केरल में साल 2018 में खाद्य सामग्री चुराने के आरोप में आदिवासी व्यक्ति को पीट-पीटकर जान से मारने के मामले में बुधवार को एक अदालत ने तीन दोषियों को सात साल के कारावास की सजा सुनाई. इस मामले में दो दोषियों के करुणा के भाव को देखते हुए उन्हें कम सजा सुनाई गई है. इन दोषियों ने पीड़ित मधु को केला और जूस दिया था. ऐसे में अदालत ने इसे ‘‘मानवता के भाव'' और दोषियों में सुधार की गुंजाइश के रूप में देखा.
दोषियों को सजा सुनाते समय, विशेष अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अदालत ने उनके कार्यों को कानून को अपने हाथ में लेना करार दिया था और कहा कि इसे ‘‘सभ्य समाज में कभी भी प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता तथा ऐसी घटनाओं की निंदा की जानी चाहिए.''
अदालत ने यह भी कहा कि पर्याप्त सजा देकर ऐसी घटनाओं को रोका जाना चाहिए तथा यह सोचकर “छोटी-मोटी” सजा नहीं दी जा सकती कि पीड़ित मामूली व्यक्ति था.
फिर भी, अदालत ने सीसीटीवी फुटेज का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि हमलावरों के मन में कहीं न कहीं “मानवता का भाव” था और उनके सुधरने की गुंजाइश है.
अदालत ने जिस सीसीटीवी फुटेज का हवाला दिया उसमे एक आरोपी पीड़ित मधु को केला जबकि दूसरा आरोपी एक कप जूस देता हुआ दिख रहा है.
न्यायाधीश ने कहा, “अदालत के समक्ष पेश सीसीटीवी फुटेज में पता चला है कि आरोपी नंबर तीन ने मधु को मुक्कली ले जाते वक्त एक केला जबकि आरोपी नंबर 14 ने एक कप जूस दिया था.
न्यायाधीश ने कहा, “आरोपी नंबर 3 और 14 के इन कार्यों से पता चलता है कि आरोपियों के मन में मानवता का भाव था. इसलिए, अदालत ने पाया कि अभियुक्तों को सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध नागरिक बनाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.”
उन्होंने कहा, ‘‘यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हर संत का एक अतीत होता है और हर पापी का एक भविष्य होता है.''
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस कारण से और अभियुक्तों तथा उनके वकील द्वारा बताए गए आधारों को ध्यान में रखते हुए, मैं अपराध करने के लिए कानून में प्रदान की गई अधिकतम सजा देने के लिए इच्छुक नहीं हूं.''
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