हुमायूं कबीर ने सिर्फ एक वजह से रखी बाबरी की बुनियाद, कुरान ख्वानी-नई पार्टी प्लान भी इसीलिए

हुमायूं कबीर ममता बनर्जी पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगा रहे हैं. वो कह रहे हैं कि ममता का आरएसएस-भाजपा के साथ गुप्त सांठगांठ है. समझिए सारा मामला...

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  • हुमायूं कबीर फरवरी में एक लाख लोगों के साथ कुरान ख्वानी का आयोजन करेंगे और भोज देंगे.
  • कबीर 22 दिसंबर को अपनी नई पार्टी बनाएंगे और एआईएमआईएम के साथ गठबंधन करने का ऐलान किया है.
  • कबीर का राजनीतिक प्रभाव मुख्यतः भरतपुर और रेजिनगर तक सीमित है, और वे कई पार्टियों में रह चुके हैं.
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तृणमूल कांग्रेस (TMC) के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने रविवार को कहा कि वह फरवरी में एक लाख लोगों के साथ ‘कुरान ख्वानी' (कुरान का पाठ करना) का आयोजन करेंगे. कबीर ने कहा कि वह कुरान ख्वानी करने वालों को मांस और चावल का भोज देंगे. इसके बाद, बाबरी मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू होगा. कबीर ने शनिवार को संकेत दिया कि वे इस महीने के अंत में एक नयी पार्टी की शुरुआत कर सकते हैं.

आज कर दिया ऐलान

रविवार को एनडीटीवी के साथ बातचीत में 62 साल के हुमायूं कबीर ने कि वह 22 दिसंबर को अपनी पार्टी बनाएंगे और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन करेंगे. उन्‍होंने दावा किया कि बाबरी मस्जिद शिलान्‍यास कार्यक्रम में करीब 8 लाख लोग शामिल हुए. बंगाल चुनाव को लेकर उन्‍होंने 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का दावा किया. आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं. 

कितना है हुमायूं कबीर में दम

कबीर का प्रभाव मुख्यतः उनकी विधानसभा सीट भरतपुर और उसके पड़ोसी रेजिनगर तक सीमित बताया जाता है. तीन जनवरी, 1963 को जन्मे कबीर ने 90 के दशक की शुरुआत में युवा कांग्रेस के जरिए सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया था और 2011 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में रेजिनगर से जीत हासिल की. एक साल बाद, वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें कैबिनेट में जगह मिली.

तीन साल बाद, ममता बनर्जी पर उनके भतीजे अभिषेक को लेकर आरोप लगाने के बाद कबीर को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया और इस घटना ने उनकी छवि एक प्रकृति से विरोधी नेता के रूप में स्थापित हुई.

बीजेपी में भी रहे 

कबीर ने 2016 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय के रूप में लड़ा और हार गए. वर्ष 2018 में वे बीजेपी में शामिल हुए, 2019 में उन्होंने मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और हार गए.छह साल का निष्कासन समाप्त होने पर, वह 2021 के चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस में लौट आए और भरतपुर सीट से जीत दर्ज की.

2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान, 70:30 मुस्लिम-हिंदू अनुपात वाले एक जिले में, उन्होंने दावा किया कि वे ‘‘हिंदुओं को दो घंटे के भीतर भागीरथी में फेंक सकते हैं.''इस टिप्पणी के लिए उन्हें प्रधानमंत्री सहित पूरे देश की आलोचना झेलनी पड़ी, और पार्टी की ओर से एक और कारण बताओ नोटिस भी मिला.

टीएमसी से ब्रेकअप की वजह

महीनों बाद, उन्हें फिर से फटकार लगाई गई और इस बार अभिषेक बनर्जी को उप-मुख्यमंत्री बनाने की बात कहने पर. इसके बाद उन्होंने माफी तो मांगी लेकिन अनचाहे मन से. तृणमूल से इस निलंबन ने कबीर को भले ही हाशिये पर धकेल दिया हो, लेकिन इससे उनके उस मार्ग पर तेजी से बढ़ने की संभावना है, जो वह बहुत पहले से तैयार कर चुके थे. उनकी हालिया राजनीतिक बयानबाजी से ऐसे नेता की छवि की झलक नहीं मिलती जो अनुशासनात्मक कार्रवाई से अचंभित है, बल्कि ऐसे नेता की ओर इशारा करती है जो अपने अगले कदम की तैयारी कर रहा है.

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आखिरकार बना बाबरी प्लान

हर तरफ से निराश होने के बाद हुमायूं ने बाबरी प्लान बनाया. पिछले एक महीने में, उन्होंने एक नये धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की बात की थी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) तथा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ 'सकारात्मक बातचीत' के संकेत दिए हैं. उन्होंने साथ ही मुर्शिदाबाद, मालदा, नदिया और 24 परगना जिलों में हेलीकॉप्टर दौरे की घोषणा की है.

टारगेट पर ममता-बीजेपी

कबीर ने एक वेबकास्ट के दौरान कहा था, ‘‘एक हेलीकॉप्टर पर कितना खर्च होता है? चुनाव के दौरान दस दिनों के लिए लगभग 30 लाख रुपये खर्च होंगे. कोई पार्टी अपने नेता में निवेश क्यों नहीं करेगी?'' ऐसे में लगता तो यही है कि हुमायूं कबीर बंगाल में मुसलमानों का चेहरा बनाने चाहते हैं और इसी के लिए वो बाबरी की बुनियाद से लेकर कुरान ख्वानी जैसे ऐलान कर रहे हैं. इस बात की तस्दीक इस बात से भी होती है कि कबीर ममता पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं, 'मैं धर्मनिरपेक्ष राजनीति पर मुख्यमंत्री और टीएमसी के दोहरे मानदंडों का पर्दाफ़ाश करूंगा. उन्होंने अल्पसंख्यकों को मूर्ख बनाया है और आरएसएस-भाजपा के साथ उनकी गुप्त सांठगांठ है.'

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