भारत ने हिंद-प्रशांत के सामने मौजूद सुरक्षा चुनौतियों की जटिलताओं को रेखांकित किया: रक्षा मंत्री

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हिन्‍द-प्रशांत अब केवल समुद्री क्षेत्र नहीं है, बल्कि एक पूर्ण भू-रणनीतिक मुद्दा है और यह क्षेत्र सीमा विवादों और समुद्री लूटपाट सहित सुरक्षा चुनौतियों जैसी जटिलताओं का सामना कर रहा है.

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नई दिल्ली: भारत ने मंगलवार को एक मुक्त, खुले और व्यवस्था आधारित भारत-प्रशांत क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण को साकार करने के लिए समान विचार वाले देशों के समन्वित प्रयासों का आह्वान किया और क्षेत्र के समक्ष सीमा विवाद समेत मौजूदा सुरक्षा चुनौतियों पर चिंता जताई.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हिन्‍द-प्रशांत अब केवल समुद्री क्षेत्र नहीं है, बल्कि एक पूर्ण भू-रणनीतिक मुद्दा है और यह क्षेत्र सीमा विवादों और समुद्री लूटपाट सहित सुरक्षा चुनौतियों जैसी जटिलताओं का सामना कर रहा है. नई दिल्ली में 13वें हिन्‍द-प्रशांत सेना प्रमुखों के सम्‍मेलन (आईपीएसीसी) में उद्घाटन भाषण के दौरान रक्षा मंत्री के ये बयान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता और पूर्वी लद्दाख में जारी सीमा विवाद की पृष्ठभूमि में आये हैं.

वहीं, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा, ‘‘हमारे सामने अहम चुनौतियां हैं, लेकिन उतना ही अहम हमारा सामूहिक विवेक और शक्ति है. खुले संवाद और विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से हम चुनौतियों के नवोन्मेषी समाधान तलाशेंगे.''

उन्होंने कहा कि स्पष्ट है कि दुनिया की 65 प्रतिशत आबादी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रहती है, वहीं दुनिया की 63 प्रतिशत जीडीपी इस क्षेत्र की है एवं विश्व का 50 प्रतिशत समुद्री व्यापार इस क्षेत्र में होता है. जनरल पांडे ने कहा, ‘‘इसलिए, दुनिया के लिए क्षेत्र की भौगोलिक तथा आर्थिक अपरिहार्यता का प्रभाव स्वाभाविक रूप से इसे समकालीन भू-रणनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण क्षेत्र की भूमिका देता है.''

अमेरिकी सेना के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल रैंडी जॉर्ज ने कहा कि अमेरिका और भारतीय सेना के बीच साझेदारी हिंद-प्रशांत में स्थिरता के लिए अहम है जहां यह क्षेत्र एक चुनौतीपूर्ण सामरिक माहौल का सामना कर रहा है. दो दिवसीय सम्मेलन में 30 से अधिक देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं जिनमें करीब 15 देशों के सेना प्रमुख शामिल हैं. सम्मेलन की सह-मेजबानी अमेरिका कर रहा है.

जनरल जॉर्ज ने कहा, ‘‘हम सभी जानते हैं कि एक चुनौतीपूर्ण वैश्विक सुरक्षा माहौल में विश्वास और मित्रता कितने महत्वपूर्ण हैं. अच्छे सहयोगी और साझेदार बनाना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है.'' सम्मेलन के तहत आयोजित प्रदर्शनी में भारत ने अपने कुछ स्वदेश विकसित सैन्य उपकरण प्रदर्शित किये.

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रक्षा मंत्री सिंह ने साझा सुरक्षा और समृद्धि की खोज में स्वतंत्र, खुले, समावेशी और नियम-आधारित हिन्‍द-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत के रुख को दोहराया. उन्होंने 'पड़ोस प्रथम' को प्राचीन काल से भारत की संस्कृति की आधारशिला के रूप में परिभाषित किया.

सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए कहा कि इस क्षेत्र के प्रति भारत का दृष्टिकोण उसकी 'एक्ट ईस्ट नीति' द्वारा परिभाषित है. रक्षा मंत्री ने कहा कि मित्र देशों के साथ मजबूत सैन्य साझेदारी बनाने की दिशा में भारत के प्रयास न केवल राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं, बल्कि सभी के सामने आने वाली वैश्विक चुनौतियों का भी समाधान करते हैं.

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सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा कि हिंद-प्रशांत के लिए भारत का दृष्टिकोण क्षेत्र में सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर और बलप्रयोग से बचने पर जोर देता है.

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में जनरल पांडे ने कहा, ‘‘हमें इस बात को मानना चाहिए कि हमारे उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में हमारे तरीके और पद्धतियां अलग हो सकती हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य एकसमान है और वह है खुला और स्वतंत्र हिंद-प्रशांत.''

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उन्होंने कहा कि शांति, स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र में सभी पक्षों के साथ सकारात्मक बातचीत करने की भारत की प्रतिबद्धता अटूट और निरंतर स्थिर बनी रही है. हिंद-प्रशांत के महत्व पर जोर देते हुए जनरल पांडे ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र महज राष्ट्रों का समूह नहीं है, बल्कि यह एक-दूसरे पर परस्पर निर्भरता का उदाहरण है. उन्होंने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य विश्वास कायम करना तथा सहयोग मजबूत करना है.''

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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