वो 5 नेता जिन्होंने तमिलनाडु की सियासत को बदल दिया, पढ़ें उनके बारे में विस्तार से

करुणानिधि से पहले तमिलनाडु में ऐसे कम ही नेता हुए जिन्होंने इस मुकाम को पाया. आइये आपको ऐसे ही पांच नेताओं से मिलवाते हैं. 

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करुणानिधि की मौत के बाद तमिलनाडु की राजनीति के एक युग का अंत
तमिलनाडु के अलावा राष्ट्रीय फलक पर भी बनाई थी पहचान
उनके अलावा राज्य के चंद नेताओं को ही यह मुकाम हासिल हुआ था
नई दिल्ली: स्टालिन ने पिता करुणानिधि को लिखा भावुक पत्र, कहा- क्या आपको आखिरी बार 'अप्पा' पुकार सकता हूं पेरियार (Periyar) तमिलनाडु की राजनीति के एक युग का अंत सीएन अन्नादुराई (C. N. Annadurai) Karunanidhi Death: करुणानिधि के निधन से देश भर में शोक की लहर, जानें शोक संदेश में किसने क्या कहा एमजी रामचंद्रन (M. G. Ramachandran) 

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जयललिता (Jayalalithaa) 
तमिलनाडु की राजनीति में 'अम्मा' के नाम से अपनी पहचान बनाने वाली जयललिता (Jayalalithaa) ने 1963 में एक अंग्रेजी फिल्म से सिनेमाई दुनिया में कदम रखा था. यह बस शुरुआत थी. अगले एक दशकों में जयललिता ने अंग्रेजी, तमिल और हिंदी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया और इसी दौरान वह एमजी रामचंद्रन के संपर्क में आईं. तमिलनाडु की सियासत का फिल्मी दुनिया से बेहद करीबी नाता रहा है. ऐसे में जयललिता कहां अछूती रहने वाली थीं. एमजी रामचंद्रन उन्हें सियासी गलियारे में लेकर आए और साल 1982 में जयललिता की सियासी पारी का आगाज हुआ. 1987 में जब एमजी रामचंद्रन का निधन हुआ तो जयललिता पूरी तरह से उभर कर सामने आईं. जनता के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाने के बाद जयललिता पहली बार साल 1991 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं. हालांकि साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. हालांकि बाद में फिर सीएम की कुर्सी पर बैठीं और तमाम लोक-लुभावने फैसले लिये. जो काफी लोकप्रिय हुए. 

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एम करुणानिधि (M. Karunanidhi) 
यूं तो करुणानिधि की सियासी पारी 14 साल की उम्र में हिंदी विरोधी आंदोलन से ही शुरू हो गई थी, लेकिन उन्हें पहचान मिली कुछ सालों बाद जब अन्नादुराई की नजर उन पर पड़ी. एम करुणानिधि (M. Karunanidhi) कोयंबटूर में रहकर व्यावसायिक नाटकों और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिख रहे थे. इसी दौरान पेरियार और अन्नादुराई की नजर उन पर पड़ी. उनकी ओजस्वी भाषण कला और लेखन शैली को देखकर उन्हें पार्टी की पत्रिका ‘कुदियारासु’ का संपादक बना दिया गया. वर्ष 1947 में पेरियार और उनके दाहिने हाथ माने जाने वाले अन्नादुराई के बीच मतभेद हो गए और 1949 में नई पार्टी ‘द्रविड़ मुनेत्र कड़गम’ यानी डीएमके की स्थापना हुई. डीएमके की स्थापना के बाद एम. करुणानिधि की अन्नादुराई के साथ नजदीकियां बढ़ती चली गईं. वर्ष 1957 में डीएमके पहली बार चुनावी मैदान में उतरी और विधानसभा चुनाव लड़ी. उस चुनाव में पार्टी के कुल 13 विधायक चुने गए. जिसमें करुणानिधि भी शामिल थे. वर्ष 1969 में अन्नादुराई का देहांत हो गया. अन्नादुराई की मौत के बाद करुणानिधी 'ड्राइविंग सीट' पर आ गए और सत्ता की कमान संभाली. वर्ष 1971 में वे दोबारा अपने दम पर जीतकर आए और मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली. 60 साल से ज्यादा के राजनीतिक करियर में करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के सीएम बने. उनके नाम सबसे ज्यादा 13 बार विधायक बनने का रिकॉर्ड भी है. 

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