हैदराबाद की महिला का राइस बकेट चैलेंज बना कोविड के दौरान जॉब गंवाने वालों के लिए 'सहारा'

हैदराबाद स्थित मंजुलता कलानिधि की राइस बकेट चैलेंज पहल यह सुनिश्चित कर रही है कि कोविड महामारी के दौरान कोई भी भूखा नहीं रहे.

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Rice Bucket Challenge से कोविड के समय सैकड़ों लोगों को भोजन उपलब्‍ध कराने में मदद मिली है

हैदराबाद:

देर रात या फिर एकदम सुबह.. मंजुलता कलानिधि लोगों के साथ डिजिटली जुड़ने में बिजी हैं. ऑनलाइन प्‍लेटफॉर्म Rice Bucket Challenge (राइस बकेटचैलेंज) के जरिये उन्‍हें वह राह मिली है जिसके जरिये वे उन लोगों की मदद ले सकती है जो इसके इच्‍छुक हैं और उन्‍हें मदद दे सकती हैं जिन्‍हें इसकी सबसे ज्‍यादा जरूरत है. कलानिधि इसके लिए टेक्‍नोलॉजी की शुक्रगुजार हैं क्‍योंकि कोविड प्रतिबंधों के बावजूद क्राउडफंडिंग प्‍लेटफार्म (crowdfunding platform) डोनेटकॉर्ट को पार्टनर बनाकर वे संसाधनों को जुटा पा रही हैं और एनजीओ की मदद से उसे बंटवा पा रही हैं. 

NDTV से बात करते हुए कलानिधि ने कहा, 'राइस बकेट चैलेंज का बड़ा नेटवर्क नहीं है. मैं और मेरे परिवार को, रॉबिनहुड आर्मी जैसे एनजीओ के साथ जमीनी स्‍तर पर काम करते हुए कई अनुरोध मिलते हैं लेकिन धन नहीं ले सकते. हम 400 किलो चावल 80 किलो दाल और 80 लिटर खाद्य तेल, म्‍जूजिक आर्टिस्‍ट्स के एक ग्रुप को भेज रहे हैं जो वैसे तो म्‍यूजिक सीजन के दौरान संगीत, ऑर्केस्‍ट्रा, म्‍यूजिक और डांस जैसे प्रोग्राम में व्‍यस्‍त रहता है लेकिन कोरोना महामारी के कारण अभी उसके पास कोई काम नहीं है. यहां तक कि जब शादी भी हो रही हैं तो कोई उनकी 'सेवाएं' नहीं ले रहा.' राइस बकेट चैलेंज एक समय बेहद लोकप्रिय लोक कलाकारों के ग्रुप, सुरभि की काफी मदद कर रहा है जिसकी कमाई को पिछले साल से करारा झटका लगा है. कलानिधि के अनुसार, हमें इस साल मदद के कई अनुरोध मिले हैं. उन्‍होंने कहा, 'पिछले एक माह में हमें ऐसे लोगों के पास से मदद के अनुरोध आए हैं जिनके बारे में हमें लगा नहीं था कि उन्‍हें इसकी जरूरत होगी. कारण यह है कि वे अपना रोजगार गंवा चुके हैं. मुझे लगता है कि उनकी थोड़ी बहुत सेविंग होगी जो एक या दो माह चली होगी. यह वे लोग है जो आमतौर पर मदद नहीं मांगते. मुझे लगता है कि हमें उनकी मदद करनी चाहिए. हम ऐसे ग्रुप को किराने का ढेर सारा सामान दे रहे हैं. हम कई शिक्षकों, फर्नीचर बनाने वालों और बुनकरों तक पहुंचे हैं. '

राइस बकेट चेलैंज जैसे एक NGO के वॉलेटिंयर और तकनीकी विशेषज्ञ (techie) प्रशांत ने कहा, हमने देखा है कि कई मध्‍यम वर्ग के परिवारों को भी अब खाने तक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. उन्‍होंने कहा, 'भूख के मामले में कई संपन्‍न समझे जाने वाले परिवार खुलकर सामने नहीं आ पाते, हम उनके घर तक किराने का सामान पहुंचाते है. हम उनके घर के दरवाजे पर ग्रोसरी छोड़ देते हैं और कॉल करके इसे लेने के लिए कहते हैं.' कलानिधि कहती हैं कि सबसे बड़ी बात यह है कि उन्‍हें कभी किसी को 'न' नहीं कहना पड़ा. उन्‍होंने कहा कि ऐसा कभी समय नहीं आया जब हमारे पास फंड नहीं था. जब जरूरत हुई, लोगों ने दिया है. मदद के तरीके के बारे में उन्‍होंने बताया, 'उदाहरण के तौर पर यदि PVNR एक्‍सप्रेस कुछ 'देना' चाहता है तो हम उन्‍हें नजदीक के अनाथालय से कनेक्‍ट करा देते हैं क्‍योंकि इससे लंबी दूरी तक सामान का ट्रांसपोर्ट करने की जरूरत नहीं पड़ती.' उन्‍होंने कहा कि इस मामले में पारदर्शिता से काम करने से लोगों का विश्‍वास बढ़ता है.

कलानिधि ने कहा, 'ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि हम आपको गूगल पे कर देंगे. हमें आप पर भरोसा है लेकिन हम उन्‍हें धन्‍यवाद देते हुए कहते हैं कि आप यह हमारे ऑनलाइन नेटवर्क पर कीजिए ताकि हमारे पास इसका रिकॉर्ड और दस्‍तावेज रहें और हम आपको रसीद दे सकें. यह अधिक पारदर्शितापूर्ण है. यह लोगों का पैसा है और हमें बेहद जिम्‍मेदारी के साथ इसका इस्‍तेमाल करना होगा. नौबत अब यहां तक है कि रोजगार वाले परिवारों को भी मेडिकल बिल जैसी चीजों के कारण वित्‍तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है. लोगों का हाथ खोलकर हमारी मदद के लिए आगे आना हमारे लिए बड़ा सहायक साबित हो रहा है. '

लॉटोलैंड आज का सितारा श्रृंखला में हम आम लोगों और उनके असाधारण कार्यों के बारे में जानकारी देते हैं. लॉटोलैंड मंजुलता कलानिधि के कार्य के लिए एक लाख रुपये की सहायता प्रदान करेगा.

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