जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने 2022 में कांग्रेस से बगावत कर दी थी. कांग्रेस से निकलने के बाद आजाद ने डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के नाम से अपना राजनीतिक दल बनाया था.लेकिन आजाद की यह राजनीतिक दल इस पर्वतीय केंद्र शासित प्रदेश में कोई कमाल नहीं कर पाया है. आजाद की पार्टी इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भी कोई कमाल नहीं कर पाई. वहीं अब जब 10 साल बाद विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं तो आजाद की पार्टी का कहीं कोई अता-पता नहीं है. हालात यह है कि उसके उम्मीदवार टिकट मिलने के बाद भी चुनाव लड़ने से मना कर दे रहे हैं. आजाद खुद बीमारी के नाम पर चुनाव मैदान से गायब हैं.
क्या कर रहे हैं डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के उम्मीदवार
आजाद समाज पार्टी ने विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए 10 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया था. लेकिन उनमें से चार ने अपने नाम ही वापस ले लिए. नाम वापस लेने वाले उम्मीदवार कहीं और के नहीं बल्कि आजाद का गढ़ माने जाने वाले किश्तवाड़, रामबन और डोडा इलाके के हैं. वहीं बीमार होने के बाद इलाज के लिए आजाद दिल्ली गए थे. वहां उनकी तबियत तो ठीक हो गई.लेकिन आजाद का दावा है कि डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है. इसलिए उनका चुनाव प्रचार कर पाना संभव नहीं है. उन्होंने अपने उम्मीदवारों से यहां तक कह दिया है कि वो अपने चुनाव लड़ने और न लड़ने पर खुद ही फैसला ले सकते हैं. खुद आजाद ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान अनंतनाग-राजौरी सीट से पर्चा दाखिल करने के बाद उसे वापस ले लिया था.
कहां हैं गुलाम नबी आजाद
यह स्थिति डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी में फैली हताशा को बताने के लिए काफी है. नाम वापस लेने वालों में बनिहाल सीट पर आजाद की पार्टी के उम्मीदवार आसिफ अहमद खंडे भी हैं. उनका कहना था कि हमारे स्टार प्रचारक गुलाम नबीं आजाद प्रचार नहीं कर पाएंगे, इसलिए हमने नाम वापस लेने का फैसला किया.इसके बाद डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी ने मंगलवार को 10 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की. डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के उम्मीदवारों की नाम वापसी से गठबंधन को फायदा हो सकता है.यहां होगा यह कि आजाद की पार्टी के उम्मीदवार इस कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन को ही वोट काटते, इससे बीजेपी को फायदा होता, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा.
आज हालत यह है कि चुनाव से पहले आजाद के करीब आधा दर्जन करीबी ने कांग्रेस में वापसी की कोशिश की. लेकिन पार्टी आलाकमनान ने इसे हरी झंडी नहीं दिखाई.हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजे देख आजाद की पार्टी के कुछ नेताओं ने कांग्रेस में वापसी की थी.इनमें पूर्व उपमुख्यमंत्री ताराचंद और पूर्व विधायक बलवान सिंह जैसे नेता शामिल थे.
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी की उम्मीद
दरअसल विधानसभा चुनाव में आजाद को उम्मीद थी कि जम्मू-कश्मीर में उनकी पार्टी का किसी दल से गठबंधन हो जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. आजाद को सबसे अधिक उम्मीद बीजेपी से थी. लेकिन हो नहीं पाया और कांग्रेस ने भी ना में उत्तर दिया.ऐसे में आजाद को जम्मू कश्मीर में अपना कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है. इसलिए वो निष्क्रिय हो गए हैं.
जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 हटाना बड़ा मुद्दा है.इन दोनों पर आजाद का रवैया लोगों को पसंद नहीं आया था. इस वजह से लोग उनसे नाराज थे. क्योंकि सरकार जब यह सह कर रह थी, उस समय आजाद ही नेता प्रतिपक्ष थे. आजाद लोगों के गुस्से को भांप चुके हैं, वो लोगों के गुस्से का सामना नहीं करना चाहते हैं. इसलिए वो चुनावों में जाने से बच रहे हैं. वहीं उनके साथ कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं में भी दूसरे दलों में अपनी जगह खोज ली है. इससे आजाद अकेले पड़ गए हैं. ऐसे में आजाद के पास चुनाव लड़ने के लिए न तो नेता और कार्यकर्ता हैं और न ही मुद्दे.
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