विदेशमंत्री एस. जयशंकर का कहना है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन तथा चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की अनुपस्थिति से जी20 शिखर सम्मेलन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. विदेशमंत्री ने बताया कि अतीत में भी ऐसे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्होंने किन्हीं कारणों से वैश्विक बैठकों में नहीं आने का फैसला किया और उनके देश का प्रतिनिधित्व किसी अन्य प्रतिनिधि द्वारा किया गया.
9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित होने जा रहे जी20 शिखर सम्मेलन से पहले समाचार एजेंसी ANI के साथ विशेष साक्षात्कार में एस. जयशंकर ने कहा कि भारत के पास जी20 प्रेसिडेंसी की ज़िम्मेदारी दुनिया के लिए कठिन साबित हो रहे दौर में है, जो COVID-19, यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, कर्ज़ों, उत्तर-दक्षिण के बीच मतभेद व तीखे पूर्व-पश्चिम ध्रुवीकरण से घिरा है, शिखर सम्मेलन का प्रयास साझा ज़मीन खोजना है.
भारत की साख बहुत अच्छी है : जयशंकर
विदेशमंत्री ने कहा कि भारत की छवि बहुत रचनात्मक देश की है, जिसकी साख भी काफ़ी अच्छी है, उन्होंने यह भी कहा कि हर कोई काफ़ी गंभीरता के साथ शिखर सम्मेलन में आ रहा है.
पहले भी गैरहाज़िर हुए हैं राष्ट्रपति, PM : विदेशमंत्री
एस. जयशंकर ने कहा, "मुझे लगता है कि जी20 में अलग-अलग समय पर कुछ ऐसे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्होंने किन्हीं भी वजहों से खुद नहीं आने का फ़ैसला किया, और उनके देश की नुमांयदगी उनके किसी प्रतिनिधि ने की... सो, ऐसे कुछ मौके रहे हैं, जब एक या दो, कभी-कभी तीन, राष्ट्रपति भी खुद नहीं आए...''
"पुतिन, चिनफिंग की गैरहाज़िरी से असर नहीं..."
विदेशमंत्री एस. जयशंकर से पूछा गया कि क्या रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की अनुपस्थिति का असर 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन पर पड़ेगा. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में एस. जयशंकर ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि इसका भारत से कोई लेना-देना है... मेरे विचार में वे जो भी फ़ैसला करते हैं, उसके बारे में उन्हीं को बेहतरीन जानकारी होगी..."
उधर, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने पिछले माह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में शिखर सम्मेलन में शिरकत करने में असमर्थता व्यक्त की थी और बताया था कि रूस का प्रतिनिधित्व विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव करेंगे.
शिखर सम्मेलन के नतीजे पर इन नेताओं की अनुपस्थिति के किसी असर के बारे में पूछे जाने पर एस. जयशंकर ने कहा कि ये मुद्दे नए नहीं हैं. उन्होंने कहा, "मैं इसे इस तरह पेश करूंगा... मुद्दे तो हैं, लेकिन ऐसे मुद्दे नहीं हैं, जिन्हें आज सुबह ही उठाया गया हो... मेरा मतलब है कि आठ-नौ महीने की पूरी अवधि रही है, जहां विभिन्न स्तरों पर मंत्रियों या अधिकारियों ने किसी मुद्दे पर आगे बढ़ने की कोशिश की... तो, यह शिखर सम्मेलन नतीजे की तरह है... यह वास्तव में लगभग 16-18 अलग-अलग प्रक्रियाएं रही हैं, जो एक साथ आकर अंत में शिखर सम्मेलन का मंच तैयार कर चुकी हैं..."
उन्होंने कहा, "दरअसल, इस वक्त हम बातचीत कर रहे हैं... जब मैं बातचीत कहता हूं, तो उसका अर्थ यह नहीं है कि यह कल ही शुरू हुआ था... यह काम पिछले कुछ वक्त से होता आ रहा है... सो आमतौर पर ऐसा होता है कि एक मंत्रिस्तरीय बैठक होती है, और फिर उस मंत्रिस्तरीय बैठक से नतीजे हासिल होते हैं..."
विदेशमंत्री से आम सहमति बनाने को लेकर सवाल किया गया, और यह भी पूछा गया कि और भारत किस स्थिति को सबके लिए फ़ायदेमंद मानेगा, तो एस. जयशंकर ने कहा कि यह सिर्फ भारत के दृष्टिकोण का मामला नहीं है.
"दुनिया को जी-20 से बहुत ज़्यादा उम्मीदें..."
एस. जयशंकर ने कहा, "आज दुनियाभर को इस संदर्भ में बहुत ज़्यादा उम्मीदें हैं कि जी20 दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के मामले में क्या हासिल कर सकता है... इसलिए, आप चाहे अफ़्रीका जाएं, लैटिन अमेरिका जाएं, एशिया के कुछ हिस्सों में जाएं, कैरेबियन में जाएं, या प्रशांत क्षेत्र में जाएं, आज हर कोई यही कह रहा है - हमारी भी समस्याएं हैं, हमारे पास कर्ज़ की समस्या है, हमारे पास व्यापार में समस्या है, हमारे पास स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हैं, हमारे पास हरित विकास संसाधनों से जुड़ी समस्या है - तो, जी20 मेरे लिए क्या करेगा...? इसलिए, दुनिया इंतज़ार कर रही है..."
उन्होंने कहा कि जी20 के लिए बहुत सारे मुद्दे हैं और एक अहम संदेश यही है कि ग्लोबल साउथ पर फ़ोकस करना है. उन्होंने कहा, "आपको वास्तव में बहुत सारे मुद्दे मिलेंगे, जो दुनिया के सामने हैं... और इनमें से बहुत बड़ा हिस्सा ग्लोबल साउथ, यानी विकासशील देशों में है... इसलिए हमारे लिए एक बहुत ही अहम संदेश यही है कि ग्लोबल साउथ पर फ़ोकस करें... लेकिन एक वृहत्तर संदर्भ भी है... यह संदर्भ है बेहद अशांत वैश्विक वातावरण का - COVID का असर, यूक्रेन युद्ध का असर, कर्ज़ जैसे मुद्दे, जो लम्बे अरसे से मौजूद हैं, और साथ ही जलवायु व्यवधान भी, जो अर्थव्यवस्थाओं पर असर डाल रहे हैं..."