सीवर की सफाई के दौरान 2023 में अब तक 9 की गई जान, इन मौतों का जिम्मेदार कौन?

Ground Report On Manual Scavengers: भारत सरकार ने मैनुअल स्क्वैंजर एक्ट के तहत सीवर और सेप्टिंक टैंक की हाथ से सफाई पूरी तरह गैर-कानूनी है. ऐसा करते पकड़े जाने पर 50 हजार का जुर्माना या सालभर की सजा हो सकती है. फिर भी इस कानून का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है.

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बीते पांच साल में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 339 लोगों की मौत हुई है.
नई दिल्ली:

हाथ से मैला ढोने (Manual Scavenging) पर प्रतिबंध लगाए जाने के 10 साल बाद भी आज बड़ी संख्या में लोग इस काम में लगे हुए हैं. सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हर साल कई सफाई कर्मियों की मौत हो रही है. बीते पांच सालों 339 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. सवाल ये उठता है कि जब सीवर की सफाई के दौरान सेफ्टी डिवाइस के साथ उतरने का कानून बना है, तो फिर कैसे लगातार मौतें हो रही हैं? 

साल 2013 में मैनुअल स्केवेंजिंग (Manual Scavenging)यानी हाथ से मैला उठाने वाले नियोजन प्रतिषेध और पुनर्वास अधिनियम लाया गया था. जिसमें केंद्र सरकार ने इसकी परिभाषा तय की है. परिभाषा के अनुसार, "कोई भी व्यक्ति जिससे स्थानीय प्राधिकारी हाथों से मैला ढुलवाने का काम करवाए, मैला साफ कराए, ऐसी खुली नालियां या गड्ढे जिसमें किसी भी तरह से इंसानों का मल-मूत्र इकट्ठा होता हो, उसे हाथों से साफ कराए तो वो शख्स 'मैनुअल स्केवेंजर' कहलाएगा."

हाथ से इंसानी मल साफ करने से होती है ये बीमारियां
भारत में दशकों से जड़े जमाए जाति प्रथा के कारण इस तरह के नुकसानदेह काम ज्यादातर उन लोगों को करने पड़ते हैं, जो जाति व्यवस्था की सबसे निचली पायदान पर हैं. हाथ से इंसानी मल को साफ करने या कहीं और फेंकने के कारण ऐसे सफाई कर्मचारियों को हैजा, हेपेटाइटिस, टीबी, टाइफाइड और इसी तरह की अन्य बीमारियों का शिकार होने का खतरा बना रहता है. 

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सीवर की सफाई के दौरान दो भाइयों की मौत
पिछले साल अक्टूबर में फरीदाबाद में एक टैंक की सफाई के दौरान 72 साल के अशर्फी लाल के दोनों बेटों की मौत हो गई. छह महीने बाद शुक्रवार को जब हम इनके घर पहुंचे, तो रोहित और रवि की बुजुर्ग मां दूसरे घरों में काम पर गई थीं. बीमार पिता अशर्फी लाल अपने बच्चों को याद करते हुए रो पड़े. उन्होंने NDTV से कहा, "मेरे दोनों बच्चों का कत्ल हुआ है. अब मैं किसके सहारे रहूं. दशहरे के दिन ठेकेदार उन्हें लेकर गया था. फिर वो नहीं लौटे. टैंकर से लाशें निकाली गई. न दिल्ली सरकार से कुछ मदद मिली और न ही हरियाणा सरकार से कोई सहायता. अस्पताल ने अपना नाम कटवाने के लिए हमें पैसे दिए. मेरी बीवी दूसरे घरों में काम करती है. वहां भी दुत्कारते हैं कि काम छोड़ दो. क्या करें."

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2023 में अब तक 9 मौतें 
हर साल रोहित और रवि जैसे लोग सरकारी फाइलों में मौत के आंकड़ें बनकर दर्ज हो जाते हैं, लेकिन ये सिलसिला खत्म नहीं हो रहा है. बीते पांच साल में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 339 लोगों की मौत हुई है. 2022 में 66 और 2023 में अब तक 9 मौतें हुई हैं. ऐसा सरकार का कहना है. इतनी मौंतों के बावजूद कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है.

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कश्मीरी गेट इलाके में सेफ्टी डिवाइस के बिना हो रही सीवर की सफाई 
दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. यहां बिना सेफ्टी डिवाइस के सफाई कर्मचारी सीवर की सफाई कर रहे हैं. NDTV की टीम ने जब उनका वीडियो बनाने की कोशिश की, तो ठेकेदार ने रोकने लगे.

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हाथ से सीवर की सफाई गैर-कानूनी
भारत सरकार ने मैनुअल स्क्वैंजर एक्ट के तहत सीवर और सेप्टिंक टैंक की हाथ से सफाई पूरी तरह गैर-कानूनी है. ऐसा करते पकड़े जाने पर 50 हजार का जुर्माना या सालभर की सजा हो सकती है. फिर भी इस कानून का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है. इन मौतों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाए? ये जानने के लिए हमनने दिल्ली हाईकोर्ट के मॉनिटरिंग कमेटी के चेयरमैन हरनाम सिंह से बात की.

दिल्ली हाईकोर्ट के मॉनिटरिंग कमेटी के चेयरमैन हरनाम सिंह ने कहा, "हाथ से मैला ढोने या सफाई करने की प्रथा को रोकने के लिए पहला कदम ये है कि सरकार की सभी एजेंसियां सीवर की सफाई को मैकेनाइज्ड करें. मशीन खरीदे और इसी से सफाई को अनिवार्य बनाया जाए. प्राइवेट कंपनियों पर सख्ती किया जाए. वरना आधुनिक भारत में ये हमारे समाज पर कलंक है.

मैला ढोने के लिए क्या है कानून?
मैला ढोने की प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए भारत में सबसे पहले 1993 में कानून पारित किया गया था. इसके बाद एक बार फिर साल 2013 में इससे संबंधित दूसरा कानून बना. पहले कानून में सिर्फ सूखे शौचालयों में काम करने को खत्म किया गया. वहीं, 2013 में लाए गए कानून में मैला ढोने की परिभाषा को बढ़ाया गया. इस कानून में हाथ से सेप्टिक टैंकों की सफाई और रेलवे पटरियों की सफाई को भी शामिल किया गया. 

2013 में लाए गए मैनुअल स्केवेंजिंग नियोजन प्रतिषेध और पुनर्वास अधिनियम के तीसरे अध्याय का सातवां बिंदु यह साफ कहता है कि इस कानून के लागू होने के बाद कोई स्थानीय अधिकारी किसी भी शख़्स को सेप्टिक टैंक या सीवर में 'जोखिम भरी सफाई' करने का काम नहीं दे सकता है.

2014 में आया था सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
इसके बाद 27 मार्च 2014 को मैला ढोने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का एक महत्त्वपूर्ण निर्णय आया. कोर्ट ने सीवर साफ करने वाले लोगों के मुद्दे को भी शामिल किया, क्योंकि सीवर साफ करने वाले श्रमिकों को भी काफी मुश्किल परिस्थितियों में भी बिना किसी सेफ्टी औजर के सीवर लाइनों की सफाई करते हुए मानव मल को साफ करना पड़ता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सीवर की सफाई के दौरान मारे गए परिवारों को 10 लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान भी रखा है. लेकिन तमाम गरीब परिवार हैं ,जो मुआवजे और पुनर्वास के लिए कई साल से दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं. 

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