भारत-चीन संबंधों के 75 साल: चीन के दूतावास में विदेश सचिव ने सिखाए ये तीन 'सबक'

विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने चीन के दूतावास में साढ़े सात दशक के आखिर में नई और आशाजनक शुरुआत पर बात करते हुए तीन सबक गिनाए. साथ ही कहा कि दोनों देशों ने कई मुद्दों को सुलझा लिया है और दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं.

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नई दिल्ली:

चीन और भारत के संबंधों को 75 साल पूरे हो गए हैं. इस अवसर पर मंगलवार को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने नई दिल्‍ली स्थित चीन के दूतावास में तीन सबक बताए. मिस्री ने साढ़े सात दशक के आखिर में नई और आशाजनक शुरुआत पर बात की. साथ ही कहा कि दोनों देशों ने कई मुद्दों को सुलझा लिया है और दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं. चीन के दूतावास में आयोजित कार्यक्रम में विदेश सचिव ने दोनों देशों के बीच हजारों साल पुराने संबंधों को भी याद किया. आइए जानते हैं कि विदेश सचिव ने क्‍या कहा.

  1. विदेश सचिव विक्रम मिस्री नई दिल्ली में चीन के दूतावास में मुख्य अतिथि थे. चीन के दूतावास ने भारत-चीन संबंधों की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था. इस दौरान चीन के राजदूत जू फेइहोंग और भारतीय विदेश सचिव ने केक काटा और फिर दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच संबंधों के बारे में बात की. 
  2. अपने करीब सात मिनट के भाषण में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने मजबूत संबंधों को बढ़ावा देने के लिए दोनों देशों के लिए "सबक" बताए. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा, "भले ही आधुनिक राष्ट्रों के रूप में हमारे बीच केवल 75 वर्षों के औपचारिक संबंध रहे हों, लेकिन भारत और चीन के बीच हजारों वर्षों से सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध और लोगों के बीच आपसी संपर्क रहे हैं."
  3. उन्होंने ऐतिहासिक भारत-चीन संबंधों को बढ़ावा देने में "बोधिधर्म, कुमारजीव, जुआनजांग और रवींद्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियों के महत्वपूर्ण योगदान" के बारे में बात की.  साथ ही कहा कि "हमारी दोनों सभ्यताओं ने अपने-अपने अनूठे तरीके से मानव इतिहास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह समकालीन संबंधों के लिए एक सबक है."
  4. दूसरे सबक के बारे में बोलते हुए मिस्री ने कहा, "पिछले कुछ सालों में भारत-चीन संबंध एक कठिन दौर से गुजरे हैं, लेकिन मुख्‍य रूप से हमारे नेताओं के मार्गदर्शन और राजनीतिक नेतृत्व, सैन्य नेताओं और राजनयिक सहयोगियों के अथक प्रयासों के कारण संचार बनाए रखा, हमारे दोनों देशों ने सीमा क्षेत्रों में कई मुद्दों को सुलझा लिया है.  यह भी हमारे (चीन और भारत) लिए एक सबक है - जो यह है कि सीमा क्षेत्रों में शांति और धीरज द्विपक्षीय संबंधों के लिए जरूरी है."
  5. उन्होंने आगे कहा कि "रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक में साझा इस मौलिक समझ के आधार पर ही दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक रोडमैप तैयार करने के साथ ही उन्हें एक स्थिर, पूर्वानुमानित और सौहार्दपूर्ण रास्ते पर वापस लाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं."
  6. राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक प्रयासों के बारे में जानकारी साझा करते हुए विदेश सचिव ने इस बात पर जोर दिया कि "पिछले 5 महीनों में हमने विदेश मंत्रियों के बीच दो बैठकें की हैं - नवंबर 2024 और फरवरी 2025 में. भारत-चीन सीमा प्रश्न के लिए हमारे विशेष प्रतिनिधि (एसआर) दिसंबर 2024 में एसआर-स्तरीय वार्ता के 23वें दौर के लिए बीजिंग में मिले. करीब पांच वर्षों के अंतराल के बाद हमारे रक्षा मंत्री ने नवंबर 2024 में अपने चीनी समकक्ष से मुलाकात की और मुझे (विदेश सचिव) जनवरी 2025 में बीजिंग जाने का अवसर मिला और मेरे समकक्ष के साथ बहुत ही उपयोगी बैठक हुई." 
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  8. उन्होंने कहा कि भारत और चीन ने "दोनों देशों के बीच व्यावहारिक सहयोग को फिर से शुरू करने के लिए कई कदम उठाने का फैसला किया है. इनमें से पहला इस साल कैलाश-मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना है." उन्होंने कहा, "हम परिवहन और नदियों और सीधी हवाई सेवाओं पर सहयोग को फिर से शुरू करने पर भी चर्चा कर रहे हैं." 
  9. उन्होंने कहा कि ये कदम दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को बहाल करने और लोगों के बीच आपसी संबंधों को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण और सबसे पहले हैं. दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को जो जिम्मेदारी निभानी चाहिए, उस पर प्रकाश डालते हुए मिस्री ने कहा, "दुनिया के एक महत्वपूर्ण हिस्से में दो बड़े पड़ोसियों के रूप में हमारे देशों के बीच एक स्थिर द्विपक्षीय संबंध पूरी मानवता के लिए योगदान देगा. आइए हम इस 75वें वर्ष के मील के पत्थर को अपने संबंधों को फिर से बनाने के अवसर के रूप में लें."
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  11. अपने भाषण को समाप्त करने से पहले विदेश सचिव ने दोनों देशों के लिए "तीसरे सबक" के बारे में बात की. उन्‍होंने कहा, "हमारे संबंधों के पुनर्निर्माण का टिकाऊ आधार आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और आपसी हित का त्रिस्तरीय सूत्र है." 
  12. अपने भाषण में विदेश सचिव ने स्वीकार किया कि "आगे का रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन हम इसके लिए तैयार हैं." साथ ही  उन्होंने कहा कि "पिछले पांच महीनों में हमने जो कदम उठाए हैं, उनके आधार पर ही हमने साढ़े सात दशकों के अंत में आशाजनक शुरुआत देखी है." उन्होंने कहा कि इसे दोनों देशों के लोगों के लिए "ठोस लाभ में बदलना चाहिए." 
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