भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के भीतर तत्काल सुधारों की जरूरतों पर जोर देते हुए कहा है कि वैश्विक निकाय "गुमनामी" की ओर बढ़ रहा है. लंबी चर्चा पर निराशा व्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज (Ruchira Kamboj) ने कहा कि 2000 में मिलेनियम शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं द्वारा व्यापक सुधारों के लिए प्रतिबद्ध हुए लगभग 25 साल बीत चुके हैं. वर्तमान में, केवल पांच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका- के पास वीटो शक्ति है. उन्होंने इसका इस्तेमाल कर यूक्रेन और गाजा जैसी वैश्विक चुनौतियों और संघर्षों से निपटने संबंधी परिषद की कार्रवाई को बाधित किया है.
कितना इंतजार करना होगा...?
रुचिरा कंबोज ने सुरक्षा परिषद सुधारों पर एक अनौपचारिक बैठक के दौरान कहा, "सुरक्षा परिषद सुधारों पर चर्चा 1990 के दशक की शुरुआत से दो दशक से भी अधिक समय से जारी है. दुनिया और हमारी आने वाली पीढ़ियां अब और इंतजार नहीं कर सकतीं. उन्हें और कितना इंतजार करना होगा...?" कंबोज ने सुधारों की दिशा में ठोस प्रगति का आग्रह किया, युवा पीढ़ी की आवाज़ों पर ध्यान देने और विशेष रूप से अफ्रीका में ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के महत्व पर जोर दिया.
यूएन में यथास्थिति बनाए रखने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कंबोज ने अधिक समावेशी दृष्टिकोण का प्रस्ताव दिया, सुरक्षा परिषद के विस्तार को गैर-स्थायी सदस्यों तक सीमित करने से इसकी संरचना में असमानताएं बढ़ सकती हैं. उन्होंने परिषद की समग्र वैधता को बढ़ाने के लिए प्रतिनिधित्व और न्यायसंगत भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दिया.
युवा-भावी पीढ़ियों की आवाज पर ध्यान देते हुए सुधार...
कंबोज ने कहा, "हमें अफ्रीका सहित युवा और भावी पीढ़ियों की आवाज पर ध्यान देते हुए सुधार को आगे बढ़ाना चाहिए, जहां ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने की मांग और भी मजबूत हो रही है. अन्यथा, हम परिषद को गुमनामी और अप्रासंगिक होने के रास्ते पर भेजने का जोखिम उठा रहे हैं." अधिक प्रतिनिधित्व के लिए भारत के आह्वान को दोहराते हुए, जी4 देशों (भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान) ने 193 सदस्य देशों के विचारों की विविधता और बहुलता को प्रतिबिंबित करने के महत्व पर जोर दिया, खासकर गैर-स्थायी श्रेणी में.
भारत ने UNSC सुधार के लिए रखा जी4 मॉडल
कंबोज ने महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के साथ विस्तृत जी4 मॉडल साझा करते हुए कहा, "जब 1945 में परिषद की स्थापना की गई थी, तब की वास्तविकताएं, आधुनिक युग और नई सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं से काफी समय पहले बदल गई हैं और इसमें बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है." उन्होंने कहा कि इन नई वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए जी4 मॉडल का प्रस्ताव है कि छह स्थायी और चार या पांच गैर-स्थायी सदस्यों को जोड़कर सुरक्षा परिषद की सदस्यता मौजूदा 15 से बढ़कर 25 से 26 की जाए.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र को दिया प्रस्ताव
सुरक्षा परिषद में दो अफ्रीकी देशों और दो एशिया प्रशांत देशों, एक लातिन अमेरिकी एवं कैरेबियाई देश तथा पश्चिमी यूरोपीय एवं अन्य क्षेत्रों से एक देश को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है. जी4 मॉडल के अनुसार, सदस्यता की दोनों श्रेणियों में प्रमुख क्षेत्रों के "स्पष्ट रूप से कम प्रतिनिधित्व और गैर-प्रतिनिधित्व" के कारण सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना इसकी वैधता और प्रभावशीलता के लिए ‘हानिकारक' है. इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि संघर्षों से निपटने और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में परिषद की असमर्थता सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है.
वीटो पावर को लेकर लचीलेपन की पेशकश
कंबोज ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जी4 मॉडल यह नहीं बताता कि कौन से देश नए स्थायी सदस्य होंगे और यह निर्णय लोकतांत्रिक और समावेशी तरीके से चुनाव के जरिये महासभा करेगी. जी4 मॉडल के तहत वीटो को लेकर लचीलेपन की पेशकश की गई. वीटो का मामला सदस्य देशों के बीच विवाद का विषय रहा है. कंबोज ने कहा, "हालांकि नए स्थायी सदस्यों की जिम्मेदारियां एवं दायित्व सैद्धांतिक रूप से वर्तमान स्थायी सदस्यों के समान ही होंगे, लेकिन वे तब तक वीटो का प्रयोग नहीं करेंगे जब तक कि समीक्षा के दौरान मामले पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है." उन्होंने कहा, "बहरहाल, हमें वीटो मुद्दे को परिषद सुधार की प्रक्रिया पर ‘वीटो' की अनुमति नहीं देनी चाहिए. हमारा प्रस्ताव रचनात्मक बातचीत के लिए इस मुद्दे पर लचीलापन प्रदर्शित करने का एक संकेत भी है."
बता दें कि मौजूदा समय में केवल पांच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका- के पास वीटो शक्ति है. उन्होंने इसका इस्तेमाल कर यूक्रेन और गाजा जैसी वैश्विक चुनौतियों और संघर्षों से निपटने संबंधी परिषद की कार्रवाई को बाधित किया है. परिषद में शेष 10 देशों को दो साल के कार्यकाल के लिए गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में चुना जाता है और उनके पास वीटो शक्ति नहीं होती है.