- कर्नाटक की सिद्दारमैया कैबिनेट ने बागेपल्ली का नाम बदलकर भाग्यनगर करने का फैसला किया है
- कभी बीजेपी ने हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर रखने की बात कही थी.
- भाग्यनगर नाम की कई किंवदंतियां हैं, जिसमें देवी भाग्यलक्ष्मी से जुड़ी कहानी भी है.
- हैदराबाद का नाम भाग्यनगर होने की एक और कहानी फारसी शब्द 'फरखुंडा बुनियाद' से जुड़ी है.
तारीख थी- 3 जुलाई 2022. यानी आज से ठीक 3 साल पहले. हैदराबाद में 18 साल बाद बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे. वहां उन्होंने हैदराबाद को भाग्यनगर कहा. बाद में वहीं एक रैली को संबोधित करते हुए भी उन्होंने हैदराबाद की जगह भाग्यनगर शब्द का इस्तेमाल किया. कहा- सरदार पटेल ने भाग्यनगर में ही 'एक भारत' का नारा दिया था.
उससे दो साल पहले 2020 में जब हैदराबाद नगर निगम का चुनाव होना था, तब बीजेपी ने जीत मिलने पर हैदराबाद का नाम भाग्यनगर करने का वादा किया था. तब चुनावी कैंपेन में गए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पहुंचे थे और उन्होंने भी ये वादा दोहराया था. हालांकि बीजेपी जीत नहीं पाई, लेकिन TRS यानी तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति/BRS) के बाद बड़ी पार्टी बन के उभरी. खैर, हैदराबाद का नाम भाग्यनगर नहीं हो पाया.
अब आते हैं ताजा खबर पर, जो आई कर्नाटक से. कांग्रेसनीत सिद्दारमैया कैबिनेट ने बागेपल्ली का नाम बदलकर भाग्यनगर करने को मंजूरी दी है, जो कि आंध्र प्रदेश की सीमा से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर है. येचिक्काबल्लापुर जिला स्थित इस शहर के लोगों का मानना था कि बागेपल्ली नाम तेलुगू भाषा से लिया गया है, जबकि भाग्यनगर नाम एकदम उपयुक्त होगा. कई संगठन लंबे समय से मांग कर रहे थे, मंत्री-नेताओं का भी साथ मिला और आखिरकार इस नाम पर कर्नाटक ने ही अपना 'रुमाल' रख दिया.
नाम बदलने की राजनीति (Bhagyanagar Karnataka vs Hyderabad) कोई नई बात नहीं है, लेकिन 'भाग्यनगर' पर बाजी मारी बागेपल्ली ने और हैदराबाद का नाम बदलनेवालों के अरमानों पर पानी फिर गया. क्या वास्तव में हैदराबाद का नाम कभी भाग्यनगर था?
'भाग्यनगर' नाम को लेकर हैदराबाद का इतिहास भी कई दिलचस्प कहानियों से भरा पड़ा है. इसके लिए हमें इतिहास के पन्नों, लोककथाओं और कुछ ऐतिहासिक संदर्भों में मिलते हैं. तो आइए, इन कहानियों की परतों को जरा खोलते हैं और समझते हैं हैदराबाद उर्फ 'भाग्यनगर' की कहानी.
भाग्यनगर कथा 1). भाग्यलक्ष्मी मंदिर की जनश्रुति
भाग्यनगर नाम के पीछे एक प्रचलित कहानी भाग्यलक्ष्मी मंदिर से जुड़ी है. यह जनश्रुति बताती है कि एक समय, चारमीनार के ठीक स्थान पर देवी लक्ष्मी स्वयं प्रकट हुईं. संतरियों ने उन्हें रोका और राजा की आज्ञा लेने चले गए, लेकिन देवी लक्ष्मी वहीं खड़ी रहीं. माना जाता है कि देवी ने वहीं अपना वास बना लिया और कालांतर में भक्तों ने वहां एक मंदिर का निर्माण कर दिया, जिसका नाम भाग्यलक्ष्मी मंदिर पड़ा. इस मंदिर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी जा चुके हैं.
हालांकि, इतिहासकार इस कहानी को पूरी तरह से स्वीकार नहीं करते. उनका तर्क है कि चारमीनार के पास शुरुआत में ऐसा कोई मंदिर नहीं था. बीबीसी ने एक पुरानी रिपोर्ट में एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया है कि चारमीनार के पास वर्तमान मंदिर मुश्किल से 30-40 साल पुराना है. 1944 में प्रकाशित एक ऐतिहासिक पुस्तक 'हैदराबाद: ए सोवनियर' में चारमीनार और शहर के अन्य हिंदू मंदिरों का जिक्र है, लेकिन भाग्यलक्ष्मी मंदिर का कोई उल्लेख नहीं मिलता, जो इस तर्क को और पुष्ट करता है.
भाग्यनगर कथा 2). फारसी नाम का अनुवाद 'लकी सिटी'
एक कहानी भाग्यनगर को एक फारसी शब्द के अनुवाद के रूप में प्रस्तुत करती है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, हैदराबाद शहर की स्थापना 1591 में हुई थी. 1596 में इसका नाम 'फरखुंडा बुनियाद' रखा गया, जो एक फारसी शब्द है. इसका अंग्रेजी में अर्थ 'लकी सिटी' (Lucky City) निकलता है. इसी 'लकी सिटी' के हिंदी अनुवाद के रूप में भाग्यनगर शब्द का इस्तेमाल होने लगा.
