कोविड के खिलाफ लड़ाई में दुनिया भर से मिल रही मदद, लेकिन क्या सही जगह पर पहुंच रही है?

विदेशी मदद लेकर 20 फ्लाइट्स भारत पहुंची हैं, लेकिन बहुत सी फ्लाइट्स में ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर्स और रेमडेसिवीर दवा हफ्तों से कस्टम पर फंसी हुई है. अधिकारियों के सामने 'लॉजिस्टिक्स और कंपैटिबिलिटी की दिक्कतें सामने आ रही हैं, जिससे देरी हो रही है.'

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अब तक 20 विदेशी विमान मेडिकल सप्लाई लेकर भारत पहुंचे हैं.
नई दिल्ली:

भारत में कोरोनावायरस महामारी की भयंकर दूसरी लहर के खिलाफ लड़ाई में दुनियाभर के कई देशों से मेडिकल सप्लाई और जीवनरक्षक दवाइयों के रूप में मदद पहुंच रही है, लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये मदद अपनी सही जगह पर पहुंच रहे हैं? सरकारी अधिकारियों ने यह बात स्वीकार की है कि उनके सामने विदेशों से आ रही मदद के वितरण में 'कुछ आरंभिक समस्याएं' आ रही हैं. इनमें से एक समस्या कस्टम पर हो रही देरी है. इससे निपटने के लिए सरकार ने आज आयातकों के लिए एक ऑनलाइन फॉर्म जारी किया है.

विदेशी मदद लेकर 20 फ्लाइट्स भारत पहुंची हैं, लेकिन इनमें से बहुत सी फ्लाइट्स में ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर्स और रेमडेसिवीर दवा हफ्तों से कस्टम पर फंसी हुई है. अधिकारियों ने NDTV को बताया कि उनके सामने 'लॉजिस्टिक्स और कंपैटिबिलिटी की दिक्कतें सामने आ रही हैं, जिससे देरी हो रही है.' एक अधिकारी ने कहा कि 'पहली प्राथमिकता विदेशी मदद को सरकारी अस्पतालों में पहुंचानने की है क्योंकि वो सुविधाएं मरीजों के मुफ्त में मुहैया कराते हैं.'

उन्होंने बताया कि यूके से आए ऑक्सीजन सिलिंडरों को दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल, सफदरजंग, एम्स के अलावा दिल्ली, अहमदाबाद और पटना के डीआरडीओ अस्पतालों में भेजा गया है.

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क्या होती है प्रक्रिया

अधिकारी ने बताया कि मदद के ऑफर्स को कई कैटेगरी में प्रोसेस किया जा रहा है, जैसे कि- सरकारी से सरकारी, प्राइवेट से सरकारी, प्राइवेट से राज्यों, प्राइवेट सेक्टर, इंडियन ओवरसीज और NGO वगैरह. फिर जो ऑफर्स आते हैं, उन्हें प्रोसेस किया जाता है, जैसे कि- ऑक्सीजन सिलिंडर, ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर्स, ऑक्सीजन बनाने वाली मशीनें, वेंटिलेटर्स, ऑक्सीजन बेड, दवाइयों वगैरह के ऑफर्स को तुरंत स्वीकार कर लिया जाता है.

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इन ऑफरों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजा जाता है, जो इसे वॉट्सऐप के एक इंटर-मिनिस्टीरियल ग्रुप पर डालता है कि क्या मंजूर करना है. अधिकारियों ने बताया कि समस्या ये है कि कुछ ऑफर्स कुछ अलग विशेषता के आते हैं, तो उनको तकनीकी टीम देखती है.

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अब तक विदेशों से 20 फ्लाइट्स आ चुकी हैं. इनमें कुछ 900 ऑक्सीजन सिलिंडर, 1,600 कॉन्सनट्रेटर्स और 1,217 वेंटिलेटर सहित जीवन-रक्षक दवाइयां हैं. लेकिन इन्हें इनके डेस्टिनेशन तक पहुंचाने में लॉजिस्टिक्स की दिक्कत आ रही है. अधिकारी ने कहा कि 'हम जिंदगियां बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हम वक्त से लड़ रहे हैं.'

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एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर कोविड संबधी दवाइयों और उपकरणों को कस्टम क्लियरेंस की प्रक्रिया को गति  देने के लिए वित्त मंत्री के सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम्स (CBIC) ने आज एक ऑनलाइन फॉर्म जारी किया है.

US में उठे सवाल

गुरुवार को अमेरिकी विदेश विभाग की एक प्रेस ब्रीफिंग में एक पत्रकार ने भारत को भेजी जा रही मदद को लेकर सवाल उठाया. पत्रकार ने कहा कि 'हम भारत को विमानों में भरकर सामान भेज रहे हैं. लेकिन दिल्ली में हमारे पत्रकार ने हमें बताया है कि दो दिनों तक कोशिश करने के बाद भी वो यह नहीं पता लगा पाया है कि ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर्स, दवाइयां कौन ले जा रहा है, या कितनी मदद पहुंची है.' पत्रकार ने कहा कि 'ऐसी कोई वेबसाइट या पारदर्शी व्यवस्था नहीं है जहां लोग अप्लाई करके मदद ले सकते हैं. ऐसे में अमेरिकी टैक्सपेयरों का पैसा खर्च करके जो मदद भेजी जा रही है, क्या उसपर यह देखा जा रहा है कि हम कितनी मदद भेज रहे हैं और कैसे मदद वितरित की जा रही है?'

इस सवाल पर विदेश विभाग की डिप्टी प्रवक्ता जलीना पोर्टर ने कहा कि किसी भी 'विशेष वेबसाइट पर इसे लेकर कोई जानकारी नहीं है, लेकिन हम भारत में अपने भागीदारों की मदद के लिए प्रतिबद्ध हैं.'

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