Karwa Chauth 2025: मथुरा के इस गांव में महिलाएं नहीं रखती करवा चौथ का व्रत, वजह जान चौंक जाएंगे

Karwa Chauth 2025: देश में एक ओर सुहाग की सलामती के लिये विवाहिताएं करवा चौथ का व्रत रखती है, वहीं दूसरी ओर मथुरा के गांव सुरीर के मोहल्ला वघा में सैकडों विवाहिताओं को करवा चौथ का त्यौहार कोई मायने नही रखता.

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  • मथुरा के सुरीर गांव के मोहल्ला वघा की विवाहिताएं करवा चौथ का व्रत सती के प्राचीन श्राप के कारण नहीं रखती हैं
  • यह श्राप उस नवविवाहिता महिला के क्रोध का परिणाम है जिसने पति की हत्या के बाद सती होकर श्राप दिया था
  • सती के श्राप के कारण इस मोहल्ले में विवाहिताओं को करवा चौथ के व्रत में भाग लेने की अनुमति नहीं मिलती है
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Karwa Chauth 2025: देश आज करवा चौथ का त्योहार मना रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कृष्ण की नगरी मथुरा का सुरीर कस्बे में एक हिस्सा ऐसा भी है, जहां एक सती का श्राप विवाहिताओं को सुहाग सलामती के व्रत की इजाजत नहीं देता है. सैकड़ों वर्ष से चली आ रही इस श्राप की परंपरा से मुक्ति का विवाहिताओं को अभी तक इंतजार है. इस गांव की महिलाएं करवा चौथ का व्रत नहीं रखती हैं.

मथुरा के गांव सुरीर में नहीं मनाया जाता करवा चौथ का पर्व

देश में एक ओर सुहाग की सलामती के लिये विवाहिताएं करवा चौथ का व्रत रखती है, वहीं दूसरी ओर मथुरा के गांव सुरीर के मोहल्ला वघा में सैकडों विवाहिताओं को करवा चौथ का त्यौहार कोई मायने नही रखता, क्योंकि एक सती के श्राप का भय उन्हें अपने पति की दीर्घायु की कामना के व्रत की इजाजत नही दे रहा है, जिसकी कसक हर साल इस मोहल्ले की विवाहिताओं के मन में बनी रहती है. इसलिए यहां की विवाहिताएं करवा चौथ वाले दिन अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए आज के दिन उपवास नही करती हैं, ना ही श्रृंगार करती हैं और ना मेंहदी लगाती हैं. 

क्या है वजह?

गांव के एक गंगा राम ने बताया की बात सैकड़ों वर्ष पुरानी है, जब नौहझील के गांव रामनगला का एक ब्राह्मण युवक यमुना के पार स्थित ससुराल से अपनी नवविवाहिता पत्नी को विदा कराकर सुरीर के रास्ते भैंसा बुग्गी से लौट रहा था. रास्ते में सुरीर के कुछ लोगों ने बुग्गी में जुते भैंसे को अपना बता कर विवाद शुरू कर दिया. इस विवाद में सुरीर के लोगों के हाथों गांव रामनगला के इस युवक की हत्या हो गयी. अपने सामने पति की मौत से कुपित नवविवाहिता इस मुहल्ले के लोगों को श्राप देते हुए पति के शव के साथ सती हो गयी. 

इसे सती का श्राप कहें कि पति की मौत से बिलखती पत्नी के कोप का कहर. इस घटना के बाद मुहल्ले पर काल बन कर टूटे कहर ने जवान युवकों को ग्रास बनाना शुरू कर दिया. तमाम विवाहिताएं विधवा हो गईं और मुहल्ले में मानों आफत की बरसात सी होने लगी. उस समय बुजर्गों ने इसे सती के प्रकोप का असर माना और उस सती का थान (मन्दिर) बनवाकर क्षमा याचना की .

'जिसने भी ये व्रत किया उसका सर्वनाश हो गया'

सैकड़ों वर्ष से चली आ रही इस परंपरा का पीढ़ी दर पीढ़ी निर्वहन होता चला आ रहा. इस श्राप से मुक्ति की पहल करने की कोई विवाहिता तैयार नहीं होती है. पहले से चली आ रही इस परपंरा को तोड़ने में सभी को सती के श्राप के भय से उन्हें अनिष्ट की आशंका सताती है. वहीं, मन्दिर के समीप रहने बाली विवाहिता ने सती मां के श्राप के बारे में बताते हुए कहा कि करवा चौथ हमने भी नही मनाई और न ही व्रत रखा. ये श्राप उनकी बेटी व नन्द पर भी लागू है, जिसने भी ये व्रत किया उसका सर्वनाश हो गया. आज भी सती मां का श्राप लगा हुआ है.

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