कभी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित अखबारों में गिना जाने वाला वॉशिंगटन पोस्ट आज भारत में अपनी विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवालों का सामना कर रहा है. जिस अखबार ने वॉटरगेट स्कैंडल जैसे मामलों में सत्ताधारी ताकतों को बेनकाब किया था, वही अब भारत के बढ़ते आत्मविश्वास और आर्थिक उदय को लेकर लगातार संदिग्ध रिपोर्टें प्रकाशित करने के कारण आलोचनाएं झेल रहा है.
वॉशिंगटन पोस्ट जैसे विदेशी मीडिया द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अटकलों पर आधारित रिपोर्ट प्रकाशित करना उन दलों और पक्षकारों की हताश चाल लगती है, जिनके नेता पिछले दस वर्षों से चुनावी मैदान में सिर्फ हार ही देख रहे हैं. अक्टूबर में प्रकाशित रिपोर्ट इसका ताजा उदाहरण है. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि भारत सरकार, वित्त मंत्रालय और एलआईसी ने मिलकर अदाणी ग्रुप को 33,000 करोड़ रुपये की मदद पहुंचाई. रिपोर्ट में अज्ञात सूत्रों का हवाला दिया गया, लेकिन किसी ठोस दस्तावेज या स्वतंत्र सत्यापन का जिक्र नहीं था, जो इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है.
भारत सरकार, एलआईसी और अदाणी ग्रुप तीनों ने तुरंत इसे “भ्रामक और मनगढ़ंत” रिपोर्ट बताकर खारिज किया. एलआईसी ने स्पष्ट किया कि अदाणी ग्रुप की कंपनियों में निवेश उसके कुल पोर्टफोलियो का एक प्रतिशत भी नहीं है, और उस निवेश पर उसे 120% से अधिक का लाभ मिला है.
भारतीय मीडिया ने भी इस रिपोर्ट को उसी तरह “हिट जॉब” करार दिया, जैसे 2023 में हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जरिए भारत की कंपनियों और बाजार को निशाना बनाया गया था. इसके खिलाफ सोशल मीडिया पर #FakeNewsWaPo और #StopTargetingIndia जैसे हैशटैग भी ट्रेंड हुए.
वॉशिंगटन पोस्ट पर पहले भी उठे हैं सवाल
- जून 2025 में अखबार को गाजा पर अपनी एक रिपोर्ट का हिस्सा वापस लेना पड़ा था, जिसमें इजराइली सेना पर नागरिकों की मौत का गलत आरोप लगाया गया था. बाद में अखबार ने माना कि हेडलाइन और रिपोर्ट “तथ्यों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व नहीं थी.”
- जुलाई 2025 में अखबार को भारतीय चैनल टीवी9 भारतवर्ष से माफी मांगनी पड़ी थी क्योंकि उसने पाकिस्तान को लेकर एक रिपोर्ट में व्हाट्सऐप मैसेज की गलत व्याख्या करते हुए भारतीय मीडिया की गलत प्रस्तुति की थी.
- 2019 में अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में अश्वेत परिवारों की जमीन से जुड़े उसके एक लेख में 15 बड़ी त्रुटियां पाई गईं. नाम, तारीख और घटनाओं का ब्यौरा तक गलत था. बाद में अखबार ने खुद इसे “शर्मनाक” कहा.
- 2021 में वॉशिंगटन पोस्ट को डोनाल्ड ट्रंप पर प्रकाशित एक रिपोर्ट सुधारनी पड़ी थी, जिसमें कथित तौर पर उनके हवाले से “Find the fraud” कहा गया था लेकिन बाद में जारी ऑडियो में यह बात झूठी साबित हुई.
- उसी साल नवंबर में वॉशिंगटन पोस्ट को स्टील डॉसियर से जुड़ी दो रिपोर्ट हटानी पड़ी थीं क्योंकि उनके स्रोत “कम विश्वसनीय” पाए गए थे.
इस सबके बाद जब वॉशिंगटन पोस्ट भारत की सरकारी संस्थाओं खासकर सबसे विश्वसनीय संस्थाओं में से एक पर आरोप लगाता है तो पाठकों में शक पैदा होना स्वाभाविक है. कई भारतीयों को लगता है कि यह विदेशी मीडिया अब निष्पक्ष पत्रकारिता से ज़्यादा राजनीतिक एजेंडे का मंच बन चुका है.
भारत के लोगों को भरमाना अब आसान नहीं है. भारत में स्वतंत्र मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए लोग अब खुद तथ्यों की जांच करने लगे हैं. विदेशी अखबारों का प्रभाव वैसा नहीं रहा, जैसा कभी हुआ करता था. ऐसे में जब वॉशिंगटन पोस्ट जैसी संस्थाएं भारत की नीतियों पर हमला करती हैं तो लोग पहले सबूत मांगते हैं.
भारत में जिन संस्थाओं पर लोगों का सबसे गहरा भरोसा है, एलआईसी उनमें एक है. वह सिर्फ एक बीमा कंपनी नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों के सपनों और सुरक्षा का प्रतीक है. छोटे शहर में रहने वाला नागरिक हो या महानगर का निवासी, हर कोई एलआईकी को अपने भविष्य की गारंटी के रूप में देखता है. किसी की बेटी की शादी हो, किसी का मकान हो या रिटायरमेंट का सहारा- एलआईसी सबका सहारा है.
महाराष्ट्र के सतारा के रमेश पाटिल का उदाहरण देखिए. उन्होंने 25 साल पहले एलआईसी की पॉलिसी ली थी. जब 2025 में उनकी बेटी की शादी का समय आया तो वही पॉलिसी उनके लिए वरदान साबित हुई. रमेश मुस्कुराते हुए कहते हैं, “कंपनियां आती-जाती हैं, पर एलआईसी हमेशा साथ देती है.”
इस भरोसे की जड़ें बहुत गहरी हैं. आजादी के बाद जब देश का वित्तीय ढांचा बन रहा था, तब 1956 में एलआईसी की स्थापना हुई थी. तब से लेकर अब तक उसने हर आर्थिक संकट, हर सरकार और हर बदलते दौर में लोगों का पैसा सुरक्षित रखा है. 1991 के आर्थिक सुधार हों या कोविड-19 महामारी, एलआईसी ने हमेशा अपनी साख बनाए रखी है. एलआईसी सिर्फ बीमा नहीं, भरोसा बांटती है. शायद इसी वजह से उसकी 30 करोड़ से ज़्यादा एक्टिव पॉलिसियां हैं. यह किसी प्राइवेट कंपनी के लिए असंभव आंकड़ा है.
दशकों से ईमानदारी और पारदर्शिता का प्रतीक रही एलआईसी जैसी संस्था पर बिना ठोस सबूत दिए सवाल उठाना लोगों के गले नहीं उतर रहा. कई लोग सोशल मीडिया पर इसे विदेशी मीडिया का “भारत-विरोधी एजेंडा” बता रहे हैं. ऐसे समय जब बिहार विधानसभा चुनाव चल रहा है, वॉशिंगटन पोस्ट की खोखली रिपोर्ट एलआईसी पर हमले की सोची समझी रणनीति लगती है.














