साढ़े 3 साल बाद उत्तर कोरिया क्यों जरूरी लगने लगा, क्या पहले जैसे संबंध स्थापित कर पाएगा भारत?

साढ़े तीन साल से ज़्यादा समय से बंद पड़े दूतावास को पहले पूरी तरह से जांच से गुज़रना होगा. उत्तर कोरिया, जो अपनी संदिग्ध खुफिया जानकारी जुटाने की तकनीकों के लिए बदनाम है, इसका मतलब है कि कर्मचारियों को पहले पूरे दूतावास भवन की जांच करनी होगी.

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नई दिल्ली:

वर्तमान में दुनिया के कई देश आपस में उलझे हुए हैं. ऐसे में भारत उत्तर कोरिया में राजनायिक संबंध बनाने की ओर अग्रसर है.देखा जाए तो भारतीय विदेश नीति में हाल ही में एक बड़ा कदम देखा गया जब भारत ने उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में अपना दूतावास दोबारा खोला. यह कदम कई राजनीतिक और कूटनीतिक पहलुओं को उजागर करता है, खासकर जब उत्तर कोरिया दशकों से अमेरिका का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रहा है. ऐसे में इस कदम पर पूरी दुुनिया की नजर रहेगी, खासकर अमेरिका की.

उत्तर कोरिया अत्यधिक अस्पष्टता के साथ काम करता है, जिसके कारण नई दिल्ली भी प्योंगयांग के साथ अपने राजनयिक संबंधों को दुनिया के बाकी हिस्सों की नजरों से ओझल और चुपचाप बनाए रखता है. इसके पीछे वजह है कि भारत शुरू से ही गुट निरपेक्ष का समर्थक रहा है. अपने हितों को देखते हुए भारत ने ये फैसला लिया है.

2021 में अस्थायी तौर पर हुआ था बंद

1973 में भारत ने उत्तर और दक्षिण कोरिया दोनों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे. यह भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का हिस्सा था. हालांकि, कोविड-19 महामारी के दौरान, जुलाई 2021 में प्योंगयांग स्थित भारतीय दूतावास अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था. The Tribune की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने 2024 में अपनी उपस्थिति फिर से स्थापित करना शुरू किया है. दूतावास के कर्मचारी अब काम कर रहे हैं, 

फिर से संबंध स्थापित करेगा भारत

जुलाई 2021 में भारत ने चुपचाप प्योंगयांग में अपना दूतावास बंद कर दिया और राजदूत अतुल मल्हारी गोत्सुर्वे पूरे स्टाफ के साथ मॉस्को के रास्ते नई दिल्ली लौट आए. हालांकि विदेश मंत्रालय ने कभी भी आधिकारिक तौर पर दूतावास को 'बंद' घोषित नहीं किया, लेकिन जब पत्रकारों ने पूछा कि पूरे स्टाफ को वापस क्यों बुलाया गया, तो उसने कहा कि यह कदम कोविड-19 के कारण उठाया गया था.

वर्षों तक प्योंगयांग स्थित राजनयिक मिशन के बारे में कोई अद्यतन जानकारी नहीं दी गई और चौदह महीने पहले गोत्सुर्वे को मंगोलिया में राजदूत के रूप में नई नियुक्ति दी गई.

पहले दूतावास की होगी जांच

साढ़े तीन साल से ज़्यादा समय से बंद पड़े दूतावास को पहले पूरी तरह से जांच से गुज़रना होगा. उत्तर कोरिया, जो अपनी संदिग्ध खुफिया जानकारी जुटाने की तकनीकों के लिए बदनाम है, इसका मतलब है कि कर्मचारियों को पहले पूरे दूतावास भवन की जांच करनी होगी. इसका मतलब है कि उत्तर कोरिया की नौकरशाही से होने वाली देरी और नए राजदूत और बाकी टीम को भेजे गए शुरुआती कर्मचारियों के साथ जुड़ने में कई महीने लग सकते हैं.

वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका

उत्तर कोरिया के दो बड़े साझेदार है, जिसमें रूस और चीन शामिल है. इसमें चीन उत्तर कोरिया को अमेरिका और दक्षिण कोरिया के खिलाफ कूटनीतिक और सैन्य दबाव के साधन के रूप में उपयोग करता है. वहीं हाल के कुछ सालों में यूक्रेन युद्ध के बाद, रूस और उत्तर कोरिया के बीच संबंध और प्रगाढ़ हुए. हाल ही में किम जोंग उन ने रूस का दौरा किया, और दोनों देशों ने सैन्य साझेदारी को बढ़ाने का फैसला लिया है.

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क्यों जरूरी है उत्तरी कोरिया?

  • देखिए उत्तरी कोरिया भारत के लिए बहुत ही ज्यादा महत्व रखता है. इसके पीछे की कहानी है कि 4 साल में उत्तर कोरिया काफी मजबूत देश बन गया है. रूस और चीन इसके प्रमुख साझेदार हैं. भारत और मॉस्को का संबंध प्रगाढ है. हालांकि, भारत गुनिरपेक्ष की नीति पर चलता आ रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तर कोरिया से संबंध स्थापित कर रहा है.
  • भारत को अपनी सुरक्षा की चिंता है. चीन और पाकिस्तान ऐसे देश हैं, जो भारत को हमेशा परेशान करने की जुगत में रहते हैं.  उत्तर कोरिया का सामरिक महत्व आज चार साल पहले की तुलना में काफी अधिक है - न केवल भारत और एशिया के लिए, बल्कि पश्चिम के लिए भी.
  • सैन्य दृष्टि से, उत्तर कोरिया अपने परमाणु शस्त्रागार को लगातार बढ़ा रहा है, साथ ही हाइपरसोनिक मिसाइलों, सामरिक हथियारों, छोटी, मध्यम और लंबी दूरी की मिसाइलों जैसी तकनीक पर भी तेजी से काम कर रहा है. भारत के लिए, प्योंगयांग में मौजूद रहना और ऐसे संबंध स्थापित करना महत्वपूर्ण है, जिससे ऐसी तकनीक पाकिस्तान या उसके दुष्ट तत्वों तक न पहुंच सके.

उत्तर कोरिया के साथ संबंध प्रगाढ़ करके भारत, चीन और रूस के साथ अपने कूटनीतिक समीकरणों को मजबूत कर सकता है. इसकी मदद से उत्तर कोरिया के प्राकृतिक संसाधन भारत के लिए निवेश और व्यापार के नए रास्ते खोल सकते हैं. वहीं अमेरिका भारत के इस कदम को बारीकी से देखेगा. यह स्पष्ट होगा कि अमेरिका इसे भारत की कूटनीतिक स्वतंत्रता के रूप में देखता है या रणनीतिक संबंधों पर पुनर्विचार करता है.

एशिया में प्योंगयांग के बढ़ते कद और उसकी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए, नई दिल्ली का लक्ष्य उसके वैश्विक दृष्टिकोण और उद्देश्यों के अनुसार राजनयिक संबंधों को मजबूत करना है. इस प्रकार उत्तर कोरिया भारत के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और प्योंगयांग में दूतावास को फिर से खोलना संचार के एक चैनल को फिर से स्थापित करने की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है.

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