दुष्यंत चौटाला, महबूबा मुफ्ती का एक सा हाल, हरियाणा और कश्मीर में दो सबसे बड़े लूजर

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में किंगमेकर माने जाने वाली पार्टियों को इस बार जनता ने झुटला दिया है. जम्मू-कश्मीर में तो महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती अपनी पारंपरिक सीट ही नहीं जीत पाई हैं. वहीं हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी का खाता तक नहीं खुला है.

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महबूबा मुफ्ती और दुष्यंत चौटाला की पार्टी को आम जनता ने नकार दिया है
नई दिल्ली:

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. इस बार के चुनाव में जहां हरियाणा में बीजेपी ने इतिहास रचा है वहीं जम्मू-कश्मीर में एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने सत्ता में वापसी की है. इस बार का चुनाव परिणाम में कई क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक बड़ा सबक लेकर भी आया है. चाहे बात जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी की हो या फिर हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ( जेजेपी) पार्टी की. इन दोनों पार्टियों का इस बार के चुनाव में एक जैसा ही हाल है. आपको बता दें कि चुनाव परिणाम आने से कुछ समय पहले तक ये दोनों ही पार्टियां अपने-अपने राज्य में एक किंगमेकर की तरह देखी जा रही थीं.

कहा जा रहा था कि अगर कहीं कोई पेच फंसा तो ये पार्टियां बड़ी अहम साबित होंगी. लेकिन मंगलवार को आए चुनाव परिणामों ने पूरी कहानी ही पलट दी है. अब इन पार्टियों के लिए किंगमेकर की भूमिका निभाना तो दूर अपनी पार्टी को बचाना ही एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है. अगर बात महबूबी मुफ्ती की पीडीपी की करें तो पार्टी जहां पिछले चुनाव में 28 सीटें जीतने में सफल हुई थी वहीं इस बार वह महज 3 सीटों पर ही सिमट गई है. वहीं हरियाणा में किंगमेकर की भूमिका में रही जेजेपी खाता तक नहीं खोल पाई है. और तो पार्टी प्रमुख दुष्यंत चौटाला अपनी जमानत तक नहीं बचा सकें है.  

चंद्रशेखर की पार्टी से गठबंधन का भी नहीं मिला दुष्यंत को फायदा 

हरियाणा चुनाव के परिणाम आने से पहले तक ऐसा माना जा रहा था कि इस बार भी दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह थी दुष्यंत चौटाला और चंद्रशेखर की पार्टी के बीच हुआ गठबंधन. कहा जा रहा था कि दुष्यंत चौटाला को इस गठबंधन का फायदा मिलेगा और जेजेपी के लिए दलित वोटर्स बढ़-चढ़कर वोटिंग करेंगे. लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद ये साफ हो गया कि दुष्यंत चौटाला की पार्टी को इस गठबंधन से कोई खास फायदा नहीं हुआ है. 

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अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए दुष्यंत चौटाला

इस चुनाव में दुष्यंत चौटाला की पार्टी का क्या हाल हुआ इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि चुनाव जीतना तो दूर दुष्यंत अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए हैं. यही हाल उनकी पार्टी का भी रहा है. पहले जहां हरियाणा में जेजेपी के हाथ में 10 सीटें थी वहीं इस चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला है. 

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निर्दलीय उम्मीदवारों से भी मिले कम वोट 

हरियाणा की उचाना कलां सीट से जब दुष्यंत चौटाला मैदान में उतरे होंगे तो उन्होंने शायद ही ये सोचा होगा कि चुनाव परिणाम आने के बाद उनका ये हाल होगा. परिणाम आने के बाद ये साफ हो गया कि वो इस चुनाव में पांचवें पायदान पर रहे हैं. अगर बात मिले वोटों की करें तो दुष्यंत चौटाला को दो निर्दलीय उम्मीदवारों विकास और वीरेंद्र घोघारियां  से भी कम वोट मिले हैं. दुष्यंत चौटाला को जहां सिर्फ 7950 वोट मिले वहीं निर्दलीय उम्मीदवार विकास को 13458 और वीरेंद्र घोघारियां को 31456 वोट मिले हैं. इस सीट से बीजेपी के देवेंद्र अत्री को जीत मिली है. 

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जम्मू-कश्मीर में 28 से तीन सीटों पर सिमटी पीडीपी

जम्मू-कश्मीर चुनाव में अगर बात महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी की प्रदर्शन की करें तो वो चौंकाने वाले हैं. पिछले बार के चुनाव में जहां पीडीपी को घाटी में 28 सीटें मिली थी वहीं इस बार उसे सिर्फ तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा है. अपनी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को लेकर महबूबा मुफ्ती ने एक बयान भी दिया. उन्होंने मंगलवार को चुनाव नतीजे आने के बाद कहा था कि राज्य की जनता शायद एक स्थिर सरकार चाहती थी इसलिए उन्होंने इस बार एनसी-कांग्रेस को चुना है. आपको बता दें कि महबूबा मुफ्ती की पीडीपी जिन तीन सीटों पर जीती हैं उनमें शामिल हैं पुलवामा, ट्राल और कुपवाड़ा.

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महबूबा मुफ्ती की बेटी भी नहीं जीत सकीं अपनी सीट

महबूबा मुफ्ती ने इस चुनाव में अपनी बेटी इल्तिजा मुफ्ती को बिजबेहरा सीट से मैदान में उतारा था. बिजबेहरा की ये सीट पीडीपी की पारंपरिक सीट मानी जाती है. ऐसे में इस सीट से  इल्तिजा मुफ्ती का हार जाना पीडीपी के लिए एक बड़े झटके की तरह है. इल्तिजा मुफ्ती को इस सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता बशीर अहमद वीरी ने 9 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया है. 

"पार्टी में टूट बनी हार की वजह"

पीडीपी नेता और महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए कई कारण गिनाए हैं. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में घाटी की जनता एनसी-कांग्रेस गठबंधन को जिताने के लिए तैयारी थी. हमारी हार की एक वजह ये भी है. उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी में जो टूट हुई है उसकी वजह से ही हमें इस चुनाव में वो परिणाम नहीं मिले जिसकी हमें अपेक्षा थी. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर कोई ये कहता है कि हमने बीजेपी से गठबंधन किया था और इस वजह से ही इस बार के चुनाव में हमें हार का सामना पड़ा है तो ये पूरी तरह से गलत है. ऐसा कुछ भी नहीं है.  

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