- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 19 सितंबर तक 702.57 अरब डॉलर पहुंच गया है, जो अपने रिकॉर्ड स्तर के करीब है
- फॉरेन करेंसी एसेट्स में एसडीआर और आईएमएफ रिजर्व भी शामिल हैं, जिनमें बढ़ोतरी हुई है
- देश का गोल्ड रिजर्व 92.78 अरब डॉलर हो गया है, जो आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करता है
अमेरिका का टैरिफ हमले के बीच RBI ने देश में मौजूद विदेशी मुद्रा और सोने के बारे में जानकारी दी है. देश के रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 19 सितंबर तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) 702.57 बिलियन डॉलर और गोल्ड रिजर्व 360 मिलियन डॉलर बढ़कर 92.78 बिलियन डॉलर हो गया. मुद्रा भंडार में सबसे ज्यादा हिस्सा फॉरेन करेंसी एसेट्स (586.15 बिलियन डॉलर) का रहा.
एसडीआर, आईएमएफ रिजर्व में हुई बढ़ोतरी
फॉरेन करेंसी एसेट्स में स्पेशल ड्राइंग राइट्स (एसडीआर) और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) में भारत की रिजर्व स्थिति भी शामिल है, जो 18.88 बिलियन डॉलर और 4.76 बिलियन डॉलर थी. एसडीआर 105 मिलियन डॉलर और आईएमएफ रिजर्व स्थिति 2 मिलियन डॉलर बढ़ी.
यह भंडार देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच है और लगातार हाई लेवल पर बना हुआ है. विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई वह संपत्ति है, जिसे वह विदेशी मुद्राओं में रखता है. यह एक तरह से देश के लिए आर्थिक सुरक्षा कवच या खजाना होता है.
अहम बातें:
अभी का रिजर्व: 702.57 अरब डॉलर (19 सितंबर, 2025 के आखिरी सप्ताह तक).
रिकॉर्ड लेवल: यह रिजर्व अपने ऑलटाइम हाई लेवल ($704.885 अरब) के बेहद करीब है, जो सितंबर 2024 के आखिरी में दर्ज किया गया था.
विदेशी मुद्रा भंडार में फॉरेन करेंसी एसेट्स सबसे बड़ा हिस्सा है, जबकि गोल्ड रिजर्व भी 92.78 अरब डॉलर के साथ मजबूत स्थिति में है.
पिछले कुछ हफ्तों में रिजर्व लगातार बढ़ा है. 5 सितंबर के आखिरी हफ्ते में यह 4.03 बिलियन डॉलर बढ़कर 698 बिलियन डॉलर के आंकड़े को पार कर गया था, जबकि इससे पहले के सप्ताह में यह 3.51 बिलियन डॉलर बढ़ा था.
क्यों अहम है रिजर्व
- विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक 'आर्थिक ढाल' (Economic Shield) का काम करता है.
- रुपये की स्थिरता: किसी भी देश का रिजर्व बैंक इस भंडार का उपयोग करके रुपये में हो रहे उतार-चढ़ाव को कंट्रोल करता है, जिससे व्यापार और निवेश के लिए अनुकूल माहौल बना रहता है.
- इंपोर्ट कवर: बढ़ते रिजर्व के जरिए कोई भी देश आसानी से डॉलर में पेमेंट करके अपना इंपोर्ट जारी रख सकता है.
- वैश्विक भरोसा: रिजर्व का हाई लेवल अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास बढ़ाता है, जिससे देश में कैपिटल फ्लो बनी रहती है.