पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं. गुरुवार को कोलकाता में एक नई पार्टी अस्तित्व में आई और यह पार्टी 294 सदस्यों वाली बंगाल विधानसभा के आगामी चुनाव में मैदान में उतरेगी. हुगली जिले के फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी (Pirzada Abbas Siddiqui) ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal elections) से ठीक पहले अपनी नई पार्टी 'इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) बनाई है.
इस नई पार्टी का लक्ष्य है, पिछड़ी जातियों- मुस्लिमों, आदिवासी और दलित- का उत्थान. हालांकि, इस पार्टी का जन्म राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) से अंसतोष के चलते हुआ है. कहा जा रहा है कि यह पार्टी बंगाल में ममता के मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी कर सकती है.
पार्टी चीफ पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने कहा, "ममता बनर्जी ने कहा था कि वह नौकरियां, शिक्षा और 15 प्रतिशत आरक्षण देंगी. हमने विश्वास किया और मैंने अपने समर्थकों को ममता का समर्थन करने के लिए कहा. मेरे समर्थकों ने उनके लिए वोट किया. लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. उन्होंने हिंदू और मुस्लिमों को बांटना शुरू किया. इसलिए मुझे लगा कि दूसरों पर भरोसा क्यों किया जाए. खुद ही अपनी पार्टी बनाई जाए."
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने हाल ही में सिद्दकी से मिले थे. ओवैसी चाहते हैं कि उनकी पार्टी बंगाल चुनाव में उतरे. ओवैसी सिद्दीकी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल का चुनाव लड़ने का ऑफर दे चुके हैं. ऐसी जानकारी है कि सिद्दीक़ी ने एक वक्त तृणमूल के साथ लड़ने के बदले में 40 सीटों की मांग की थी, जिसे तृणमूल ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने अकेले ही मैदान में लड़ने का फैसला किया.
तृणमूल कांग्रेस सरकार में मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा, "बंगाल में बीजेपी की मदद के लिए कई लोग आ रहे हैं, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ेगा. चाहे वह एमआईएम हो या कोई और, सभी जानते हैं कि वे भाजपा के वोट कटुवा हैं."
हालांकि, बंगाल बीजेपी के प्रमुख दिलीप घोष की राय इससे इतर है. घोष ने कहा, "तृणमूल को ऐसा को क्यों लगता है कि मुस्लिम वोटों पर उनका एकाधिकार है?" उन्होंने कहा, "बंगाल के मुसलमान सबसे पिछड़े हैं. यह सच्चर कमेटी की फाइंडिंग है, मेरी नहीं. अगर कोई लोकतंत्र में पार्टी बनाना चाहता है, तो उसे अधिकार है, लेकिन अगर किसी को लगता है कि वे एक समुदाय के मालिक हैं, तो यह गलत है. अगर वे विकास के नाम पर पार्टी बनाना चाहते हैं, तो यह अच्छा है."
आगामी चुनाव में पीर के मैदान में उतरने से क्या प्रभाव पड़ेगा यह निश्चित रूप से एक अहम सवाल है. राजनीतिक अवतार में पहली बार सामने आने के साथ ही पीरजादा इस बात का ऐलान चुके हैं कि वह किंगमेकर बनना चाहते हैं.