विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत-मालदीव विवाद को लेकर कहा कि, "राजनीति तो राजनीति है" और इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती कि हर देश हर बार भारत का समर्थन करेगा या हम से सहमत होगा. वे शनिवार को नागपुर में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. जयशंकर ने कहा, ‘‘हमने पिछले 10 वर्षों में बहुत सफलता के साथ मजबूत संबंध बनाने की कोशिश की है.''
उन्होंने कहा, "राजनीति तो राजनीति है. मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता कि हर देश में, हर दिन, हर कोई हमारा समर्थन करेगा या हमसे सहमत होगा." इसके अलावा उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में भारत दुनिया के साथ बहुत मजबूत संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है.
जयशंकर ने कहा, ‘‘राजनीति में उतार-चढ़ाव चलते रहता है, लेकिन उस देश के लोगों में आम तौर पर भारत के प्रति अच्छी भावनाएं हैं और वे अच्छे संबंधों के महत्व को समझते हैं.'' उन्होंने यह भी कहा कि भारत वहां सड़कों, बिजली पारेषण लाइन, ईंधन की आपूर्ति, व्यापार पहुंच प्रदान करने, निवेश में शामिल रहा है.
विदेश मंत्री ने कहा कि ये इस बात को दिखाता है कि कोई रिश्ता कैसे विकसित होता है, हालांकि कभी-कभी चीजें सही रास्ते पर नहीं चलती हैं और इसे वापस वहां लाने के लिए लोगों को समझाना पड़ता है जहां इसे होना चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के बाद मालदीव के कुछ मंत्रियों ने आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं जिससे विवाद शुरू हो गया.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि सीमा पर गतिरोध के बीच चीन को संबंधों के सामान्य रूप से आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. उन्होंने नागपुर में एक कार्यक्रम में ‘भू-राजनीति में भारत का उदय' विषय पर कहा कि कूटनीति जारी रहती है और कभी-कभी कठिन परिस्थितियों का समाधान जल्दबाजी में नहीं निकलता है.
कार्यक्रम के दौरान उन्होंने दर्शकों के सवालों के जवाब दिए. जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमाओं पर आपसी सहमति नहीं है और यह निर्णय लिया गया था कि दोनों पक्ष सैनिकों को इकट्ठा नहीं करेंगे और अपनी गतिविधियों के बारे में एक दूसरे को सूचित रखेंगे, लेकिन पड़ोसी देश ने 2020 में इस समझौते का उल्लंघन किया.
जयशंकर ने कहा कि चीन बड़ी संख्या में अपने सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर ले आया और गलवान की घटना हुई. विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने अपने चीनी समकक्ष को बताया है कि ‘‘जब तक सीमा पर कोई समाधान नहीं निकलता, उन्हें अन्य संबंधों के सामान्य रूप से आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.''
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘यह असंभव है. आप एक ही समय में लड़ना और व्यापार नहीं करना चाहते. इस बीच, कूटनीति जारी है और कभी-कभी कठिन परिस्थितियों का समाधान जल्दबाजी में नहीं निकलता है.''
यह पूछे जाने पर कि संयुक्त राष्ट्र अधिकांश युद्धों को रोकने में सक्षम नहीं है, लेकिन इसके कुछ सदस्य भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट से वंचित करने में सफल रहे हैं, जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र 1950 और 1960 के दशक में प्रासंगिक हुआ करता था और अंतराल होने के कारण सुरक्षा परिषद में शामिल पांच राष्ट्र अन्य देशों पर हावी रहते हैं.
जयशंकर ने कहा कि पिछले 30-40 वर्षों में जो हुआ है उसके अब मायने नहीं है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की सीमा अब दिखाई दे रही है और कई लोग मानते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत को वहां (स्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में) होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि भारत की अध्यक्षता में पिछले साल आयोजित जी20 बैठकों के बाद किसी को भी एकजुट नतीजे की उम्मीद नहीं थी लेकिन ‘‘हम कामयाब रहे.'' विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हर गुजरते साल दुनिया को लगता है कि भारत को वहां होना चाहिए, लेकिन दुनिया आसानी से और उदारता से चीजें नहीं देती है. कभी-कभी लेना पड़ता है. हम आगे बढ़ते रहेंगे.''
भारत के दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद बड़ी संख्या में भारतीयों द्वारा विदेश में बसने के लिए अपना पासपोर्ट ‘सरेंडर' करने के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि यह एक व्यक्तिगत पसंद है.
उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र में, आपको कुछ व्यक्तिगत विकल्पों को स्वीकार करना होगा क्योंकि यह जीवन की प्रकृति है. लेकिन सबसे अच्छा जवाब यह है कि हम भारत में अधिक और बेहतर रोजगार के अवसर कैसे प्रदान कर सकते हैं.''
जयशंकर ने कहा कि किसी को विदेश जाने वाले लोगों को नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखना चाहिए क्योंकि यह गर्व की बात है कि आतिथ्य, विमानन, शिपिंग जैसे क्षेत्रों में भारतीय योगदान देने के लिए रोजगार लेने को तैयार हैं.
जब उनसे विदेशी मामलों में देश की कुछ प्रमुख उपलब्धियों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ संबंध 1947 से अगले 50 वर्षों तक नकारात्मक या कठिन थे, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में बेहतरी की ओर बदलाव शुरू हुआ.
जयशंकर ने कहा कि आज अमेरिका भारत को कैसे देखता है, इसमें अंतर है. विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘वे भारत के महत्व को पहचानते हैं, खासकर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में. अमेरिकी व्यवसायों में भारत के प्रति उत्साह बदल गया है. वे पहले बहुत मजबूत नहीं थे. ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंध काफी बदल गए हैं.''
उन्होंने कहा कि अगर व्यापार, राजनीतिक और सुरक्षा विश्वास को देखा जाए तो खाड़ी देशों के साथ भी संबंध बदल गए हैं. उन्होंने कहा, ‘‘अगले महीने हम अबू धाबी (संयुक्त अरब अमीरात में) में स्वामीनारायण मंदिर का उद्घाटन देखेंगे.''