बाद में, 'फरखुंडा बुनियाद' के लिए संस्कृत शब्द 'भाग्य' का उपयोग किया गया, जिससे संस्कृत-तेलुगू में 'भाग्य नगरम' प्रचलन में आया. यह तर्क एक भाषाई जुड़ाव स्थापित करता है जो भाग्यनगर नाम के पीछे एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है.
भाग्यनगर कथा 3). भागमती या भाग्यमति के नाम पर शहर
तीसरी कहानी 14वीं-15वीं शताब्दी के कुतुबशाही वंश से जुड़ी है, जिसका दक्षिण भारत में दबदबा था. इस वंश के चौथे शासक इब्राहिम कुली कुतुब शाह थे, जिनकी हिंदू तेलुगू बेगम का नाम भागीरथी था. उनके बेटे मोहम्मद कुली कुतुब शाह, जो खुद एक प्रसिद्ध शायर थे, को कम उम्र में ही एक हिंदू बंजारन से प्रेम हो गया. उनका नाम भाग्यमति था, जिन्हें भागमती भी कहा जाता था.
लाइव हिस्ट्री इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, गोलकुंडा किले से थोड़ी दूर, मूसी नदी के पार बसे छोटे से गांव छिछलम की रहने वाली भागमती की सुंदरता ने शाह को इतना मोहित कर लिया कि उन्होंने उन पर सैकड़ों शायरी और कविताएं लिख डालीं. पिता के शुरुआती विरोध के बावजूद ये रिश्ता हुआ और फिर बाद में, शाह ने अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में इस शहर का नाम भाग्यनगर रख दिया. इतिहासकार नरेंद्र लूथर ने अपनी किताब 'ऑन द हिस्ट्री ऑफ भाग्यमती' (1992-93 में प्रकाशित) में इस कहानी का समर्थन किया है. हालांकि, इस कहानी को लेकर भी कुछ सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन यह सबसे प्रचलित कथाओं में से एक है.
भाग्यनगर कथा 4). बागों का नगर… बागनगर
एक और दिलचस्प तर्क यह है कि शहर में अनेक बाग (बगीचे) होने के कारण इसका नाम बागनगर था. यह दलील पहली बार इतिहासकार हारून खान शेरवानी ने 1967 में दी थी. रिपोर्ट्स में 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्टे टेवर्नियर की लिखी किताब का जिक्र आता है, जिसमें उन्होंने गोलकुंडा का एक नाम 'बाग नगर' भी बताया है. हालांकि, टेवर्नियर ने यह भी लिखा कि यह शहर कुली कुतुब शाह की एक पत्नी की इच्छानुसार बनाया गया था, जिससे कुछ भ्रम पैदा होता है. (ये प्रसंग तीसरी कहानी से मेल खाता है)
दूसरी ओर इतिहासकार वी बल का मानना है कि टेवर्नियर को समझने में शायद चूक हुई होगी. हारून खान शेरवानी की दलील मुख्य रूप से टेवर्नियर के संदर्भों पर आधारित है. हालांकि, हैदराबाद के पूर्व कलेक्टर और इतिहासकार नरेंद्र लूथर ने कई अन्य ऐतिहासिक संदर्भों के साथ इस तर्क को खारिज किया है, यह मानते हुए कि 'बागनगर' नाम का कोई पुख्ता ऐतिहासिक आधार नहीं है.
भाग्यनगर कथा 5). कैसे पड़ा हैदराबाद नाम?
भाग्यमती की कहानी में ही हैदराबाद नाम के उद्भव का संकेत मिलता है. अपने पिता के निधन के बाद मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने गद्दी संभाली और कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. उन्होंने गोलकुंडा से कुतुबशाही की राजधानी को स्थानांतरित करने का भी निर्णय लिया. कहा जाता है कि शाह से शादी करने के बाद भागमती ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और उनका नया नाम 'हैदर महल' रखा गया.
शाह पहले ही अपनी बेगम हैदर महल के पैतृक गांव छिछलम का नाम बदलकर भाग्यनगर कर चुके थे. इसी गांव से जुड़ा एक नया शहर बसाया गया और इसका नाम अपनी बेगम के बदले हुए नाम 'हैदर महल' के नाम पर 'हैदराबाद' रख दिया गया. बाद में इसी शहर को कुतुबशाही की नई राजधानी बनाया गया. यह कहानी भाग्यनगर से हैदराबाद तक के नाम बदलने की एक स्पष्ट कड़ी प्रदान करती है.
हैदराबाद के लिए भाग्यनगर का मुद्दा फिलहाल गौण
डच अधिकारी जीन डे थेवनॉट ने 1687 में प्रकाशित अपनी किताब 'द ट्रैवल्स इन टू द लिवेंट' में उल्लेख किया है कि सल्तनत की राजधानी भाग्यनगर थी, जिसे ईरानी लोग हैदराबाद कहते थे. इसी तरह, 17वीं शताब्दी में संपादित डब्ल्यूएम मरलैंड की किताब 'रिलेशंस ऑफ गोलकुंडा' में भी फुटनोट में लिखा है कि भाग्यनगर का मतलब गोलकुंडा की नई राजधानी हैदराबाद है.
तमाम विरोधाभास यही दर्शाते हैं कि एक ही शहर के लिए अलग-अलग नामों का प्रयोग समकालीन रूप से होता रहा है. आज भी, हैदराबाद या भाग्यनगर नाम के पीछे लोग अपनी-अपनी पसंद और विचारधारा के अनुसार कहानियों और दलीलों का चयन कर लेते हैं. बाकी तेलंगाना में चुनाव होने में अभी काफी समय है, सो राजधानी हैदराबाद के लिए 'भाग्यनगर' का मुद्दा गौण है.