दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय में Gender Studies की प्रोफ़ेसर डॉ नबीला सादिक़ (Nabila Sadiq)और उनकी मां दोनों की 10 दिनों के अंदर मौत हो गई. 3 मई को उन्होंने ख़ुद ट्वीट कर अस्पताल में बेड के लिए गुहार लगाई. बड़ी मुश्किल से उन्हें बेड मिला था लेकिन तब तक उनके फ़ेफ़ड़े में संक्रमण फैल चुका था , 13 दिन अस्पताल में रहने के बाद सोमवार देर रात उन्होंने दम तोड़ दिया. पूरी उम्र जेएनयू में पढ़ाने वाले 86 साल के डॉ मोहम्मद सादिक़, पत्नी और जवान बेटी के ग़म में टूट चुके हैं. जब उनसे मिलने पहुंचे तो बिखरे पड़े घर में अपनी पत्नी और बेटी की तस्वीर दिखाने लगे. उनकी बेटी और पत्नी, दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं. 7 मई को पहले उनकी पत्नी नुज़हत की मौत हुई और दो दिन पहले बेटी की. डॉ मोहम्मद सादिक अहमद कहते हैं, 'पत्नी की मौत के बाद सोचा कि बेटी नबीला के सहारे जीवन काट लूंगा और अब बस उसकी भी केवल यादें हैं.'
ये ट्वीट डॉ. नबीला ने अपने लिए अस्पताल में बेड की गुहार लगाते हुए ख़ुद किया था. डॉ नबीला का परिवार उन्हें कई अस्पतालों में लेकर गया पर बड़ी मुश्किल से उन्हें घर से 30 किलोमीटर दूर ओखला के प्राइवेट अस्पताल में बेड मिला.
डॉ मोहम्मद सादिक़ ने बताया, 'तीन अस्पतालों नें मना कर दिया बोले बेड नहीं है फिर कालिंदी में बेड मिला. अगर उन्हें सही समय पर इलाज मिला होता तो उम्मीद थी. डॉ नबीला के साथी बताते हैं कि उन्हें कई अस्पतालों में भर्ती कराया लेकिन बड़ी मुश्किल से फ़रीदाबाद के प्राइवेट अस्पताल में वेंटिलेटर मिला. जामिया के प्रोफेसर डॉ इरफ़ान क़ुरैशी कहते हैं, 'कालिंदी ले गए फिर अल शिफ़ा में रखा फिर बोले कि दूसरे अस्पताल ले जाओ.' छात्र बताते हैं कि उन्हें लगता है कि जैसे उनकी मां गुज़र गई हों. डॉ नबीला केस स्टूडेंट वकार ने कहा, 'हमें लगता है हमारी मां गई वो बहुत अच्छी थीं सब्जेक्ट पर बहुत पकड़ थीं.' लेकिन बच्चे को समझाना मुश्किल है कि नबीला कोरोना से नहीं बल्कि सिस्टम से हार गईं.