देश में मौजूद पिछड़ी जातियों को मिलने वाले आरक्षण को लेकर सेंटर ऑफ पॉलिसी एनालिसिस ने एक इंटीग्रल सोशल डेवलपमेंट रिपोर्ट पेश की है. इस रिपोर्ट में अति पिछड़ी जाति से लेकर पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण के नियमों में बदलाव के कई तरह के सुझाव भी दिए गए हैं. NDTV ने सेंटर ऑफ पॉलिसी एनालिसिस के दुर्गानंद झा से खास बातचीत की. उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि ये इंटिगरल सोशल डेवलेपमेंट रिपोर्ट है वो कुछ फॉर्मेटिव एक्शन पॉलिसी चल रही है उसमें चेंज करने की बात कर रही है. हम मानते हैं कि जो बैकवर्ड का कंस्ट्रेशन रुरल एरिया में ज्यादा है. सरकार का डेटा भी यही शो कर रहा है. इसलिए कास्ट के बदले अब रुरल एरिया को मानक मानना चाहिए. दूसरा रुरल एरिया में भी परिवार होना चाहिए.
हमने रिजर्वेशन के लिए दो कैटेगरी के रिकमेंड किया है. एक है बैकवर्ड फैमिली और दूसरा है मोस्ट बैकवर्ड फैमिली. हमने बैकवर्ड फैमिली के लिए 9 फीसदी जबकि मोस्ट बैकवर्ड फैमिली को 11 फीसदी आरक्षण देने की बात कही है. उसके बाद हमने ईडब्ल्यूएस है, उसको लेकर हमने ये रिकमंड किया है कि इनको मिलने वाले आरक्षण को 10 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया जाए. और उसका एरिया अर्बन नोटिफाइड ही रहना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि इस रिपोर्ट में हमने एससी कैटेगरी के तहत आने वाले उन परिवारों को 10 फीसदी का आरक्षण देने की बात कही है, जिनको आज तक कोई आरक्षण नहीं मिला है. और पांच फीसदी आरक्षण बाकि के लिए छोड़ दिया जाए. वहीं एसटी को अभी तक साढ़े सात फीसदी आरक्षण मिलता है. हमने इस रिपोर्ट में कहा है कि पांच फीसदी आरक्षण उन परिवारों को मिले जिनको आज तक आरक्षण नहीं मिला है. बाकि ढाई फीसदी अन्य एसटी के लोगों को मिले.
"9वीं से 12वीं तक की शिक्षा केंद्र सरकार देखे"
मैंने सरकार से मांग की है कि नौवीं से 12वीं तक की शिक्षा को केंद्र सरकार देखे. ऐसा करने से अर्बन और रुरल एरिया के बीज एजुकेशन की क्वालिटी के बीच का गैप खत्म किया जा सके. पहली कक्षा से लेकर 8वीं तक की शिक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दी जाए. हमने अलग-अलग वर्गों के हिसाब से हो रहे पक्षपात पर भी सरकार का ध्यान आकर्षित किया है. दुर्गानंद झा ने NDTV से कहा कि हमने इस रिपोर्ट में कहा है कि कुछ सेक्शन ऐसे हैं जिनको डबल आइडेंटिटी बेनेफिट मिल रहा है जबकि कुछ को नहीं मिल रहा है. हमारा कहना है कि किसी को भी सिर्फ एक ही आधार पर बेनेफिट मिलना चाहिए. हमारा कहना है कि या तो किसी को बैकवर्ड होने के नाते आरक्षण मिले या फिर धर्म के आधार पर.
"लोकतंत्र में सबको एक सामान्य अधिकार मिलना चाहिए"
उन्होंने आगे कहा कि मेरा ये मानना है कि 2479 कास्ट का एक ग्रुप बना दिए हैं. बाकि सब अलग-अलग रह गए है. इसके कारण लोकतंत्र में अनग्रुप्ड कास्ट के साथ भेदभाव जैसा व्यवहार होने लगता है. हमारा कहना है कि लोकतंत्र में सबको सामान्या अधिकार मिलना चाहिए. किसी को भी एक्स्ट्रा एडवांटेज नहीं मिलना चाहिए. हमारा मानना है कि जिन जातियों का पॉलिटिकल एम्पावरमेंट हो चुका है, उन्हें अब ओबीसी कैटेगरी से निकाल देना चाहिए. और जिन पिछड़ी जातियों का एम्पावरमेंट नहीं हुआ है उन्हें ज्यादा मौका मिलना चाहिए.
रिपोर्ट में अलग-अलग क्राइटेरिया का जिक्र
हमने इस रिपोर्ट को तैयार करते समय अलग-अलग क्राइटेरिया को भी विस्तार से जिक्र किया है. हमने कहा है कि बैकवर्ड फैमिली के तहत जिसकी मूवेबल प्रॉपर्टी 10 लाख रुपये कम हो, कोई गांव में बिजनेस कर रहा हो तो उसका वार्षिक टर्नओवर 36 लाख रुपये से ज्यादा ना हो, जिसके परिवार में क्लास वन या क्लास टू का कोई अफसर ना हो, जैसे कई और क्राइटेरिया का सुझाव हमने दिया है. वहीं, मोस्ट बैकवर्ड फैमिली के लिए हमने क्राइटेरिया दिया है कि जिसका इनकम आठ लाख के अंदर हो, जिसका जमीन दो एकड़ से कम हो, जिसका मूवेबल प्रोपॉर्टी एक लाख से ज्यादा ना हो, साथ-साथ कई अन्य चीजों को क्राइटेरिया में जोड़ा गया है. हमारा कहना है कि इन तमाम वर्गों के तहत आने वाले परिवारों की इंडेक्सिंग हो.
इस इंडेक्सिंग के आधार पर हर परिवार के एक सदस्य को एक नबंर अलॉट कर देना चाहिए. और जब वह 18 वर्ष का हो तो उसे एक्टिव कर ले और अगले 10 साल में वह इसका बेहतर इस्तेमाल कर सके. हम ये रिपोर्ट देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, वित्त मंत्री और सोशल जस्टिस इंपावरमेंट मिनिस्टर को देंगे. हमे लगता है कि हमारा देश अभी आइडेंटिटी पॉलिटिक्स के ट्रैप में फंसा है. हम इस ट्रैप से देश को निकालना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि हमारा देश जाति के ट्रैप में ना फंसे.
अब देखिए राहुल गांधी और तेजस्वी यादव युवा नेता भी आज जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं. इस तरह की बात का अब कोई मतलब नहीं है. हमे लगता है कि ऐसे नेताओं को इन चीजों पर ज्यादा फोकस करने की जगह भारत के भविष्य को लेकर ज्यादा बात करनी चाहिए.
"मंडल कमीशन एक सोशल स्कैम था"
मेरा मानना है कि मंडल कमीशन एक सोशल स्कैम था. ये अति पिछड़ी जातियों का हकमारी किया है. इस कमीशन का तो इस कमेटी के एक सदस्य ने उसी समय विरोध भी किया था. इस कमीशन की रिपोर्ट की वजह से ही आज तक अति पिछड़ा वर्ग को उनका हक नहीं मिल सका है. और इसका ज्यादातर फायदा कुछ दबंग जातियां ले रही हैं. हमारी रिपोर्ट नई सोच के साथ बनाई गई रिपोर्ट है.