पिछले कुछ दिनों से यहां सिंघू बार्डर पर किसान आंदोलन में कई और महिलाओं शामिल होने के बीच एक एनजीओ फिर से प्रयोग हो सकने योग्य सामग्री से जैव शौचालय (बायो-टायलेट) लगा रहा है ताकि उन्हें बुनियादी सुविधाओं मुहैया करायी जा सकें. केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर नवंबर के अंत से विभिन्न राज्यों के किसानों द्वारा शिविर लगाये जाने के कई दिन बाद कई महिला प्रदर्शनकारियों को स्वच्छ शौचालयों एवं स्नान की जगह की सुविधा नहीं मिलने के कारण घर लौटना पड़ा.
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स्वच्छता के क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठन बेसिशिट के संस्थापक अश्विनी अग्रवाल ने कहा, ‘‘ यह पहली बार है कि हम प्रदर्शन स्थल पर एक परियोजना चला रहे हैं. किसी ने मुझे यहां सड़क की तस्वीर भेजी थी जिसमें कचरा भरा हुआ दिख रहा है. इसलिए हमने सोचा कि हम यहां आएं और कुछ करें.'' उन्होंने कहा कि हर शौचालय में 10 फुट गहरा गड्ढ़ा होगा तथा बदबू को हटाने के लिए लकड़ी का बुरादा और चारकोट का इस्तेमाल किया जाएगा.
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उन्होंने कहा कि सड़कों के किनारे गड्ढे खोदे गये और देशभर से विभिन्न विक्रेताओं से पुनर्चक्रणयोग्य सामग्री सामग्री जुटायी गयी, इस तरह हर शौचालय पर करीब 60 हजार रूपये खर्च आता है। एनजीओ प्रदर्शन स्थल पर पहले से जैव शौचालय लगा रखा है. अग्रवाल ने कहा, कि प्रतिदिन करीब 100 महिलाएं और दिव्यांग ऐसे शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं.