भारत में 16 जनवरी से कोविड-19 वैक्सीन (Covid-19 Vaccination Starts) का टीकाकरण शुरू होगा. लेकिन आम लोगों के मन में सवाल हैं कि क्या टीकाकरण के बाद जिंदगी भर कोरोना वायरस (Corona Virus) से मुक्ति मिल जाएगी. क्या कुछ सालों बाद वैक्सीन फिर लगवाने की जरूरत पड़ेगी? तमाम देशों में अलग-अलग लोगों को अलग-अलग वैक्सीन लगने का क्या असर पड़ेगा, ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हमने विशेषज्ञों के जरिये आपके सामने रखे हैं. भारत में ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड (Covishield) और स्वदेशी कंपनी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन (Covaxin) का टीका लगेगा ब्रिटेन में फाइजर, मॉडर्ना (Moderna) और कोविशील्ड वैक्सीन लग रही है. अमेरिका में फाइजर (Pfizer) और मॉडर्ना का टीका लगाया जा रहा है.
प्रश्न.देश में अलग-अलग आबादी को अलग-अलग वैक्सीन लगाई जाती है तो क्या इससे कोरोना वायरस से निपटने में प्रभावशीलता कम होगी या बढ़ेगी
उत्तर- विश्व स्वास्थ्य संगठन के पेशेंट सेफ्टी समूह से जुड़े और रूबी जनरल हॉस्पिटल में क्लीनिकल माइक्रोबॉयोलॉजी एंड संक्रामक रोग के कंसल्टेंट और हेड डॉ. देबकिशोर गुप्ता ने कहा कि भारत या दुनिया के अन्य हिस्सों में लोगों को अलग-अलग कोविड-19 वैक्सीन लगाने का कोई नुकसान नहीं है. सारी उपलब्ध वैक्सीन की प्रभावशीलता 60 फीसदी से अधिक पाई गई है. यह कोरोना वायरस के संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए पर्याप्त है.
2. भारत के लिए कौन सा टीका बेहतर है
ऐसी वैक्सीन जिनका क्लीनिकल ट्रायल भारत में हुआ है, ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड का भारत में सीमित स्तर पर ही सही ट्रायल हुआ है. कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल भारत में चल रहा है.फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना की वैक्सीन का भारत में ट्रायल नहीं हुआ है. रूस की स्पूतनिक वी वैक्सीन भारत में वालंटियर्स को दी गई है और ट्रायल चल रहे हैं.
3.अलग-अलग देशों में लोगों को अलग-अलग वैक्सीन देने का क्या प्रभाव पड़ेगा?
भारत की विशाल आबादी के साथ नेपाल समेत अन्य देशों के लिए टीके की आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए भारत में अलग-अलग किस्मों की वैक्सीन को मंजूरी देना महत्वपूर्ण है, तभी कम वक्त में 135 करोड़ लोगों का टीकाकरण संभव हो सकेगा. सुरक्षा और प्रभावशीलता का आकलन करते हुए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया फाइजर, स्पूतनिक वी और मॉडर्ना की वैक्सीन को भी मंजूरी दे सकते हैं. कई ऐसे टीके हैं, जिन्होंने क्लीनिकल ट्रायल के दौरान अपनी प्रभावशीलता साबित की है.
4. इससे पहले कब किसी महामारी के खिलाफ अलग-अलग टीकों का इस्तेमाल हुआ है?
पोलियो ऐसा वायरस था, जिसकी रोकथाम के लिए दुनिया में एक से ज्यादा वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया. इसमें एक ओरल पोलियो वैक्सीन और दूसरी इनएक्टिवेटेड पोलियोवायरस वैक्सीन (IPV) शामिल थी. ओरल वैक्सीन भी अलग-अलग किस्मों की इस्तेमाल हुई. आईपीवी तीनों तरह के पोलियो वायरस से सुरक्षा देती है.
5. वैक्सीन में सुधार होगा तो क्या उन्हें दोबारा टीका लगवाने की जरूरत होगी ?
भारत समेत कई देशों ने आपातकालीन मंजूरी से टीकाकरण को हरी झंडी दी है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि क्लीनिकल ट्रायल का पर्याप्त डेटा न होने के कारण वैक्सीन निर्माता अभी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि वैक्सीन कितने लंबे समय तक सुरक्षा देगी और क्या वैक्सीन डोज सिर्फ टीका लेने वाले में बीमारी को रोकेगी या संक्रमण रोकने में भी कारगर होगी. इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल के ठोस साक्ष्यों की जरूरत होगी.
6.कोई भी कोरोना वैक्सीन पोलियो की तरह जीवन भर वायरस से इम्यूनिटी का दावा नहीं करती है क्यों
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. गजेंद्र सिंह ने कहा कि वैक्सीन कितने लंबे समय तक वायरस से सुरक्षा देगी और क्या वैक्सीन मौजूदा सभी तरह के स्ट्रेन या भविष्य में कोरोना के अन्य म्यूटेंट स्ट्रेन पर कारगर होगी या नहीं, यह क्लीनिकल ट्रायल के लंबे वक्त के डेटा पर निर्भर करेगा.
7. जो लोग कोरोना से उबर चुके हैं क्या उन्हें वैक्सीनेशन की जरूरत नहीं है और क्यों ?
गजेंद्र सिंह के अनुसार, जो लोग कोरोना से उबर भी चुके हैं, उन्हें भी यह टीका लेना चाहिए, क्योंकि यह उनमें मजबूत इम्यूनिटी पैदा करेगी. अभी कोरोना से स्वस्थ होने के बाद व्यक्ति के शरीर में अपनेआप प्राकृतिक तरीके से एंटीबॉडी तो बनती है, लेकिन यह एंटीबॉडी कितने दिनों तक कायम रहेगी, यह पता नहीं है. कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि यह 2-3 माह से 8 माह तक हो सकती है. हर व्यक्ति में एंटीबॉडी का स्तर भी अलग-2 होता है.
8. क्या कोरोना से उबर चुके लोग भी प्राथमिकता सूची में हैं
भारत में एक करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमण से उबर चुके हैं. लेकिन इन्हें टीका लेने की किसी प्राथमिकता सूची में नहीं रखा गया है.
9. जिन्हें कोरोना अभी है, क्या उन्हें टीका लगेगा
संक्रमित व्यक्ति वायरस के लक्षण दिखने के 14 दिनों तक इसके टीकाकरण से बचना चाहिए, क्योंकि इससे टीकाकरण केंद्र पर अन्य लोगों के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा रहता है.