जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पहली बार दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले हजारों विस्थापित कश्मीरी पंडितों का वोटर कार्ड बन रहा है, जिससे अब उनके जम्मू कश्मीर के चुनावों में मतदान करने का रास्ता साफ हो गया है. प्रशासन की ओर से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को कश्मीर का वोटर बनाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है. वोटर कार्ड बनवाने के लिए आए विस्थापित कश्मीरी पंडितों से हमारे सहयोगी रवीश रंजन शुक्ला ने बातचीत की और जाना कि उनके लिए वोटर कार्ड कितना अहम है और कैसे 30 साल बाद कई लोगों को यह वोटर कार्ड मिला है.
दिल्ली के लाजपत नगर की रहने वाली सुनीता कौल अपने पति के साथ कश्मीर का वोटर कार्ड बनवाने आईं. 11 साल की उम्र में उनका परिवार श्रीनगर से पलायन करके दिल्ली आ गया था. अब 34 साल बाद उनका वोटर कार्ड बन रहा है. इस दौरान जम्मू कश्मीर के चुनावों से ही नहीं बल्कि अपनी जड़ों से भी वो कट गई थीं, लेकिन सालों बाद अब फिर से कश्मीर लौटने की उम्मीद बंधी है.
विस्थापित कश्मीरी पंडित सुनीता कौल ने कहा कि बहुत पहले हमारा परिवार दिल्ली आ गया था. अब वोटर कार्ड बन रहा है, जब कश्मीर में चुनाव होंगे, तब हम वोट करने जाएंगे. खुश हैं कि इतने साल बाद किसी ने हमें याद किया.
वहीं एक और विस्थापित कश्मीरी पंडित अनिल कौल ने कहा कि हमने क्या-क्या नहीं झेला? अपने घर की तो याद आती है. मौका मिलेगा तो क्यों नहीं लौटेंगे, जरूर जाएंगे.
'क्या कश्मीर को भूला जा सकता है?'
एक आंकड़े के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में करीब 25 हजार से ज्यादा विस्थापित कश्मीरी पंडित हैं, जो दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा और आसपास रहते हैं. यहीं हमें सुनीता मिली जो अपने दो बच्चों के साथ वोटर कार्ड बनवाने आई है. वो भी श्रीनगर की रहने वाली थी और 1990 में उनका परिवार दिल्ली विस्थापित हुआ था.
सुनीता ने कहा कि हम क्यों नहीं वोट डालने जाएंगे. इतने सालों से हम केवल दिल्ली के वोटर थे. अब कश्मीर का वोटर बनकर बहुत अच्छा लग रहा है. कश्मीर को क्या भूला जा सकता है?
डेढ़ लाख कश्मीरी पंडित हुए थे विस्थापित
दरअसल, एक आंकड़े के मुताबिक करीब डेढ़ लाख कश्मीरी पंडित विस्थापित हुए थे. इनमें बहुत सारे लोगों का वोटर कार्ड अब तक नहीं बना था. 2019 के बाद मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया का अभियान चलाया गया. इसमें नए विस्थापित कश्मीरी पंडितों के अलावा गोरखा, अनुसूचित जाति और बाहर से आए स्थानीय लोग भी शामिल हैं. इसके चलते करीब 29 लाख नए मतदाताओं के जुड़ने की संभावना है.
कश्मीरी पंडितों से डोर टू डोर संपर्क
पुनर्वास विभाग कश्मीर के उप निदेशक देवेंद्र सिंह भाओ ने कहा कि हमारी कई टीमें यहां कई महीनों से हैं, जो डोर टू डोर जाकर विस्थापित कश्मीरी पंडितों का नाम मतदाता सूची में शामिल कर रही थीं. चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली और आसपास विशेष कैंप लगाकर वोटर लिस्ट में संशोधन का काम हो रहा है.
सबसे बड़ी बात ये है कि अब विस्थापित कश्मीरी पंडित कश्मीर के मतदाता बनकर नीतियां बनाने की प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे.
जम्मू कश्मीर से पलायन करके सालों से दिल्ली-एनसीआर में बसे कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से रिश्ता जम्मू कश्मीर हाउस तक ही सीमित रह गया था, लेकिन अब वोटर कार्ड बनने से इनकी जम्मू-कश्मीर की चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी होगी, जो इनके पलायन के जख्म पर मरहम जरूर रखेगी.
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