एक इनपुट, स्पेशल कमांडो और... जानें 3 राज्यों के बॉर्डर पर कैसे मारा गया हिडमा

लाल आतंक का पर्याय बन चुके कुख्यात नक्सली कमांडर माडवी हिडमा का खात्मा हो गया है. सोमवार को आंध्र प्रदेश की एंटी-नक्सल ग्रेहाउंड्स फोर्स और स्थानीय पुलिस के साथ भीषण मुठभेड़ में कुख्यात माओवादी कमांडर मारा गया.

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  • आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा पर माडवी हिडमा समेत छह माओवादी मारे गए हैं
  • मुठभेड़ आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले के मारेडुमिल्ली जंगल में हुई थी
  • माडवी हिडमा सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सबसे कम उम्र का सदस्य था
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लाल आतंक का पर्याय बन चुके कुख्यात नक्सली कमांडर माडवी हिडमा का खात्मा हो गया है. सोमवार को आंध्र प्रदेश की एंटी-नक्सल ग्रेहाउंड्स फोर्स और स्थानीय पुलिस के साथ भीषण मुठभेड़ में कुख्यात माओवादी कमांडर मारा गया. ये मुठभेड़ आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के ट्राई-जंक्शन पॉइंट के पास हुई थी. इसे एंटी-नक्सल ऑपरेशन की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी माना जा रहा है. आंध्र प्रदेश के डीजीपी हरीश कुमार गुप्ता ने इसे "नक्सल विरोधी अभियानों की ऐतिहासिक जीत" बताया है.

कैसे हुआ ऑपरेशन?

आंध्र प्रदेश के डीजीपी हरीश कुमार गुप्ता ने बताया कि यह मुठभेड़ सोमवार को उस वक्त हुई, जब आंध्र प्रदेश-छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर माओवादियों के एक बड़े समूह के मूवमेंट की खुफिया जानकारी मिली थी. उन्होंने बताया, "विशिष्ट खुफिया जानकारी के आधार पर, सोमवार देर रात एंटी-नक्सल ग्रेहाउंड्स और स्थानीय पुलिस ने मिलकर सघन कॉम्बिंग ऑपरेशन शुरू किया. यह मुठभेड़ अल्लूरी सीताराम राजू जिले के मारेडुमिल्ली जंगल में तीनों राज्यों के बॉर्डर पॉइंट के करीब हुई. भीषण मुठभेड़ के बाद, सुरक्षाबलों ने हिडमा सहित कुल छह माओवादियों को मार गिराया.

डीजीपी हरीश गुप्ता के अनुसार, हिडमा न सिर्फ बड़े ऑपरेशनों में शामिल था, बल्कि वह युवाओं को नक्सलवाद में शामिल होने के लिए प्रेरित करने का काम भी करता था. मारे गए माओवादियों में हिडमा की दूसरी पत्नी राजे उर्फ राजक्का भी शामिल है.  

कौन था माडवी हिडमा?

मारा गया कमांडर मादवी हिडमा उर्फ संतोष 43 वर्ष का था और सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सबसे कम उम्र का सदस्य था. उसका जन्म 1981 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के पुवर्ती गांव में हुआ था. 43 साल का माडवी हिडमा CPI (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का सबसे युवा सदस्य था. हिडमा PLGA बटालियन नंबर-1 का चीफ था, जो माओवादियों की सबसे घातक स्ट्राइक यूनिट है. हिडमा पर ₹1 करोड़ का इनाम था और वह बस्तर का इकलौता आदिवासी था, जिसने सेंट्रल कमेटी में जगह बनाई. उसने कम से कम 26 बड़े हमलों की साजिश रची, जिनमें 2010 का दंतेवाड़ा नरसंहार (76 CRPF जवान शहीद), 2013 का झीरम घाटी हमला (27 लोग मारे गए) और 2021 का सुकमा-बीजापुर एंबुश (22 जवान शहीद) शामिल हैं.



हिडमा, नक्सलियों के बीच एक मिथक की तरह रहा है. वो एक गोंड आदिवासी था, जो इसी इलाके में पैदा और बड़ा हुआ. यहां के जंगलों के हर मोड़, हर नदी, नाले, गुफा और पहाड़ी से वो वाकिफ था. 16 साल की उम्र में वो नक्सली बन गया, बीते कई साल से वो छत्तीसगढ़ से लेकर तेलंगाना सीमा तक माओवादी हमलों का नेतृत्व करता रहा.

उसकी बटालियन दक्षिण बस्तर, बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा में सक्रिय थी. ये वो इलाके हैं जो सालों से माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष का केंद्र बनी हुई है.सुरक्षा बलों का मानना है कि हिडमा नक्सलियों के सबसे बड़े हमलों का मास्टरमाइंड रहा और उनकी अगुवाई की.

काफी शातिर रहा हिडमा टैक्नोलॉजी की भी समझ रखता था. सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के बाकी सदस्यों से भी ज़्यादा वो चर्चा में रहता था. हिडमा को पकड़ना हमेशा से इसलिए और भी मुश्किल रहा, क्योंकि वो तीन से चार स्तर के सुरक्षा घेरे में रहता था. सबसे बाहरी स्तर को जैसे ही सुरक्षा बलों की भनक लगती थी, वो उनसे भिड़ जाते थे और हिडमा सुरक्षित भाग निकलता था.

सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में फोन नेटवर्क काम नहीं करता, सिर्फ़ ह्यूमन इंटेलिजेंस ही काम करती है. अभी तक जब भी उसके बारे में कोई जानकारी मिलती रही तो जब तक सुरक्षा बल पहुंचें, तब तक वो कहीं और निकल चुका होता था. आज हिडमा के मारे जाने से बस्तर में माओवादियों के सबसे ख़ास रणनीतिक कमांडर का खात्मा हो गया.

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