बिहार के एक दर्जन से ज्यादा जिलों में घटा भूजल स्तर, आर्थिक सर्वेक्षण में हुआ बड़ा खुलासा 

बिहार लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के मंत्री ललित कुमार यादव ने कहा कि विभाग द्वारा मामले की जांच की जा रही है.

विज्ञापन
Read Time: 25 mins
बिहार के कई जिलों में घटा भूजल का स्तर
नई दिल्ली:

बिहार में बीते कुछ वर्षों में घटता भूजल स्तर एक बड़ी समस्या की तरह सामने आया है. मौजूदा समय में बिहार के एक दर्जन से ज्यादा ऐसे जिले हैं जहां भूजल स्तर में गिरावट की समस्या देखी गई है. भूजल स्तर में आई यह गिरावट अब राज्य सरकार के लिए भी एक बड़ी चिंता साबित हो रही है. विभिन्न जिलों में घटते भूजल स्तर की बात राज्य में जारी किए आर्थिक सर्वेक्षण में की गई है. राज्य भर में मानसून पूर्व भूजल स्तर के आकलन से पता चला है कि औरंगाबाद, सारण, सीवान, गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, खगड़िया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार जैसे जिलों में पिछले दो वर्षों में भूजल स्तर में गिरावट देखी गई है.

बिहार लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के मंत्री ललित कुमार यादव ने कहा कि विभाग द्वारा मामले की जांच की जा रही है. हम पानी की गुणवत्ता में कमी के कारणों और इसे रोकने के लिए उठाए जा सकने वाले निवारक कदमों का पता लगाने के लिए एक नए अध्ययन की योजना बना रहे हैं. भूजल स्तर में गिरावट को रोकने के उपायों पर राज्य सरकार के अन्य संबंधित विभागों के साथ भी चर्चा की जाएगी.

बता दें कि बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार 2021 में मानसून पूर्व अवधि के दौरान औरंगाबाद, नवादा, कैमूर और जमुई जैसे जिलों में भूजल स्तर जमीन से कम से कम 10 मीटर नीचे था. औरंगाबाद में मानसून पूर्व भूजल स्तर 2020 में 10.59 मीटर था, लेकिन 2021 में यह घटकर 10.97 मीटर रह गया है. अन्य जिलों जैसे सारण (2020 में 5.55 मीटर से 2021 में 5.83 मीटर), सीवान (2020 में 4.66 मीटर और 2021 में 5.4 मीटर), गोपालगंज (2020 में 4.10 मीटर और 2021 में 5.35 मीटर), पूर्वी चंपारण ( 2020 में 5.52 मीटर और 2021 में 6.12 मीटर), सुपौल (2020 में 3.39 मीटर और 2021 में 4.93 मीटर) शामिल हैं.

Advertisement

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के विभिन्न जिलों में भूजल स्तर में गिरावट चिंता का विषय है, क्योंकि यह कृषि, औद्योगिक और घरेलू गतिविधियों में अहम सहायक है. राज्य के आर्थिक विकास को प्रभावित करने के अलावा घटते भूजल स्तर के अन्य निहितार्थ हैं जैसे कि ताजे जल संसाधनों में कमी और पारिस्थितिक असंतुलन का निर्माण. मानव गतिविधियों के अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में उतार-चढ़ाव भी भूजल पुनर्भरण को प्रभावित कर सकता है.

Advertisement

राज्य में भूजल के दूषित होने के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्याप्त मात्रा में जल संसाधनों के बावजूद हाल के वर्षों में इसमें वृद्धि हुई है. 2021 तक बिहार में कुल 968 नहरें, 26 जलाशय और बड़ी संख्या में राजकीय नलकूप हैं. जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि बिहार में गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी की गुणवत्ता बैक्टीरिया की अत्यधिक मौजूदगी (कुल और फीकल कोलीफॉर्म) का संकेत देती है. यह मुख्य रूप से गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित शहरों से अवजल/घरेलू अपशिष्ट जल के निर्वहन के कारण है.

Advertisement

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के 1,14,651 ग्रामीण वार्ड में से 29 जिलों में फैले 30,207 ग्रामीण वार्ड में भूजल की गुणवत्ता प्रभावित पाई गई. राज्य सरकार के पीएचईडी ने पानी की जांच और जांच के नतीजे उपयोगकर्ताओं के साथ साझा करने के लिए एक गुणवत्ता निगरानी प्रोटोकॉल विकसित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निगरानी प्रणाली मौजूद है.

Advertisement

जठरांध्र विज्ञानी (गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट) मनोज कुमार ने कहा कि ठीक से उपचारित पानी का सेवन मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा नहीं है. पीने के पानी के दूषित होने से कई प्रकार की बीमारियां जैसे टाइफाइड, डायरिया, हेपेटाइटिस, हैजा और अन्य वायरल संक्रमण होते हैं. उन्होंने कहा कि भूजल ज्यादातर सीवेज लाइनों में रिसाव या सेप्टिक टैंक के माध्यम से दूषित हो जाता है. इसमें कुल घुलित ठोस पदार्थों का स्तर अधिक होता है, जिसे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए अनिवार्य रूप से कम करने की आवश्यकता होती है. इसमें अन्य खतरनाक तत्व भी हो सकते हैं जैसे कि फ्लोराइड युक्त पेयजल जिससे फ्लोरोसिस होने की आशंका रहती है. 

Featured Video Of The Day
Top Headlines: Mansa Devi Stampede | Rudraprayag Cloud Burst | Mumbai Rain | Bijapur Naxali Killed