कोलकाता: केंद्रीय इस्पात मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को कहा कि सरकार का हरित इस्पात पहल को बढ़ावा देने के लिए 2047 तक स्टील बनाने की प्रक्रिया में कबाड़ की हिस्सेदारी बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य है. सिंधिया ने एक सम्मेलन में इस्पात विनिर्माण में कबाड़ का उपयोग बढ़ाने की बात कही. इसका कारण कबाड़ और अन्य अपशिष्ट उत्पादों के माध्यम से धातु के विनिर्माण से प्रदूषण कम फैलता है. उन्होंने इसे ‘हरित इस्पात पहल की दिशा में' कदम बताया.
उन्होंने कोलकाता में 11वें अंतरराष्ट्रीय सामग्री पुनर्चक्रण सम्मेलन मे कहा, ‘‘हमारे मंत्रालय के दृष्टिकोण पत्र 2047 के अनुसार अगले 25 साल में कबाड़ का प्रतिशत 50 प्रतिशत होगा और शेष 50 प्रतिशत लौह अयस्क के रूप में होगा.'' मंत्री ने वीडियो संदेश के जरिये अपने संबोधन में कहा कि कबाड़ का उपयोग न केवल प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को कम करता है बल्कि इस्पात विनिर्माण में कार्बन उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कटौती करता है.
सिंधिया ने कहा कि उत्सर्जन को कम करने और हरित इस्पात का उत्पादन करने के लिए भविष्य में अधिक कबाड़ की आवश्यकता होगी. इसके लिए पर्यावरण अनुकूल औपचारिक कबाड़ केंद्रों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आज देश में लगभग 2.5 करोड़ टन कबाड़ का उत्पादन होता है और लगभग 50 लाख टन का आयात किया जाता है.
सिंधिया ने कहा, ‘‘ इसके अलावा, खनन और इस्पात विनिर्माण के दौरान उत्पन्न विभिन्न अपशिष्ट उप-उत्पादों का उपयोग सीमेंट बनाने, सड़क निर्माण और कृषि में भी प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.'' मटेरियल रीसाइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमआरएआई) के अध्यक्ष संजय मेहता ने कहा कि वर्तमान में देश के कुल इस्पात उत्पादन में कबाड़ का योगदान लगभग 30 से 35 प्रतिशत है.
मेहता ने कहा, ‘‘अपनी विशाल आबादी और पर्यावरण को लेकर बढ़ती जागरूकता को देखते हुए, भारत में पुनर्चक्रण में वैश्विक अगुवा बनने की क्षमता है. देश में पुनर्चक्रण उद्योग में रोजगार पैदा करने, पर्यावरण पर कचरे के प्रभाव को कम करने और देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देने की क्षमता है.''
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