12-17 आयु वर्ग के लिए कोरोना की Covovax वैक्सीन को मिली मंजूरी: रिपोर्ट

कोरोना वैक्सीन 'कोवोवैक्स' को 12-17 साल के बच्चों पर इस्तेमाल के लिए राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समिति (NTAGI) की तरफ से मंजूरी मिल गई है. सूत्रों के मुताबिक फिलहाल NTAGI द्वारा COVID19 के खिलाफ 5 से 12 साल के बच्चों को टीका लगाने पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

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12-17 आयु वर्ग के लिए कोरोना की Covovax वैक्सीन को मिली मंजूरी: रिपोर्ट
कोवोवैक्स को मिली मंजूरी
नई दिल्ली:

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा विकसित कोरोना वैक्सीन 'कोवोवैक्स' को 12-17 साल के बच्चों पर इस्तेमाल के लिए राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समिति (NTAGI) की तरफ से मंजूरी मिल गई है. सूत्रों के मुताबिक फिलहाल NTAGI द्वारा COVID-19 के खिलाफ 5 से 12 साल के बच्चों को टीका लगाने पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है. Covovax को पहले ही भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) द्वारा 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए मंजूर किया जा चुका है, लेकिन अभी तक प्रशासन की अनुमति नहीं दी गई है. 

इस महीने की शुरुआत में एएनआई के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा, "कोवोवैक्स का इस्तेमाल बच्चों के लिए किया जाएगा. इसे डीसीजीआई द्वारा अप्रूव किया गया है और हम भारत सरकार द्वारा मंजूरी देने की प्रतीक्षा कर रहे हैं." कोवोवैक्स को बूस्टर के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले कोविड टीकों के मिक्स-एंड-मैच ट्रायल के बारे में पूछे जाने पर, पूनावाला ने कहा कि एसआईआई को उस पर एक अध्ययन करने के लिए कहा गया है. 

उन्होंने कहा, "हम परीक्षण करेंगे. कोवोवैक्स, लगभग दो या तीन महीनों में, बूस्टर के रूप में भी उपलब्ध कराया जा सकता है. लेकिन फिलहाल, यह 12 वर्ष और उससे अधिक उम्र के बच्चों के लिए स्वीकृत है." अदार पूनावाला ने यह भी कहा कि सीरम ने लगभग 40 मिलियन खुराक में कोवोवैक्स को यूरोपीय देशों में ऑस्ट्रेलिया को निर्यात किया है और कोवोवैक्स भारत में बनी और यूरोप में बेची जाने वाली पहली कोविड वैक्सीन है. "

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अदार पूनावाला ने कहा कि हम पहले ही यूरोपीय देशों को ऑस्ट्रेलिया को लगभग 40 मिलियन खुराक का निर्यात कर चुके हैं. आप जानते हैं, और वास्तव में यह पहली बार है जब भारत में बनी एक वैक्सीन यूरोप में बेची जा रही है." यह वास्तव में एक बहुत ही महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और हमें उम्मीद है कि भविष्य में भारत में बने अन्य टीकों को भी यूरोप में स्वीकार किया जाएगा और इसका इस्तेमाल किया जाएगा. "

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