बिहार (Bihar) में स्वास्थ्य विभाग अपनी गलतियों से सबक नहीं सीख रहा. कम से कम कोरोना जाँच से सम्बंधित मामले में तो यही दिख रहा है. ताज़ा मामले में राज्य के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में स्वास्थ्य विभाग के अपनी जाँच में कई ब्लॉक में ऐंटिजेन की जितनी किट मिली उससे अधिक जाँच रिपोर्ट सरकारी पोर्टल में दर्ज हैं.
इस घोटाले का खुलासा भी दैनिक भास्कर अखबार ने किया है, जिसने पहले एक रिपोर्ट में 25 प्रतिशत मोबाइल नम्बर ग़लत पाये थे. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग के ज़िला स्तर की समिति ने जांच में पाया था कि कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर जाँच के जितने ऐंटिजेन किट मिले उससे कई गुणा अधिक जाँच का डेटा सरकारी पोर्टल पर अपलोड कर दिए गए.
उदाहरण के लिए, बोचहाँ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को 4350 किट निर्गत हुए. उस स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों ने 3550 किट स्वीकार किए लेकिन केंद्रीय पोर्टल में 6740 जाँच ऐंटिजेन से करने का डेटा अपलोड कर दिया गया है. ऐसे ही एक और संकरा स्वास्थ्य केंद्र में 7350 ऐंटिजेन किट उपलब्ध कराए गए लेकिन उसके रेकर्ड के अनुसार 8450 किट मिला और जाँच किया उससे भी अधिक 8668 लोगों का.
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निश्चित रूप से राज्य में जाँच किट का ये नया घोटाला सामने नहीं आया है. इससे पूर्व पिछले साल भी ग़लत मोबाइल नम्बर का हेराफेरी का मामला सामने आया था और जाँच के बाद कई लोगों को निलंबित भी किया गया था लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो बार-बार ऐसा राज्य में पूरी जाँच का 75 प्रतिशत ऐंटिजेन टेस्ट के ऊपर निर्भरता के कारण हो रहा है.
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राज्य के चार ज़िलों में तो 85 प्रतिशत केवल ऐंटिजेन टेस्ट हुए हैं. इसमें मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का अपना गृह ज़िला नालंदा भी शामिल है, जहाँ आरटी-पीसीआर टेस्ट मात्र 10 प्रतिशत और शेष 90 प्रतिशत ऐंटिजेन टेस्ट हुआ. इसके अलावा पूर्णिया में मात्र एक प्रतिशत आरटी-पीसीआर टेस्ट हुआ है.