सरकार ने E-Waste मैनेजमेंट के नए नियम जारी किए, असंगठित क्षेत्र पर ध्यान न देने से चिंता बढ़ी

ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 (E-waste Management Rules 2016) के तहत ई-कचरे के निस्तारण में शामिल पूरी वैल्यू चैन की भूमिका और जिम्मेदारी परिभाषित थी. इसके तहत देश भर में 75 से ज्यादा पीआरओ और 400 से ज्यादा डिस्मैंटलर्स ने देश भर में अपने प्रतिष्ठान स्थापित किए थे.

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E-waste को लेकर नए नियमों पर सुझाव और आपत्तियां मांगी गई हैं
नई दिल्ली:

ई-कचरा प्रबंधन के नए नियम सरकार ने अधिसूचित कर दिए हैं, लेकिन इसमें असंगठित क्षेत्र पर ध्यान न दिए जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. पर्यावरण मंत्रालय ने ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2022 (E-waste Management Rules 2022) को जारी कर जून अंत तक इस पर आपत्तियां और सुझाव मांगे हैं. लेकिन इसमें सबसे बड़ी मुश्किल ये हैं कि रिसाइकलिंग के लक्ष्य को पूरा करने केलिए सिर्फ पंजीकृत रिसाइकलर्स को ही अधिकृत किया है. इससे ई वेस्ट कलेक्शन की पूरी वैल्यू चेन में शामिल असंगठित क्षेत्र के हजारों लोगों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है. जबकि ये केंद्र औऱ राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ ई-वेस्ट के बेहतर प्रबंधन-निस्तारण के अलावा आवासीय कालोनियो, डीलर, रिटेलर्स, बड़े ग्राहकों, ऑफिस क्लस्टर्स से से इसे इकट्ठा करने में मजबूत कड़ी हैं. ई-वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों में बार-बार और इतने बड़े बदलावों से संगठित बाजार खड़ा करने में दिक्कतें आएंगी. 

दरअसल, ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत ई-कचरे के निस्तारण में शामिल पूरी वैल्यू चैन की भूमिका और जिम्मेदारी परिभाषित थी. इसके तहत देश भर में 75 से ज्यादा पीआरओ और 400 से ज्यादा डिस्मैंटलर्स ने देश भर में अपने प्रतिष्ठान स्थापित किए थे. ये इलेक्ट्रानिक कंपनियों औऱ रिसाइकलिंग करने वालों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी हैं, जो ई-वेस्ट के बेहतर संग्रहण और गुणवत्तापूर्ण ढंग से औऱ स्वास्थ्य मानकों का ध्यान रखते हुए उससे जरूरी खनिजों को अलग करने की जिम्मेदारी निभाते हैं. पुराने नियमों के तहत देश में रिसाइकलिंग क्षमता 1 से बढ़कर 4-5 फीसदी तक पहुंच गई है.

इंडियन फेडरेशन ऑफ रिवर्स लॉजिस्टिक (IFRL)  ने  निराशा जताते हुए कहा है कि सरकार की ओऱ से नए प्रस्तावित ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2022 पूरी तरह से प्रोड्यूसर रिस्पांसबिलिटी आर्गेनाइजेशन (PROs) या ई वेस्ट प्रोडक्ट को अलग-अलग करने वालों को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है. संगठन के मुताबिक, सप्लाई चेन में उन्हें एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसबिलिटी के तहत उन्हें मान्यता दी जानी चाहिए ताकि उनका कारोबार और आजीविका पर कोई खतरा नहीं आए. संगठन ने मांग रखी है कि देश भऱ में ऐसी ग्रीन सप्लाई चेन बनाई जानी चाहिए जो ई-वेस्ट के संग्रह, उनके निस्तारण और उनके दोबारा इस्तेमाल की सर्कुलर इकोनॉमी को विकसित करना जरूरी है.

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उनका कहना है कि असंगठित क्षेत्र और उपभोक्ताओं से  इलेक्ट्रानिक कबाड़ को इकट्ठा करने और उनके चैनलाइजेशन के साथ पर्यावरण का ध्यान रखते हुए उनके निस्तारण में पीआरओ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे इलेक्ट्रानिक कंपनियों को ई-वेस्ट का लक्ष्य पाने, घर-घर जाकर इसे इकट्ठा करने, कलेक्शन सेंटर या प्वाइंट बनाने न्म अहम भूमिका निभाते हैं. जबकि डिस्टमैंटलर्स ई-वेस्ट को छांटने-बीनने, उन्हें अलग-अलग करने स्क्रैप में तब्दील करने की भूमिका निभाते हैं. ताकि ई-वेस्ट रिसाइकलर्स के पास पहुंचे तो उसे बहुमूल्य खनिजों को आसानी से निकाला जा सके. जबकि नई गाइडलाइन में सिर्फ रिसाइकलर्स की औपचारिक भूमिका का उल्लेख है, बाकी संग्रहण और निस्तारण में पूरे नेटवर्क की उपेक्षा की गई है.
 

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