बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आई हैं. हैदराबाद में ऐसी ही एक गर्भवती महिला ने जब गर्भ के 7वें महीने में ही प्रीमैच्योर बेबी को जन्म दिया तो उसकी हालत बेहद नाजुक थी. बच्चा भी कोरोना से संक्रमित था तो उसे मां से दूर आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया. प्रेग्नेंट महिला के प्रीमैच्योर बर्थ के कारण वजन काफी कम होने के साथ उसकी हालत ठीक नहीं थी, लेकिन डॉक्टरों की टीम की एक महीने की मेहनत रंग लाई. पिछले हफ्ते बच्चा स्वस्थ होकर बाहर आया तो पूरा अस्पताल खुशी से झूम उठा.
कोरोना को मात देने वाला यह हैदराबाद (Hyderabad's youngest COVID Survivor) का सबसे कम उम्र का बेबी है. बच्चे का किम्स कडल्स (KIMS Cuddles) हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था.अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, हॉस्पिटल में 17 अप्रैल 2021 को कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित एक महिला की गर्भ के 7वें माह में प्रीमैच्योर डिलिवरी हुई. जन्म के समय बच्चे की हालत नाजुक थी और वह ठीक से सांस नहीं ले पा रही था, लिहाजा उसे वेंटिलेटर सपोर्ट (ventilatory support) रखना पड़ा. जन्म के समय उसका वजन महज 1000 ग्राम था.
शुरुआत में उसका कोविड टेस्ट निगेटिव आया, डॉक्टर भी समयपूर्व जन्म के कारण श्वसन संबंधी समस्या मानकर उसका इलाज कर रहे थे. लेकिन जन्म के 8वें दिन बच्चे का ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा, उसका वजन भी तेजी से कम होने लगा तो डॉक्टरों ने फिर आरटीपीसीआर टेस्ट कराया, जिससे उसमें कोविड पॉजिटिव होने के लक्षण दिखे. तब तक बच्चीे का वजन 920 ग्राम तक आ चुका था और उसे वेंटिलेटर (ventilator) पर रखा गया और कोविड आइसोलेशन आईसीयू (COVID isolation ICU) में शिफ्ट किया गया. अस्पताल में
नियोनैटोलॉडी विभाग की क्लीनिकल डायरेक्टर और कंसल्टेंट नियोनैटोलॉजी डॉ. सी अपर्णा ने कहा, डॉक्टरों की टीम ने नवजात के लिए बने आईसीयू में जरूरी वेंटिलेटर सपोर्ट पर बच्ची को रखकर लगातार उसकी देखभाल की. बच्चे को बचाने के लिए एंटीबायोटिक और स्टेरॉयड का सहारा भी लेना पड़ा. लेकिन दवा, देखभाल और पोषक तत्वों के मिलने से भी उसकी हालत में धीरे-धीरे सुधार दिखने लगा. ब्लड प्रेशर, ऑक्सीजन लेवल भी कुछ दिनों में बेहतर हो गया. बच्चे के पिता भी एक मेडिकल पेशेवर हैं. इस दौरान बच्चे की मां बाला मोनिका को लगातार वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये बच्चे की हालत के बारे में जानकारी दी गई.
मां का दूध भी बच्चे तक पहुंचाया गया, जिसका भी फायदा देखने को मिला. इन सबकी कड़ी मेहनत से बच्ची कोरोना को मात देने में कामयाब रही और उसे आइसोलेशन से बाहर लाया गया. रोजाना 15-20 ग्राम वजन बढ़ने के साथ बच्चे को ट्यूब से तरल भोजन पहुंचाने की जरूरत भी नहीं रही. 17 मई को जब बच्चे को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया तो उसका वजन 1500 ग्राम था.