उत्तराखंड में हैं कितने टाइगर, जानने के लिए पहले चरण का साइंस सर्वे होगा अक्टूबर में शुरू

कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के डायरेक्टर साकेत बडोला के मुताबिक- इस पूरी प्रक्रिया में तीन चरण होते हैं, जिसमें पहले चरण में साइंस सर्वे किया जाता है, दूसरे चरण में कैमरा ट्रैप यानी जंगल के किस पॉइंट में कैमरे को लगाना है वह किया जाता है.

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उत्तराखंड में बाघों की संख्या कितनी है इसके आकलन की तैयारियां तेज कर दी गई हैं. बाघों की गणना के लिए अक्टूबर के पहले चरण में साइंस सर्वे शुरू किया जाएगा, वैसे उत्तराखंड में साल 2022 में बाघों की गणना हुई थी, जिसमें पूरे उत्तराखंड में 560 टाइगरों की संख्या पाई गई थी. अब साल 2025 में दोबारा से प्रदेश में कितने बाघ हैं, उसके आकलन के लिए काम शुरू हो गया है. 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे मनाया जाता है, पूरी दुनिया में बाघों की संख्या बहुत तेजी से घटी है, क्योंकि इनका तेजी से शिकार किया गया और इनका प्राकृतिक परिवेश यानी जंगल भी तेजी से घटे हैं. ऐसे में बाघों बचाने के लिए हर साल 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे मनाया जाता है. इस वक्त दुनिया में बाघों की संख्या अब कुछ ही देशों में रह गई है, भारत में इस वक्त बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए तेजी से कम हो रहा है.

साल 2022 में भारत में टाइगर की गणना की रिपोर्ट सामने आई, जिसमें स्टेट ऑफ टाइगर्स को- प्रिडेटर्स एंड प्रे इन इंडिया 2022 की रिपोर्ट में उत्तराखंड में 560 टाइगर की संख्या थी, जिसमें कॉर्पोरेट टाइगर नेशनल पार्क में 260 और राजाजी टाइगर नेशनल पार्क में 54 टाइगर पाए गए. अब करीबन 3 साल बाद देश में और उत्तराखंड में टाइगरों की कितनी संख्या है, इसको लेकर सर्वे शुरू हो गया है. सर्वे में सबसे पहले अक्टूबर के महीने में साइंस सर्वे शुरू किया जाएगा.

यह पहला चरण है, जिसमें साइंटिफिक तरीके से पहले सर्वे में साइन सर्वे किया जाता है, जिसमें सारा डाटा इकट्ठा कर एक एप्लीकेशन के माध्यम से फॉरेस्ट के कर्मचारी उसमें डालते हैं. ये सारा डाटा WII यानी वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों के पास जाता है. वे उसका अध्ययन करते हैं और अध्ययन करने के बाद कहां-कहां जंगल के पूरे एरिया में कैमरा ट्रैप लगे हैं. उन पॉइंट्स की डिटेल बनाकर कैमरा ट्रैप का ग्रिड बनते हैं और फिर उनको जंगल में लगाया जाता है.

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कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के डायरेक्टर साकेत बडोला ने बताया कि बाघों की गणना के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया और अधिकारियों और कर्मचारियों को इसके बारे में जानकारी दी गई. कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के डायरेक्टर साकेत बडोला के मुताबिक- इस पूरी प्रक्रिया में तीन चरण होते हैं, जिसमें पहले चरण में साइंस सर्वे किया जाता है, दूसरे चरण में कैमरा ट्रैप यानी जंगल के किस पॉइंट में कैमरे को लगाना है वह किया जाता है. इस दूसरे चरण में एक पॉइंट में दो कैमरे लगाए जाते हैं, जिनकी अवधि 45 दिन की होती है और वह 45 दिन में टाइगर के मूवमेंट और उसे कमरे के आगे से जितनी बार टाइगर निकलता है, उसकी फोटो खींचता है. इसके बाद तीसरे चरण में इन सभी कैमरा ट्रैप्स से फोटो लेकर वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया यानी डब्ल्यूआईआई को सौंपा दिया जाता है. फिर उसका अध्ययन किया जाता है और उसके बाद बाघों की संख्या बताई जाती है. इस पूरी प्रक्रिया में साइंटिफिक तरीके से काम किया जाता है, कॉर्बेट के निदेशक साकेत बडोला बताते हैं कि जिस तरीके से इंसानों के फिंगरप्रिंट अलग होते हैं, दुनिया में किसी भी इंसान के एक जैसे फिंगरप्रिंट नहीं होते, उसी तरीके से टाइगर के शरीर पर जो धारियां होती है वह भी हर टाइगर की अलग होती है. दुनिया में किसी भी टाइगर की एक जैसी धारियां नहीं होती. जब कैमरे से ली गई तस्वीरों का अध्ययन किया जाता है उसके बाद इसी पद्धति से धारियों को देखकर और उनका मिलान कर यह पता लगाया जाता है कि कितने टाइगर हैं. वैसे साल 2006 से पहले फुटप्रिंट के माध्यम से भी बाघों की गिनती की जाती थी, लेकिन उसके बाद नए पैटर्न के मुताबिक- अब बाघों की गिनती की जाती है.

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उत्तराखंड में कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क, राजाजी टाइगर नेशनल पार्क, लैंसडौन वन प्रभाग, देहरादून वन प्रभाग, हरिद्वार वन प्रभाग, हल्द्वानी फॉरेस्ट डिविजन, चंपावत फॉरेस्ट डिविजन, रामनगर फॉरेस्ट डिविजन ,तराई सेंट्रल फॉरेस्ट डिविजन, नरेंद्र नगर फॉरेस्ट डिविजन, तराई ईस्ट फॉरेस्ट डिविजन, तराई वेस्ट फॉरेस्ट डिविजन, मैं सभी जगह बाघों की गिनती और उनका आकलन लगाया जाएगा.

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