आजादी से पहले के वो देसी ब्रांड, जो आज भी भारतीयों की जुबान पर हैं...

भारतीय बाजारों में विदेशी कंपनियों के आने के बाद कॉम्पिटिशन में तेजी देखी गई. हालांकि, आजादी से पहले के कुछ भारतीय प्रोडक्ट्स आज भी फल-फूल रहे हैं. देश की जनता लगातार उन्हें प्यार कर रही है. वो ब्रांड आज हमारी जिंदगी में एक दोस्त की तरह रह रहे हैं.

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  • भारत को आजादी के बाद कई स्वदेशी ब्रांड्स ने भारतीय बाजार में अपनी मजबूत पहचान बनाई है
  • पारले-जी, रूह अफजा, बोरोलीन, केवेंटर्स जैसे ब्रांड आज भी रोजमर्रा की जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं
  • गोदरेज और टाटा समूह ने अपनी गुणवत्ता और नवाचार से देश के औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है
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भारत को साल 1947 में आजादी मिली थी. तब से लेकर अभी तक देश बहुत बदल गया है. नहीं बदले हैं तो वो स्वदेशी प्रोडक्ट्स जो आजादी के बाद भी हम भारतीयों की पसंद बने हुए हैं. सुबह की चाय के साथ बिस्किट के साथ, गर्मी में ठंडक दिलाने वाला शरबत, जलने पर जलन को कम करने वाली क्रीम, आज भी हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं. देश ने इन बीतें सालों में अर्थव्यवस्था के मौर्चे पर बहुत उतार-चढ़ाव देखा.

भारतीय बाजारों में विदेशी कंपनियों के आने के बाद कॉम्पिटिशन में तेजी देखी गई. हालांकि, आजादी से पहले के कुछ भारतीय प्रोडक्ट्स आज भी फल-फूल रहे हैं. देश की जनता लगातार उन्हें प्यार कर रही है. वो ब्रांड आज हमारी जिंदगी में एक दोस्त की तरह रह रहे हैं. पीएम मोदी ने भी लाल किले की प्राचीर से आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी तकनीक पर जोर दिया. तो ऐसे में हम आपको इस खबर में उन स्वदेशी ब्रांड के बारे में बताते हैं, जो आजादी के बाद भी देशवासियों की पसंद बने हुए हैं.

गोदरेज

गोदरेज की शुरुआत भारत में साल 1897 में हुई, जब अर्देशिर गोदरेज ने ऐसे ताले और तिजोरियां बनाने का बीड़ा उठाया जो यूरोपीय कारीगरी को टक्कर दे सकें. हुआ भी वही. अपनी शानदार क्वालिटी की वजह से कंपनी ने भारतीयों का दिल जीत लिया. दुनिया साल 1944 में तब हैरान रह गई थी, जब विक्टोरिया डॉक एक विस्फोट हुआ, जहां लगभग सब कुछ खत्म हो गया था. पर गोदरेज की तिजोरियां एकदम परफेक्ट मिलीं. इसी भरोसे को देखते हुए गोदरेज की बनाई हुईं मतपेटियों का इस्तेमाल साल 1951 में हुए भारत के पहले आम चुनाव में किया गया था. इसके अलावा कंपनी ने साल 1918 में दुनिया का पहला वनस्पति तेल साबुन लॉन्च किया. ये साबुन पशु-वसा से बिल्कुल अलग था, जिससे शाकाहारी परिवारों से इसे जबरदस्त डिमांड मिली.

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वाडीलाल

साल 1907 में वाडीलाल गांधी ने अहमदाबाद में एक छोटे सोडा फाउंटेन के रूप में कारोबार शुरू किया था, जो भारत के सबसे लोकप्रिय आइसक्रीम ब्रांडों में से एक बन गया. साल 1926 में कंपनी ने बेटे रणछोड़ लाल गांधी ने पहला वाडीलाल सोडा फाउंटेन स्टोर खोला. हालांकि कुछ कमी रह गई थी, जिसे दूर करने के लिए जर्मनी से एक नई आइसक्रीम मशीन इंपोर्ट की गई. इसके बाद तो कंपनी ने गुजरात के साथ-साथ पूरे देश में अपनी एक अलग छाप ही छोड़ दी. आज वाडीलाल फ्रोजन डेजर्ट में सभी दूसरी कंपनियों से आगे है. कंपनी नए प्रोडक्ट्स के साथ पारंपरिक स्वादों को भी लेकर आगे जा रही है.

टाटा समूह

टाटा...ये सिर्फ एक कंपनी ही नहीं बल्कि भारत में भरोसे का प्रतीक है. साल 1868 में टाटा समूह की शुरुआत जमशेदजी नुसरवानजी टाटा ने की थी. आप हैरान रह जाएंगे इसके लिए उन्होंने सिर्फ 21 हजार रुपये का निवेश किया था. आज ग्रुप के पास 33 से ज्यादा बड़ी कंपनियां मौजूद हैं, जिनमें से 26 कंपनियां मार्केट में लिस्टेड हैं. इसकी लिस्टेड कंपनियों के मार्केट कैप की बात करें तो 31 मार्च 2024 तक ये 31.38 लाख करोड़ रुपये का था. ग्रुप के सफर की बात करें तो साल 1877 में कंपनी ने एम्प्रेस मिल नाम से एक सूती मिल खोली, साल 1903 में ताज महल होटल, 1907 में टाटा स्टील, साल 1911 में भारतीय विज्ञान संस्थान, 1932 में टाटा एयरलाइंस, जो बाद में एयर इंडिया बनी, साल 1945 में टाटा मोटर्स की शुरुआत हुई.

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हल्दीराम 

आलू भुजिया का नाम सुनते ही सबसे पहले हल्दीराम का ध्यान आता है. मुंह में पानी आ ही जाता है. कौन इस नमकीन के स्वाद का दीवाना नहीं होगा. कंपनी की शुरुआत साल 1937 में राजस्थान के बीकानेर शहर में हुई थी. तब गंगा भीषण अग्रवाल ने इस एक छोटी मिठाई के दुकान के रुप में खोला था. अपने कमाल के स्वाद की वजह से ये जल्द ही बीकानेर में हिट हो गई, जिसके बाद गंगा भीषण अग्रवाल ने इस ब्रांड को पूरे देश में ले जाने का फैसला किया. एक खास बात ये है कि गंगा भीषण अग्रवाल ने अपनी बुआ से भुजिया बनाने का हुनर लिया था.

महिंद्रा एंड महिंद्रा

महिंद्रा एंड महिंद्रा की शुरुआत भारत में साल 1945 में की गई थी. कैलाश चंद्र महिंद्रा और जगदीश चंद्र महिंद्रा ने मलिक गुलाम मुहम्मद के साथ मिलकर स्टील ट्रेडिंग का बिजनेस इस कंपनी के जरिए किया था. हालांकि बंटवारे के बाद इस बिजनेस में से मलिक गुलाम मुहम्मद अलग हो गए. जिसके बाद कंपनी का नाम महिंद्रा एंड महिंद्रा हुआ. कारोबार बढ़ाने के बाद कंपनी ऑटोमोबाइल के सेक्टर में आई.

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