भारत सरकार के थिंकटैंक - नीति आयोग ने सोमवार को “इंडिया ब्लू इकोनॉमी : स्ट्रेटेजी फॉर हार्नेसिंग डीप सी एंड ऑफशोर फिशरीज” (“India's Blue Economy: Strategy for Harnessing Deep-Sea and Offshore Fisheries”) पर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की. नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि महाद्वीपीय शेल्फ (continental shelf) से आगे 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक गहरे पानी में फैला भारत का विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) और नौ तटीय राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में फैली 11,098 किलोमीटर की तटरेखा गहरे समुद्र (deep seas) में समुद्री मत्स्य पालन का विस्तार करने की अपार संभावनाएं हैं.
नीति आयोग के मुताबिक, भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 8 प्रतिशत हिस्सा है. भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र लगभग 30 मिलियन आजीविका में सहयोग और निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान देता है, वित्त वर्ष 2023-24 में मत्स्य उत्पादों से 60,523 करोड़ रुपये की कमाई प्राप्त हुई है.
रिपोर्ट जारी करते हुए नीति आयोग के CEO बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने कहा कि महाद्वीपीय शेल्फ (continental shelf) से परे गहरे समुद्र में मत्स्य संसाधन काफी हद तक अनुपयोगी (unexploited) बने हुए हैं। विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) में पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों संसाधनों सहित अनुमानित संभावित उपज (potential yield) 7.16 मिलियन टन है.
नीति आयोग द्वारा जारी एक रिलीज़ के मुताबिक, मत्स्य पालन से संबंधित केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के अभिसरण पर विचार करके तीन चरणों के लिए एक सांकेतिक लागत ढाँचा भी प्रदान किया गया है. चरण 1: प्रारंभिक विकास की नींव रखना और उसे बढ़ावा देना (3 वर्ष | 2025-28); चरण 2: वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना और प्राप्त करना (4 वर्ष | 2029-32) और चरण 3: स्थायी गहरे समुद्र में मत्स्य पालन में वैश्विक नेतृत्व (8 वर्ष और उससे आगे | 2033 से आगे)."
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि गहरे समुद्र और अपतटीय मत्स्य पालन (offshore fisheries) के कारगर इस्तेमाल से समुद्री खाद्य निर्यात में वृद्धि हो सकती है, रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं और तटीय मत्स्य पालन पर दबाव कम हो सकता है, साथ ही इकोसिस्टम की स्थिरता भी सुनिश्चित की जा सकती है.
रिपोर्ट में नीतियों और विनियमों में व्यापक बदलाव; संस्थागत और क्षमता निर्माण को मज़बूत करना; बेड़े का आधुनिकीकरण और बुनियादी ढाँचे का उन्नयन; स्थायी मत्स्य प्रबंधन को बढ़ावा देना; संसाधन और वित्तपोषण जुटाना; और स्थानीय समुदाय की भागीदारी और साझेदारियों को बढ़ाना, इन छह प्रमुख नीतिगत हस्तक्षेपों की पहचान की गई है.