कर्ज को समय पर चुकाने की भारतीयों की आदत कोरोना महामारी के कठिन दौर में भी नहीं बदली है. महामारी के दौरान भी ज्यादातर भारतीयों ने समय पर अपना ऋण चुकाया है. ट्रांसयूनियन सिबिल (Transunion Cibil) की रिपोर्ट इस पर मुहर लगाती है. सिबिल की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना महामारी के प्रकोप के बावजूद विलफुल डिफॉल्टर यानी जानबूझकर ऋण न चुकाने वाले (Willful Defaulters) की तादाद में कमी हुई. वित्त वर्ष 2020-21 के अंत में ऐसे मामलों के तहत बकाया राशि 1.90 प्रतिशत घटकर 2.11 लाख करोड़ रुपये रह गई है.
क्रेडिट इनफारमेशन कंपनी ने कहा कि बैंकों द्वारा जानबूझकर ऋण न चुकाने वालों के तौर पर चिन्हित 25 लाख रुपये से अधिक के खातों की संख्या इस साल 31 मार्च तक घटकर 10,898 रह गई, जो एक साल पहले के वित्तीय वर्ष में 12,242 थी. आरबीआई के मुताबिक, जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वाला उसे कहा जाता है, जो क्षमता होने के बावजूद ऋण नहीं चुकाता है. कोई व्यक्ति एक बार डिफॉल्टर घोषित हो जाने के बाद किसी भी बैंक से धन नहीं पा सकता है.
सरकार और आरबीआई (RBI) ने कोरोना महामारी को देखते हुए संकटग्रस्त खातों के लिए कई सुविधाओं की घोषणा की थी. इनमें फंसा कर्ज (एनपीए) घोषित किए जाने पर 6 महीने की मोहलत देना और दिवालियापन कानूनों के अमल में देरी शामिल है.एसबीआई में इस तरह के कुल 1,801 खाते थे, जबकि इससे एक साल पहले यह संख्या 1,640 थी. समीक्षाधीन अवधि में बकाया राशि 44,682 करोड़ रुपये से बढ़कर 67,000 करोड़ रुपये हो गई.
हालांकि सरकारी बैंकों के लिए ऐसे खातों की संख्या 8,781 से घटकर 7,418 रह गई. इस दौरान कुल बकाया राशि भी 1.44 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले घटकर 1.18 लाख करोड़ रुपये थी.निजी बैंकों के मामले में विलफुल डिफॉल्टर खातों की संख्या 1,658 से घटकर 1,514 रह गई. हालांकि बकाया राशि 20,741 करोड़ रुपये से बढ़कर 22,867 करोड़ रुपये हो गई.