इजराइल-हमास संघर्ष का सीधा असर भारत के ऊर्जा और आर्थिक हितों पर पड़ता है : भारत

रवींद्र ने कहा कि इस संघर्ष की शुरुआत से ही भारत ने जो संदेश दिया है वह स्पष्ट और सुसंगत है कि मानवीय सहायता की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि संघर्ष बढ़े नहीं. उन्होंने कहा कि मानवीय स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है और भारत इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों का स्वागत करता है.

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वाशिंगटन: भारत के एक शीर्ष राजनयिक ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों को बताया कि पश्चिम एशिया में इजराइल और हमास के बीच जारी संघर्ष से हिंद महासागर में समुद्री वाणिज्यिक यातायात सुरक्षा प्रभावित हो रही है और इसका सीधा असर देश के ऊर्जा एवं आर्थिक हितों पर पड़ रहा है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि आर. रवींद्र ने यूएनएससी में खुली चर्चा के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा, ‘‘(पश्चिम एशिया में) जारी संघर्ष से हिंद महासागर में समुद्री वाणिज्यिक यातायात की सुरक्षा पर भी असर पड़ रहा है जिसमें भारत से जुड़े जहाजों पर कुछ हमले भी शामिल हैं.'' उनकी यह टिप्पणी लाल सागर में जहाजों पर हूती विद्रोहियों के हमलों में वृद्धि के बीच आई है.

रवींद्र ने हूती विद्रोहियों का नाम लिए बगैर कहा, ‘‘यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बहुत चिंता का विषय है और इसका भारत के ऊर्जा और आर्थिक हितों पर सीधा असर पड़ता है. यह भयावह स्थिति किसी भी पक्ष को लाभ नहीं पहुंचाएगी और इसे स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए.' क्षेत्र में समुद्री यातायात की सुरक्षा को लेकर चिंताएं रही हैं. हूतियों ने कहा है कि ये हमले गाजा में इजराइल के युद्ध के जवाब में और फलस्तीनियों के प्रति अपना समर्थन दिखाने के लिए हैं.

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रवींद्र ने कहा कि इस संघर्ष की शुरुआत से ही भारत ने जो संदेश दिया है वह स्पष्ट और सुसंगत है कि मानवीय सहायता की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि संघर्ष बढ़े नहीं. उन्होंने कहा कि मानवीय स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है और भारत इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों का स्वागत करता है.

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उन्होंने कहा कि भारत ने गाजा में फलस्तीनी लोगों को राहत सामग्री की खेप पहुंचाई है. हमने फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) को दिसंबर के अंत में 25 लाख अमेरिकी डॉलर सहित 50 लाख अमेरिकी डॉलर की सहायता भी प्रदान की है जो एजेंसी के मुख्य कार्यक्रमों और फलस्तीनी शरणार्थियों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, राहत और सामाजिक सेवाओं में सहयोग करने के मद में है.

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रवींद्र ने कहा, ‘‘भारत का दृढ़ विश्वास है कि केवल द्वि-राष्ट्र समाधान ही अंतिम विकल्प है और यही स्थायी शांति प्रदान करेगा जिसकी इजराइल और फलस्तीन के लोग इच्छा रखते हैं और इसके हकदार हैं. इसके लिए हम सभी पक्षों से तनाव कम करने, हिंसा से दूर रहने, उत्तेजक और तनाव बढ़ाने वाली कार्रवाइयों से बचने और सीधी शांति वार्ता को जल्द से जल्द फिर से शुरू करने के लिए स्थितियां बनाने की दिशा में काम करने का आग्रह करते हैं.''

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अपने संबोधन में अमेरिका की नागरिक सुरक्षा, लोकतंत्र और मानवाधिकार मामलों की विदेश उप मंत्री उजरा जेया ने इजराइली नेताओं से अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप नागरिक क्षति को कम करने के लिए संभावित सावधानी बरतने का आह्वान किया.

उन्होंने संघर्ष शुरू करने में हमास की भूमिका पर भी जोर दिया और ईरान और उसके तथाकथित सहयोगियों द्वारा व्यापक क्षेत्र में हमले किए जाने की निंदा की. उन्होंने कहा कि शांति की एकमात्र गारंटी द्वि-राष्ट्र समाधान है, जिसमें इजराइल की सुरक्षा की गारंटी भी है. उन्होंने वेस्ट बैंक और गाजा में एक मजबूत फलस्तीनी प्राधिकरण का आह्वान किया.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने सुरक्षा परिषद से कहा कि किसी भी पक्ष द्वारा द्वि-राष्ट्र समाधान की अस्वीकार्यता को दृढ़ता से खारिज किया जाना चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इजराइल के नेताओं का हाल में स्पष्ट तौर पर और बार-बार द्वि-राष्ट्र समाधान को अस्वीकार करना ठीक नहीं है.

उन्होंने रेखांकित किया कि इजराइल और फलस्तीनियों दोनों की वैध आकांक्षाओं को पूरा करने का एकमात्र तरीका द्वि-राष्ट्र समाधान फॉर्मूला है. फलस्तीन के विदेश और प्रवासी मामलों के मंत्री रियाद अल-मलिकी ने कहा कि इजराइल के नेता हमारे लोगों को सह-अस्तित्व की भावना से नहीं देखते हैं बल्कि वे हमें जनसांख्यिकीय खतरे के रूप में देखते हैं.

युद्धविराम के लिए परिषद के सदस्यों के आह्वान को ‘‘चौंकाने वाला'' बताते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के किसी भी कदम से हमास सत्ता में आ जाएगा, जिससे उन्हें फिर से संगठित होने की अनुमति मिल जाएगी जबकि ‘‘इजराइलियों को नरसंहार के एक और प्रयास का सामना करना पड़ेगा''.

यूरोप और फ्रांस के विदेश मामलों के मंत्री स्टीफन सेजॉर्न ने कहा कि परिषद के पास दो संभावित विकल्प हैं. पहला है विभाजन, तर्क-वितर्क और संघर्ष को भड़काना जो अपने पड़ोसी पर आक्रमण करने की इच्छा रखने वालों की पसंद होता है. दूसरा विकल्प शांति और दोनों देशों की भलाई के लिए इजराइल और फलस्तीनियों दोनों के साथ खड़ा होना है, जिसमें दोनों पक्षों के लिए कठिन चीजें शामिल हैं. उन्होंने कहा कि उनकी पसंद दूसरा विकल्प होगा.

फ्रांस जनवरी महीने में यूएनएससी का अध्यक्ष है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि परिषद ने अमेरिका के प्रभाव के कारण स्थिति पर उचित प्रतिक्रिया नहीं दी. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानून पर आधारित विश्व व्यवस्था का आह्वान किया जिसमें संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका हो.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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