वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी मामले (Gyanvapi Masjid Shringar Gauri Case) में कोर्ट ने रूल 1/10 के तहत पक्षकार बनने के लिए दायर याचिका में बची तीन याचिका निरस्त कर दी है. इस मामले में 82ग के तहत दायर एप्लीकेशन में सुनवाई की अगली डेट 2 नवंबर लगा दी गई है. इस एप्लीकेशन में कमीशन सर्वे के दौरान जो बेसमेंट में दीवार है और जहां सर्वे नहीं हो पाया था, वहां दीवार हटाकर सर्वे कराने के साथ मिली अवशेषों की भी जांच की बात है.
इससे पहले की सुनवाई में वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में मिले 'कथित शिवलिंग' की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने इससे छेड़छाड़ करने से मना कर दिया. हिंदू पक्ष अब इसके लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा.
चार हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिली शिवलिंग जैसी संरचना की वैज्ञानिक जांच कराने की मांग की थी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से यह जांच कराने की मांग थी. वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने यह याचिका खारिज कर दी.
हिंदू पक्ष की दलील- जांच से विवाद खत्म होगा
इस मामले में याचिका लगाने वाली महिलाओं का कहना था कि हमारे मुकदमे में दृश्य या अदृश्य देवता की बात कही गई है. सर्वे के दौरान मस्जिद के वजूखाने से पानी निकाले जाने पर अदृश्य आकृति दृश्य रूप में दिखाई दी. ऐसे में अब वह मुकदमे का हिस्सा है. ऐसे में उस आकृति को नुकसान पहुंचाए बगैर उसकी और उसके आसपास के एरिया की वैज्ञानिक पद्धति से जांच जरूरी है. हिंदू पक्ष ने कहा था कि कार्बन डेटिंग से आकृति की आयु, उसकी लंबाई-चौड़ाई और गहराई का तथ्यात्मक रूप से पता लग सकेगा.
मसाजिद कमेटी ने कहा था- जांच की जरूरत नहीं
इस मामले में ज्ञानवापी मसाजिद कमेटी ने कहा था- कथित शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच की कोई जरूरत नहीं है. हिंदू पक्ष ने अपने केस में ज्ञानवापी में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष देवी-देवताओं की पूजा की मांग की है. फिर यह शिवलिंग की जांच की मांग क्यों कर रहे हैं...? हिंदू पक्ष ज्ञानवापी में कमीशन की ओर से सबूत इकट्ठा करने की मांग कर रहा है. सिविल प्रक्रिया संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
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