करगहर
  • एक और सीट (अंतिम रूप से तय)

नाराजगी के मुख्य कारण

  1. कुशवाहा ने 6 सीटों को “अपर्याप्त” बताया. उन्होंने कहा, “मैंने 11 सीटें मांगी थीं, लेकिन मिली सिर्फ 6. यह मेरे समुदाय की अनदेखी है.” 10 अक्टूबर को दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात के बाद भी संतुष्टि नहीं मिली और आज भी अमित के आवास पर उपेन्द्र कुशवाहा की बैठक हुई.
  2. जो सीटें उपेंद्र कुशवाहा को मिली वो उनके गढ़ में नहीं हैं. उदाहरण के लिए, उजियारपुर में JDU का दबदबा है, और करगहर में BJP का. कुशवाहा ने आरोप लगाया कि “जीतने वाली सीटें नहीं दी गईं, सिर्फ औपचारिकता निभाई गई.”
  3. LJP(RV) को 29 और HAM को 6 सीटें मिलीं, जबकि RLM का वोट शेयर और संगठन LJP से कम नहीं. कुशवाहा ने X पर पोस्ट किया:-“आज बादलों ने फिर साजिश की, जहां मेरा घर था वहीं बारिश की, अगर फलक को जिद है बिजलियां गिराने की तो हमें भी जिद है वहीं पर आशियां बसाने की"
  4. नीतीश कुमार से पुरानी रंजिश (JDU छोड़ने के बाद) ने भूमिका निभाई. कुशवाहा ने आरोप लगाया कि JDU ने उनकी सीटें ब्लॉक कीं, ताकि कोइरी वोट JDU की ओर जाए.
  5. 11 अक्टूबर को कुशवाहा ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, “अगर यही हाल रहा तो विकल्प खुले हैं.” इससे अटकलें लगीं कि वे एनडीए छोड़ सकते हैं या निर्दलीय लड़ सकते हैं.

हालांकि बीजेपी नेता धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, “कुशवाहा जी हमारे महत्वपूर्ण सहयोगी हैं, सब ठीक हो जाएगा.” ऐसे में बीजेपी लगातार प्रयास कर रही है की सब एक साथ मजबूती के साथ बिना किसी विवाद के चुनाव में उतरें.

ये है प्रेशर पॉलिटिक्स

उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी बिहार की जातिगत राजनीति का आईना है, जहां छोटे नेता अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाने के लिए दबाव बनाते हैं. 2024 लोकसभा में NDA की जीत के बावजूद, ऐसे विवाद 2025 में सत्ता बरकरार रखने की चुनौती बढ़ा रहे हैं. सीटों का यह बंटवारा एनडीए को मजबूत दिखाने की कोशिश है, लेकिन विवाद छोटे दलों की महत्वाकांक्षा और आंतरिक असंतोष को उजागर करते हैं. महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) भी अपने बंटवारे में उलझा है, जो एनडीए के लिए राहत है. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी सभी 243 सीटों पर उतरेगी, जो त्रिकोणीय मुकाबला बना रही है. कुल मिलाकर, बिहार की सियासत में जातिगत समीकरण और युवा गुस्सा निर्णायक होंगे.

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