कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) पर संसदीय समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने रविवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने 28 जुलाई को समिति की बैठक ‘बाधित' की, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि पेगासस आरोपों पर कोई चर्चा हो और जिन अधिकारियों को गवाही देनी थी, लगता है उन्हें ‘‘पेश नहीं होने का निर्देश दिया गया.'' हालांकि, उन्होंने उम्मीद जतायी कि आगामी समय में समिति जासूसी मुद्दे पर सुनवाई करेगी. थरूर ने संसद में गतिरोध के लिए भाजपा पर दोष मढ़ा और आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल ‘‘अपने एजेंडे के लिए लोकतंत्र के मंदिर का महत्व घटाकर उसे ‘रबड़ स्टांप' में बदलने के लिए आमादा है.''
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टिप्पणी की आलोचना
कांग्रेस नेता थरूर ने पीटीआई-भाषा के साथ साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस टिप्पणी के लिए उनकी आलोचना की कि विपक्ष ने संसद का अपमान किया है. थरूर ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर किसी भी तरह, किसी भी रूप में जवाबदेह होने से सरकार के इनकार ने ‘‘लोकतंत्र और आम भारतीयों का मजाक उड़ाया है, जिसका सरकार प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है.'' पूर्व केंद्रीय मंत्री और तिरुवनंतपुरम के सांसद ने जोर देकर कहा कि चर्चा और जवाबदेही से बचना संसद का अपमान है. यह पूछे जाने पर कि क्या आगे सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति पेगासस जासूसी मुद्दे पर विचार कर सकेगी, थरूर ने कहा कि अब दो साल से आईटी समिति ‘‘नागरिकों की डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा'' और ‘‘साइबर सुरक्षा'' विषयों पर चर्चा कर रही है, जो कि संसदीय समिति के पूर्व अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के एजेंडे में भी था. उन्होंने कहा कि पेगासस मुद्दा स्पष्ट रूप से आईटी समिति के दायरे में आता है और इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि जब ये विषय उठेंगे तो इसके सदस्य इसके बारे में सवाल पूछेंगे.
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कई मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद थी
थरूर ने कहा, ‘‘यह कोई रहस्य नहीं है कि अपने स्थापित एजेंडे पर समिति की बैठक को सदस्यों द्वारा बाधित किया गया, जो नहीं चाहते थे कि पेगासस पर चर्चा की जाए. समिति को कोरम से वंचित करने के लिए 10 सदस्यों का भाग लेना और रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना अभूतपूर्व था.'' समिति को 28 जुलाई को एक बैठक करनी थी, जिसमें पेगासस जासूसी के आरोपों सहित कई मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद थी. इसने ‘नागरिक डेटा सुरक्षा और गोपनीयता' विषय पर इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई), गृह मंत्रालय और संचार मंत्रालय (दूरसंचार विभाग) के अधिकारियों को भी तलब किया गया था. हालांकि, बैठक नहीं हो सकी क्योंकि समिति में शामिल भाजपा सदस्यों ने बैठक कक्ष में मौजूदगी के बावजूद उपस्थिति रजिस्टर पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिससे कोरम (संख्या बल) पूरा नहीं हुआ. सचिवालय की समिति शाखा को 28 जुलाई की दोपहर तीनों मंत्रालयों/विभागों से ई-मेल के जरिए संदेश मिला कि उनके प्रतिनिधि संसद संबंधी कार्य के कारण समिति के समक्ष उपस्थित नहीं हो पाएंगे. थरूर ने कहा कि उस दिन गवाही देने वाले तीन अधिकारियों को अंतिम समय में बहाने बनाकर उपस्थित नहीं होने का निर्देश दिया गया था, जो गवाहों को बुलाने के संसदीय समितियों के विशेषाधिकार पर एक गंभीर हमला है.
संसद के प्रति जवाबदेही लोकतंत्र की बुनियाद है
समिति की बैठक में शामिल नहीं होने वाले मंत्रालय के अधिकारियों पर कार्रवाई करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखने वाले थरूर ने यह भी कहा कि बैठक से दूर रहने के लिए ‘‘अंतिम समय में बहाने'' बनाने वाले तीन अधिकारियों की हरकत गवाहों को बुलाने के लिए ऐसी समिति के विशेषाधिकार पर एक ‘‘गंभीर हमला'' है. यह कहते हुए कि संसद के प्रति जवाबदेही लोकतंत्र की बुनियाद है, थरूर ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार की ‘‘निरंकुश व्यवस्था में इसे दरकिनार किया जा रहा है.'' उन्होंने कहा, ‘‘इस निराशाजनक दृष्टिकोण के बावजूद, मुझे उम्मीद है कि हम आगे चलकर इस सवाल को उठाने में सक्षम होंगे.''
पेगाससः भारत के 300 से ज्यादा नंबरों की लिस्ट
यह पूछे जाने पर कि क्या पेगासस मामले को उठाने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) अधिक उपयुक्त होगी, थरूर ने कहा, ‘‘मुझे यकीन नहीं है कि एक जेपीसी क्या कर सकती है, जो आईटी समिति नहीं कर सकती है. फिर भी, मैंने शुरू से ही जोर दिया कि हमें वास्तव में क्या चाहिए....पेगासस मुद्दे की निष्पक्ष, पारदर्शी और गहन जांच करने के लिए उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एक सेवारत या हाल में सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच.'' थरूर ने कहा कि न्यायपालिका के पास शक्तियां हैं जो सांसदों की एक समिति की तुलना में पेगासस से जुड़े सवालों के सभी पहलुओं का पता लगाने के लिए बेहतर स्थिति में है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने दावा किया था कि इजराइल की कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर के जरिए भारत के 300 से ज्यादा मोबाइल नंबर उस संभावित सूची में थे, जिनकी जासूसी किए जाने का संदेह है. इस सूची में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और अश्विनी वैष्णव, कारोबारी अनिल अंबानी समेत कम से कम 40 पत्रकार भी थे.
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विपक्ष की उम्मीदें उच्चतम न्यायालय से
पेगासस जासूसी मामले की तुलना अमेरिका के वाटरगेट कांड से करने पर थरूर ने कहा कि दोनों प्रकरणों के बीच कई समानताएं कई हैं लेकिन महत्वपूर्ण अंतर उन संबंधित शासन-व्यवस्था के परिणामों में है, जो इन घटनाओं के सामने आने पर सत्ता में थे. थरूर ने कहा, ‘‘वाटरगेट मामले में अमेरिकी कांग्रेस की जांच के बाद राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा था. हमारी संसद को इस मुद्दे पर चर्चा से ही वंचित कर दिया गया है जबकि नए आईटी मंत्री भी संभावित रूप से लक्षित लोगों की सूची में थे.'' उन्होंने कहा कि पेगासस ऐसा मुद्दा है कि आंतरिक सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर इसके गंभीर प्रभाव को देखते हुए या तो गृह मंत्री को या खुद प्रधानमंत्री को संबोधित करना चाहिए था. थरूर ने कहा कि विपक्ष की उम्मीदें उच्चतम न्यायालय से हैं, जो मंगलवार को मामले की सुनवाई करेगा.