विसर्जन के लिए 8 किमी का फासला 20 घंटे में क्यों तय करते हैं लाल बाग के राजा? अनूठी है ये 5 परंपराएं

Ganesh Visarjan Lalbaugcha Raja: अनंत चतुर्दशी यानी गणेश उत्सव के समापन के दिन मुंबई के लालबाग इलाके से राजा की सवारी सुबह 10 बजे शुरू होती है और अगले दिन सुबह करीब 6 बजे यह गिरगांव चौपाटी के समुद्र तट पर पहुंचती है. आइए जानते हैं 5 परंपराएं.

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Ganesh Visarjan Lalbaugcha Raja: लाल बाग के राजा की सवारी के साथ लाखों भक्तों का हुजूम चलता है. 
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  • मुंबई के मशहूर गणपति लाल बाग के राजा गिरगांव चौपाटी तक का सफर पूरा करने के लिए 20 घंटे का वक्त लेते हैं.
  • उनकी सवारी सुबह 10 बजे शुरू होती है और अगले दिन सुबह 6 बजे गिरगांव चौपाटी के समुद्र तट पर पहुंचती है.
  • उनकी सवारी के साथ लाखों भक्तों का हुजूम चलता है और यह संख्या लालबाग से लेकर गिरगांव तक बरकरार रहती है.
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Ganesh Visarjan Lalbaugcha Raja: मुंबई के सबसे मशहूर गणपति लाल बाग के राजा अपने अपने पंडाल से गिरगांव चौपाटी तक का सफर पूरा करने के लिए 20 घंटे का वक्त लेते हैं, हालांकि यह फासला महज आठ किलोमीटर का ही है. इस धीमी रफ्तार के पीछे कई सालों से चली आ रही कुछ परंपराएं हैं. अनंत चतुर्दशी यानी गणेश उत्सव के समापन के दिन मुंबई के लालबाग इलाके से राजा की सवारी सुबह 10:00 बजे शुरू होती है और अगले दिन करीब 6:00 बजे यह गिरगांव चौपाटी के समुद्र तट पर पहुंचती है. उनकी सवारी के साथ लाखों भक्तों का हुजूम चलता है और यह संख्या लालबाग से लेकर गिरगांव तक ऐसे ही बरकरार रहती है. 

आइए जानते हैं वो 5 परंपराएं जिनके कारण लाल बाग के राजा के विसर्जन के लिए 8 किमी का फासला 20 घंटे में तय किया जाता है. 

1. पड़ोसी गणपति के बाद प्रस्थान

दरअसल लाल बाग के राजा का रथ जब अपने पंडाल से बाहर निकलता है तो सड़क से सटे मुख्य द्वार पर ही करीब 2 घंटे तक नाच गाने और गुलाल की बरसात के बीच उनको विदाई दी जाती है. परंपरा के मुताबिक, लाल बाग के राजा के पंडाल से बाहर निकालने के पहले पड़ोसी पंडाल के गणेश जिन्हें की गणेश गली के गणपति कहा जाता है, वह बाहर निकलते हैं. माना जाता है कि गणेश गली के गणपति ने ही लालबाग के मछुआरों की एक मन्नत पूरी की थी और इसके बाद लाल बाग के राजा  गणेश उत्सव की शुरुआत हुई. इसलिए इन दोनों पंडालों के बीच एक विशेष रिश्ता है. 

2. इलाके की सैर

पंडाल से बाहर आने के बाद लाल बाग के राजा अगले तीन से चार घंटे तक इस इलाके में घूमते हैं. इसके बाद वह भायखला के रास्ते गिरगांव चौपाटी के लिए आगे बढ़ते हैं. रात भर जगह-जगह में श्रद्धालु उनके आगमन का इंतजार करते हैं. अनेक ठिकानों पर बड़े-बड़े फूलों के हर से लाल बाग के राजा का स्वागत किया जाता है. लोग अपने परिवार के साथ अपने प्रिय आराध्य देव की एक झलक पाने के लिए सड़क पर घंटों खड़े रहते हैं. 

3. मुसलमान करते हैं स्वागत

लालबाग के राजा से जुड़ी एक दिलचस्प परंपरा यह है कि दो ठिकानों पर मुस्लिम समुदाय की ओर से भी उनका और उनके भक्तों का स्वागत किया जाता है. भायखला स्टेशन के पास हिंदुस्तानी मस्जिद के करीब पहुंचने पर मुस्लिम समुदाय की ओर से मिठाई बांटी जाती है. इसके बाद जब राजा की सवारी दो टाकी के मुस्लिम बहुल इलाके में पहुंचती है तो वहां मुस्लिम समुदाय की ओर से भक्तों को शाही शरबत पिलाया जाता है. 

4. फायर ब्रिगेड की अनोखी सलामी

हिंदुस्तानी मस्जिद से जब लालबाग के राजा आगे बढ़ते हैं तो एक और अनोखी परंपरा देखने मिलती है. जब राजा की सवारी मुंबई फायर ब्रिगेड के मुख्यालय के सामने से गुजरती है तो वहां खड़े सभी फायर इंजन के सायरन बजने लग जाते हैं और उनकी बत्तियां राजा को सलामी देने के लिए जला दी जाती है. सायरन और बत्तियां तब तक चालू रहती हैं, जब तक की लालबाग के राजा की सवारी मुख्यालय के सामने से गुजर ना जाए. 

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5. मछुआरे करते हैं विदा

पुरानी मुंबई की सड़कों से गुजरते हुए रात भर लाल बाग के राजा की सवारी धीमी रफ्तार से आगे बढ़ती है. सुबह 6:00 बजे गिरगांव चौपाटी पर पहुंचने के बाद वहां कोली समुदाय के लोग अपनी नौकाओं में रंग-बिरंगे झंडे लगाकर लाल बाग के राजा को भव्य सलामी देते हैं. इसके बाद मूर्ति को गहरे पानी में ले जाकर विसर्जित कर दिया जाता है. 

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